यह पार्टी टाइम है. जश्न मनाइए कि भारत सरकार ने आपके आगे हार मान ली है. पिछले लगभग 60 साल से सरकार आप पर ऐसी हिंदी थोपने की कोशिश कर रही थी, जिसे आप बोलते तक नहीं. सरकारी हिंदी को कोई नहीं समझ सकता था. लिखने वाला भी नहीं. लेकिन सरकार की भी अपनी जिद थी. हजारों करोड़ रु. एक ऐसी हिंदी को बनाने और आपके गले उतारने के लिए खर्च कर दिए गए, जो कभी पैदा ही नहीं हुई थी. सरकारी प्रोटीन और विटामिन खिलाने से सरकारी हिंदी नाम का बच्चा जवान नहीं हो सकता था.
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
अब केंद्र सरकार ने कहा है कि हिंदी को सरल बनाना समय की मांग है और इसलिए हिंग्लिश भी चलाओ. कहानी फिल्मी है. जैसा कि हमारी फिल्मों में अक्सर होता है, गुंडे-मवाली-विलेन जब पिट-पिटा जाते हैं, तब पुलिस की वैन साइरन बजाती आती है. हिंदी के मामले में ठीक यही हुआ. सरकार 60 साल देर से आई. उसके जागने से बहुत पहले हिंदी बदल चुकी थी. भाषा के इस नए तेवर के बारे में फिल्म निर्देशक और लेखक गुल.जार कहते हैं, ''फिल्में समाज का आईना हैं. जो सोसायटी में होगा वही फिल्मों में भी नजर आएगा क्योंकि कोई भी जुबान सोसायटी से ही आती है.'' उनकी यह बात पूरी हकीकत को अच्छे से बयान कर देती है. समाज और बाजार में हो रहे बदलाव और युवाओं की बढ़ती आबादी ने देश के लिए नई भाषा भी गढ़ दी है.
किसी नदी की मानिंद बहती हिंदी अपने आस पास से बहुत कुछ बटोर रही थी और यह जारी है. कभी हिंदी ने संस्कृत से भी शब्द लिए थे. बहुत दिनों तक यह झूठ पढ़ाया जाता रहा कि हिंदी संस्कृत से निकली है और संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है. हिंदी ने आगे चलकर कभी थोक भाव में फारसी-अरबी-तुर्की से शब्द बटोरे थे. ग्लोबल हिंदी इंग्लिश और दुनिया भर से शब्द ले रही है. भाषाओं की दोस्ती में नई भाषा बनती रहती है. रोने वाले रोते रहते हैं कि हाय! हमारी बेटी किसी और के साथ भाग गई.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
सेक्स सर्वे: तस्वीरों से जानिए कैसे बदल रहा है भारतीय समाज
इस बात को लेकर कोलावरी (बवाल) मचा हुआ है. यह रोना तमिल में भी है जहां से आई व्हाइ दिस कोलावरी डी ने टैमलिश (तमिल-इंग्लिश) का झंडा दुनिया में फहरा दिया. छम्मक छल्लो को ही लें. इस साल का सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाने वाला गाना. इस गाने में कुछ हिंदी है, कुछ इंग्लिश और कुल मिलाकर जो चीज बनी है वह बेहद पॉपुलर है. इस बात पर कुछ लोगों को रोना आ रहा है कि यह क्या हो रहा है. फिल्म, टीवी सीरियल, एफएम, एसएमएस, इंटरनेट, कॉल सेंटर, मॉल, मल्टीप्लेक्स, शेयर मार्केट, न्यूजपेपर इन सब जगहों पर हिंदी बन और बदल रही है. फिल्में इस पूरे चलन को लीड कर रही हैं.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
बॉलीवुड के निर्देशक और लेखक हबीब फैसल फिल्मों में इस शुरुआत को काफी पहले से मानते हैं. उनका कहना है, ''हिंदी फिल्मों के इतिहास में ऐसे उदाहरणों की भरमार है. लव इन टोकियो और फाइव राइफल्स को भी ले सकते हैं.'' शोले में धर्मेंद्र पानी की टंकी पर चढ़कर सुसाइड करने की बात करते हैं. वक्त के साथ फिल्मों के कैरेक्टर और विषय भी बदले हैं. इन दिनों फिल्मों में कैरेक्टर हमारे आपके बीच से होते हैं. फैसल कहते हैं, ''ऐसे में आम आदमी को दिखाते समय भाषा भी तो उसी की दिखानी होगी.'' फिल्मों में हमेशा से समाज से जुड़े रहने की कोशिश रहती है.
