पाकिस्तान की जेल में बंद फांसी की सजा पाए भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह ने 29 मई को पांचवीं बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास अपनी दया याचिका दाखिल की. याचिका में सरबजीत ने कहा है, ''मैं एक ऐसे अपराध के लिए 22 साल जेल में बिता चुका हूं जो मैंने नहीं किया.'' लाहौर में 1990 में हुए बम विस्फोट में शामिल होने के आरोप में 49 वर्षीय सरबजीत को फांसी की सजा मिली थी.
एक लाख लोगों ने इस याचिका पर दस्तखत किए हैं, जिसमें जरदारी से मानवीय आधार पर सरबजीत को रिहा करने की अपील की गई है. याचिका में दो विशिष्ट भारतीय मुस्लिम शख्सियतों- दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी और अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के संरक्षक सैयद मोहम्मद यामीन हाशमी के जरदारी के नाम पत्र भी नत्थी हैं. बुखारी ने अपने पत्र में लिखा है, ''सरबजीत की रिहाई दोनों मुल्कों के बीच सदिच्छा और सांप्रदायिक सद्भाव फैलाने का काम करेगी.''
सरबजीत की याचिका से कुछ ही दिन पहले भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर की जेल में बंद पाकिस्तानी माइक्रोबायलॉजिस्ट 82 वर्षीय खलील चिश्ती को मानवीय आधार पर रिहा करने का फैसला दिया था. जरदारी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अप्रैल में एक खत लिखा था, जिसके बाद चिश्ती को जमानत दे दी गई. इससे पहले उच्चस्तरीय कूटनीतिक वार्ता भी हुई.
भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने भी सरबजीत को छोड़ने के लिए जरदारी से तीन बार अपील की, लेकिन अब तक इसका जवाब नहीं आया है. काटजू ने पूर्व पाकिस्तानी सीनेटर सैयद फसीह इकबाल को भी इस संदर्भ में लिखकर सरबजीत का मामला हाथ में लेने को कहा था. इकबाल ने उन्हें 27 मई को भरोसा दिलाया कि वे लोगों की रायशुमारी करने की कोशिश करेंगे. सीमा के दोनों ओर से सरबजीत के समर्थन में आ रही नई आवाजों के बीच यह देखना होगा कि जरदारी भारत के चिश्ती को छोड़े जाने का बदला सरबजीत को रिहा करके चुकाते हैं या नहीं.