scorecardresearch

लोक कला: आधुनिकता में कला के रंग भरती मंजूषा

मॉडर्न ड्रेसेज पर मंजूषा आर्ट को उकेर कर इस परंपरागत कला में नई जान फूंकने की कोशिशें की जा रहीं. चंडीगढ़ में फैशन शो के दौरान ड्रेसेज पर मंजूषा कला को पेश किया गया.

मंजूषा कला
मंजूषा कला
अपडेटेड 10 जुलाई , 2012

कहते हैं कि गति ही प्रगति का नियम हैं और ठहरने पर पिछड़ना तय है. कुछ दिन पहले तक बिहार के मंजूषा आर्ट के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता था. लेकिन अब इसमें नई जान फूंकने की कोशिश शुरू होती नजर आ रही है. पिछले दिनों चंडीगढ़ के मोहाली में नॉर्दर्न इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन के फैशन शो में मंजूषा आर्ट वाले परिधानों ने सबको हैरत में डाल दिया.

परंपरागत मंजूषा आर्ट को इस नए अंदाज में पेश करने का श्रेय बिहारशरीफ के इंजीनियरिंग छात्र कुणाल कुमार को जाता है, जिन्होंने भागलपुर के मंजूषा आर्ट के जानकार मनोज कुमार पंडित के सहयोग से इसे अंजाम दिया.

मंजूषा आर्ट में बिहार की महिलाओं में आत्मनिर्भरता और विश्वास की विजय गाथा को दर्शाया गया है, जो सरकारी योजनाओं और स्वयं सहायता समूह के बूते पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तीकरण की ओर बढ़ी है. इसमें मुख्यमंत्री साइकिल योजना, भागलपुर के धरहरा में एक बच्ची के पैदा होने पर 10 पेड़ लगाने की परंपरा, वोट के लिए कतारबद्ध खड़ी महिलाएं, शिक्षा के लिए महिला जागरूकता जैसे अहम पहलू पेश किए जा रहे हैं.

इस कॉन्सेप्ट के लिए कुणाल को पुरस्कृत भी किया गया है. कुणाल कहते हैं, ''मंजूषा आर्ट नारी सशक्तीकरण का प्रतीक है, उसी परिप्रेक्ष्य में शो के जरिए बिहार के नारी सशक्तीकरण को फोकस करने की कोशिश की गई.'' उनका मानना है कि बिहार की मंजूषा आर्ट को आधुनिक रूप देकर ही इसे जीवंत किया जा सकता है.

भागलपुर के मंजूषा आर्ट प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक मनोज कुमार पंडित कहते हैं, ''कई संस्थानों से मंजूषा डिजाइन के लिए ऑफर भी मिले हैं. इस कला को लोकप्रिय बनाने के लिए जरूरी है कि ज्‍यादा से ज्‍यादा जन उपयोगी सामग्रियों से मंजूषा आर्ट को जोड़ा जाए'' अब लेटर पैड, शादी कार्ड, बर्थडे कार्ड, बैग और ड्रेस मटीरियल्स में भी इस लोक कला का उपयोग होने लगा है. नाबार्ड ने भागलपुर में महिला समूहों को प्रशिक्षण और लोन की व्यवस्था शुरू की है.

दरअसल, मंजूषा आर्ट अंग प्रदेश की लोक नायिका बिहुला के संघर्ष पर आधारित है. मंजूषा एक बहुमंजिला नौका है, जिस पर कई प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पति दर्शाए जाते हैं. इसमें हरा, पीला, गुलाबी रंग का प्रयोग होता है. लोक गाथा है कि बिहुला के पति बालालखेंद्र की सर्पदंश से मौत हो गई थी, तब वह मंजूषा पर सवार होकर स्वर्ग गई थी और पति को पुनर्जीवित करा पाई थी.

1934 में अंग्रेज आइसीएस अधिकारी डब्ल्यू.जी. आर्चर ने लंदन के इंडिया हाउस में मंजूषा आर्ट को प्रदर्शित किया था. इसके जानकार ज्‍योतिष चंद्र शर्मा बताते हैं, ''सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर जो कदम उठाए जाने थे, वे नहीं उठाए जा सके. इस कला को रोजगार से जोड़ना बेहद जरूरी है.''

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी भागलपुर में सेवायात्रा के दौरान इस कला ने प्रभावित किया है. उन्होंने मंजूषा पेंटिंग प्रदर्शनी का जायजा लेते समय अधिकारियों को मार्केटिंग की व्यवस्था कराने को कहा है. बहरहाल, यह शुरुआत भर  है. मंजिल अभी दूर है.

Advertisement
Advertisement