इसी के चलते ऐसे शब्दों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाता है, जो लोगों के जेहन में आसानी से उतर जाएं. गुलजार कहते हैं, ''एक समय था कि सिल्वर स्क्रीन पर जुबान और भाषा का जादू दिखता था. उस समय वैसी मांग रहती थी. लेकिन अब हमें समाज को देखना होगा. भाषा का चमत्कार उसी के मुताबिक हो रहा है.'' जिस तरह की कहानियां कह रहे हैं, उनकी डिमांड ऐसी ही भाषा की है. लेडीज वर्सस रिकी बहल का एक दृश्य लें. डिंपल चड्ढा (परिणिती चोपड़ा) को मुंबई जाना है, लेकिन उसके पिता मान नहीं रहे, और आखिर में मान जाते हैं और कहते हैं, ''इकोनॉमी क्लास से जाओगी या बिजनेस से?''
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
फिल्म की भाषा इस बात से भी तय होती है कि फिल्म किस बारे में है. जाने तू जाने न मुंबई बेस्ड थी तो बैंड बाजा बारात और रंग दे बसंती दिल्ली बेस्ड. आमिर खान किसी फिल्म में टपोरी मुंबइया बोलते हैं तो किसी में पंजाबी हिंदी. और बात सबकी समझ में आ जाती है. फिल्म देखने जाने वाला बड़ा समूह 16-25 वर्ष का माना जाता है. इस टारगेट ऑडियंस को ध्यान में रख कर कंटेंट को यूथफुल बनाना पहली जरूरत होती है. पटकथा लेखक अंजुम रजब अली कहते हैं, ''हिंग्लिश समाज के बदलाव की ही तस्वीर है. देश में युवाओं पर वेस्टर्न कल्चर और ग्लोबल आउटलुक का काफी असर है. जो उनकी भाषा पर भी नजर आता है.''
कंटेंट के अलावा, फिल्मों के टाइटिल में जबरदस्त बदलाव आया है. इस साल रिलीज हुई कुल फिल्मों से 56 के टाइटल या तो इंग्लिश में हैं या हिंग्लिश में. आने वाले साल यानी 2012 के लिए घोषित फिल्मों की लिस्ट में 20 नाम हिंग्लिश हैं. जिनमें तुक्का फिट, जोड़ी ब्रेकर्स, क्या सुपर कूल हैं हम, बिट्टू बॉस और रॉक द शादी प्रमुख हैं. इस आंकड़े में इजाफा ही हुआ है. हिंग्लिश नाम वाली फिल्मों का आंकड़ा 2009 में 31 था तो 2010 में यह 40 पर पहुंच गया. बॉलीवुड की फिल्में ही नहीं, प्रिंट मीडिया, टेलीविजन और विज्ञापन जगत में भी इस नई भाषा या कहें हिंग्लिश की भरमार है.
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे2 नवंबर 201: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
इस बारे में फिल्म विश्लेषक तरण आदर्श कहते हैं, ''यह चलन पुराने समय से है, लेकिन अब इसमें काफी इजाफा हो गया है.'' अगर हम 2011 की कुछ खास फिल्मों के नाम देखें तो ये रेडी, बॉडीगार्ड, रॉक स्टार, द डर्टी पिक्चर, रा.वन. नो वन किल्ड जेसिका हैं. आदर्श हिंग्लिश या इंग्लिश टाइटल रखने का कारण बताते हैं, ''बॉलीवुड की कोशिश इंटरनेशनल ऑडियंस तक पहुंचने की है. इसलिए वह ऐसे टाइटल तैयार करता है, जो उन्हें भी अपनी ओर खींचे.''
संवादों और शीर्षकों में ही नहीं बल्कि हिंग्लिश का यह तड़का गीतों में भी है. तभी तो देव डी का इमोशनल अत्याचार इतना हिट हुआ कि यह एक मुहावरा ही बन गया. इस गीत के लेखक अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं, ''सीधी-सी बात है, जिस भाषा में बात करते हैं, वह बदल रही है. न तो वह हिंदी है, न उर्दू है और न ही अंग्रेजी है. ये अब हिंग्लिश है.'' गीतों में हिंग्लिश का मजेदार प्रयोग अमर अकबर एंथनी के माय नेम इज़ एंथनी गोंजालविस में नजर आता है. उस समय मस्ती के लिए किया गया प्रयोग आज ट्रेंड बन चुका है.
मेकसम नॉयज (देसी बॉयज) और मेट्रीमोनियल सी आंखें (मेरे ब्रदर की दुल्हन) और ट्विंकल ट्विंकल (द डर्टी पिक्चर) काफी पसंद किए जाने वाले गीतों में शुमार हैं. तनु वेड्स मनु के संगीतकार कृष्णा कहते हैं, ''गीतों की हिंग्लिश की ओर बढ़ने की शुरुआत रैप के आने से हुई. रैप के कारण अंग्रेजी के कई शब्द आए. अब पूरे गीत ही हिंग्लिश में आने लगे हैं.'' कॉलेजिया भाषा में लिखे गए गीत खास पसंद किए जाते हैं. यह सारी कवायद यूथ को अप्रोच करने के लिए है. भट्टाचार्य कहते हैं, ''यह रुझान रहने वाला है क्योंकि युवाओं की बढ़ती संख्या के चलते उनकी पसंद का विशेष ख्याल रखा ही जाएगा.''
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
इडियट बॉक्स कहा जाने वाला टीवी भी इस ट्रेंड से अछूता नहीं है. बात डीडी-मेट्रो (दूरदर्शन का एक चैनल) के जमाने की है. 1993-94 में एक सीरियल आया करता था, ज़बान संभाल के, जिसमें कुछ गैर-हिंदी भाषी लोगों को एक इंजीनियर हिंदी सिखाने की कोशिश करता है. बस, इसी से कई तरह के भाषायी मिश्रण सुनने को मिलते थे. उनमें से हिंग्लिश भी एक थी. लेकिन यही वह दौर भी था जब केबल टीवी की जड़ें भारत में जमनी शुरू हो गई थीं. टीवी प्रोग्राम बनाने वाली कंपनी फ्रीमेंटल मीडिया की कंटेंट हेड अनुपमा मंडलोई कहती हैं, ''भाषा में बदलाव का दौर केबल टेलीविजन के आने के साथ ही शुरू हो गया था.''
अभी के टेलीविजन को देखें तो रियलिटी शो के कारण हिंग्लिश तेजी से बढ़ रही है. .जी टीवी के डांस इंडिया डांस प्रोग्राम के एक प्रतियोगी की परफॉर्मेंस से प्रभावित हो कर मास्टर गीता कपूर एकदम से कह उठती हैं, ''स्टूपेंडस फैंटाबुलसली फैंटास्टिक परफॉर्मेंस.'' ये शब्द अब पूरा देश समझने लगा है. कलर्स चैनल के बिग-बॉस के घर के सदस्य एक-दूसरे को जमकर कोसते हैं. इनके लोकप्रिय हो चुके जुमले हैं: तू टेंशन मत ले, यूथ आइकॉन और स्पेयर मी. रियलिटी शो के जरिए टीवी में आई हिंग्लिश पर मंडलोई कहती हैं, ''जज उसी भाषा में बात करते हैं, जिसमें प्रतियोगी कंफर्टेबल हो. वैसे भी रियलिटी शो में आम लोग ही आते हैं. तो जाहिर है, उसमें भाषा भी उसी की होगी.''
भाषा में बदलाव का श्रेय एमटीवी और वी जैसे युवाओं के चैनलों को दिया जाता है. एमटीवी वीजे बानी बताती हैं, ''हम लोगों की कोशिश युवाओं की लैंग्वेज बोलने की रहती है.'' एमटीवी के शो रोडीज़ में बानी एंकरिंग करते समय अक्सर कहती हैं, ''फ्रेंड्स अभी आपका मुश्किल वक्त आने वाला है. अब बारी आपके पर्सनल इंटरव्यू की है.'' बानी मानती हैं कि समाज का हर इंसान अब हिंग्लिश का काफी इस्तेमाल करता नजर आता है. वे एक दिलचस्प उदाहरण देते हुए बताती हैं, ''अब एक दिन की बात है. मैं सब्जी लेने गई तो मैंने दुकानदार से पूछा, 'भैया सेब क्या भाव दिए हैं?' उसने कहा, 'मैडम, एपल एट्टी रूपीज पर केजी.' मैं तो हैरत में रह गई.''
विज्ञापनों को देखें तो भारत जैसे बहुभाषी देश में दो भाषाओं का जमकर इस्तेमाल हो रहा है. ताजा उदाहरण मैक्विटीज का यह टीवी विज्ञापन है, हेल्दी होल व्हीट फाइबर की ओरिजनल रेसिपी से बने मैक्विटीज. लगभग 25 साल पहले मैगी सॉस के विज्ञापनों में हिंग्लिश की शुरुआत करने वाले एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ कहते हैं, ''विज्ञापनों में स्ट्रीट लैंग्वेज डालने की कोशिश रहती है क्योंकि प्रोडक्ट प्रमोशन में हमेशा टारगेट को ध्यान में रखना होता है.'' पेप्सी का दिल मांगे मोर उन्हीं की देन है. वैसे भी, युवाओं को निशाना बनाने की एक वजह उनका एक बड़ा उपभोक्ता होना है. तभी एयरटेल का विज्ञापन हर एक फ्रेंड जरूरी होता है, रातोरात हिट हो जाता है. भारत आकर मैकडॉनल्ड आलू टिक्की बर्गर बेचे तो समझना होगा कि हिंदी बदल गई है.
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
बर्थडे पप्पू, सिटी की टोपी और इंग्लिश मेम. शब्द कुछ अजीब हैं. लेकिन ये एफएम 91.1 रेडियो सिटी के प्रोग्राम्स के नाम हैं. रेडियो की हिंग्लिश के बारे में बिग एफएम 92.7 के प्रोग्राम हेड जयवीर कुमार सिंह कहते हैं, ''कई तरह के लोग एक समय में एक ही प्रोग्राम सुनते हैं. उनसे कनेक्ट बनाने के लिए हमें उन्हीं की भाषा में बात करनी पड़ती है.'' एफएम के टारगेट ऑडियंस, 16-35 वर्ष के लोग हैं. उन्हीं को ध्यान में रख कर ही ऐसी भाषा का इस्तेमाल होता है. एक रेडियो प्रोग्राम हॉस्टल क्लासिक्स का उदाहरण देखें, जिसमें आरजे रा'ल माकिन कहते हैं, ''रात का टाइम है, जैसे घड़ी बजा रही है सेवन फोर्टी, आपको नहीं होना है नॉटी.'' यही जुमले तो युवाओं की जुबां पर होते हैं.
रजब अली कहते हैं, ''जिस अंदाज़ से दिलीप कुमार, राज कपूर और बलराज साहनी संवाद और भाषा बोलते थे, उससे काफी कुछ सीखने को मिलता था. अब उस तरह की चीजें नहीं हैं.'' बेशक उनका कहना सही है.
जुबान शहरी यंगिस्तान की कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ी कविता के पिता अधिकारी हैं, जबकि उनकी मम्मी एक हाउसवाइफ. घर में पिता की बातों में अंग्रेजी ज्यादा रहती और मम्मी पंजाबी मिक्स हिंदी बोलतीं. स्कूल में अंग्रेजी माहौल. बेशक कविता बहुत अच्छी अंग्रेजी बोल लेती हैं लेकिन अक्सर उनकी बातों में हिंग्लिश ज्यादा रहती है. वे कहती हैं, ''मॉम के साथ हिंदी बोलती थी. स्कूल में दोस्तों संग इंग्लिश. मेरी पूरी लैंग्वेज ही मिक्स हो गई.''कविता ही नहीं, देश का शहरी यंगिस्तान हिंग्लिश बोल रहा है. हिंग्लिश की युवाओं के बीच लोकप्रियता उसी तरह है जैसे कॉलेज जाने वाली लड़की जींस के साथ कुर्ती पहनती है. हंसराज कॉलेज की बीए प्रोग्राम की पहले वर्ष की छात्रा गरिमा तिवारी कहती हैं, ''हम लता मंगेशकर से एमिनम (अमेरिकी रैपर) तक पहुंच चुके हैं. अब ब्रदर का ब्रो और सिस्टर का सिस भी हो गया है.''
हिंग्लिश के बढ़ते चलन की मुख्य वजह देश की वह 65 फीसदी आबादी है जो 35 वर्ष से नीचे और 40 फीसदी 13-35 वर्ष के बीच है. कैंपस की लैंग्वेज में बाराखंभा अब 12 पिलर्स है. दिल्ली पुलिस दिल्ली कॉप है. किताबें रीडिंग मटीरियल हैं. भाषा में विशेष जोर एक्सेंट के ऊपर रहने लगा है और ग्रमैटिकली ध्यान कम है.
युवाओं के कुछ पसंदीदा जुमले हैं: क्लास बंक करते हैं. प्लीज मेरी ह्ढॉक्सी लगा दियो. अबे, क्या आइटम है. बंदी जेनुइन लगती है. अपना फेवरिट हैंगिंग अड्डा तो कैंटीन है. क्या मैं उसे प्रपोज़ कर दूं. चलो चिल करते हैं. बंदा क्या कूल है. क्या डूड...क्या सीन है. वाट लग गई. बॉसगीरी. टीचरगीरी. चिलैक्स.