बिना नारों के चुनाव कुछ ऐसे ही लगता है कि जैसे कोई सेना बिना असलहे के ही युद्ध में उतर गई हो. नारे ही चुनाव अभियान में दम और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करते हैं. जोर का नारा लगे और फिर वहां मौजूद लोगों के लहू में एड्रिनलिन का जोरदार स्राव हो...फिर जोश आसमान छूने लगता है. हर पार्टी एक ऐसा नारा अपने लिए चाहती है जिससे वह वोटरों को लुभा सके. इतिहास गवाह है कि कम संसाधनों के बावजूद तगड़े नारों और ऊर्जावान भाषणों के दम पर कई ताकतवर प्रतिस्पर्धी चित्त कर दिए गए हैं.
कई चुनावी नारे विवादित भी रहे हैं पर लहर पैदा करके अप्रत्याशित नतीजे दिलाने के लिए आज भी ये लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर मोदी सरकार एक नारा है, जो भाजपा आजमा रही है. तो कांग्रेस भाजपा भगाओ, देश बचाओ के नारे पर खेल रही है.
हर राजनीतिक नारा अपने साथ कई किस्से लेकर चलता है. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में थी तो उसके नारे भी देखिए. 'कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ' तो था ही. भाजपा के तब के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर भी तंज थेः 'मैं नहीं हम', 'कट्टर सोच नहीं युवा जोश,' 'कम बोला काम बोला'. जाहिर है, कम बोला काम बोला में फोकस मनमोहन सिंह पर था.
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से मोदी की लोकप्रियता को भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई थी. सारे नारे मोदी के इर्द-गिर्द ही घूम रहे थे. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के सारे नारे ही नहीं पूरा चुनाव अभियान ही मोदी के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जिसकी मिसाल है एक बार फिर मोदी सरकार लेकिन 2014 में चुनावी सभाओं में मैक्सिकन वेव की तर्ज पर मोदी-मोदी के नारे को मंत्र की तरह जपती नौजवानों के दृश्य आप भूले नहीं होंगे.
साल 1998 के चुनाव में, 'अबकी बारी अटल बिहारी' की तर्ज पर पार्टी ने 16वीं लोकसभा के लिए 'अबकी बार मोदी सरकार' का नारा उछाला था. मोदी के संसदीय चुनाव क्षेत्र बनारस में तो 'हर हर मोदी घर घर मोदी' का नारा ऐसे चला कि देश भर में जहां भी मैं चुनावी रैली कवर करने जाता, यह नारा जरूर सुनाई देता था.
2009 में स्लमडॉग मिलियनेयर के ऑस्करी गाने जय हो का पट्टा कांग्रेस को मिल गया था और भाजपा ने उसके मुकाबले फिर भी जय हो और भय हो जैसे नारे उतारे थे.
2004 के चुनावों में भारत उदय की वजह से भाजपा अस्त हो गई थी और इंडिया शाइनिंग ने एनडीए की चमक उतार दी थी. अगर अतीत में जाकर कुछ चुनावी नारों पर नजर डालें तो सियासत के कुछ बारीक पेचो-खम की थाह लगाई जा सकती है. चलिए शुरुआत करते हैं 1965 के मशहूर जय जवान जय किसान के नारे से.
तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश की रक्षा के लिए जवानों और अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को सर्वस्व झोंकने के प्रति प्रेरित करने के लिए यह नारा दिया था. इस नारे ने 1967 में कांग्रेस पार्टी को फिर से सत्ता दिलाई.
साठ के दशक में लोहिया ने समाजवादियों को नारा दिया था, सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ...ये महज नारा नहीं था बल्कि लोहिया की पूरी विचारधारा की ज़मीन थी. उस दौर में जनसंघ ने अपने चुनाव चिह्न दीपक और कांग्रेस ने अपने दौ बैलों की जोड़ी के ज़रिए एक दूसरे पर खूब निशाना साधा था.
जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक था जबकि कांग्रेस उस दौरान दो बैलों की जोड़ी निशान से चुनाव लड़ रही थी. दोनों पार्टियां अपने नारों द्वारा एक-दूसरे पर खूब निशाना साधती थीं. जनसंघ जहां 'जली झोपड़ी भागे बैल यह देखो दीपक का खेल' नारे से प्रहार करता था, वहीं कांग्रेस का जवाबी नारा था, 'इस दीपक में तेल नहीं सरकार बनाना खेल नहीं'.
उसी तरह कांग्रेस का गरीबी हटाओ का नारा भी खूब चर्चित रहा और भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज की एक ज़रुरत ने वोटरों पर खासा असर डाला. उसी दौरान रायबरेली से इंदिरा को हराने में भी नारों की अहम भूमिका रही. 1977 में जय प्रकाश नारायण ने नारा दिया इंदिरा हटाओ, देश बचाओ. आपातकाल लागू करने वाले कांग्रेसियों का इससे पत्ता साफ हो गया था. जनता पार्टी की सरकार बनी थी. तब एक नारा बहुत लोकप्रिय हुआ था
"जमीन गई चकबंदी मे, मकान गया हदबंदी में,
द्वार खड़ी औरत चिल्लापए, मेरा मर्द गया नसबंदी में।"
या फिर,
"जगजीवन राम की आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी
आकाश से कहें नेहरू पुकार, मत कर बेटी अत्याधचार।"
ये नारे इमरजेंसी और संजय गांधी के समय खूब चले थे
हालांकि चिकमंगलूर से उपचुनाव भी इंदिरा गांधी ने नारों के रथ पर ही जीता. इसी तरह 1980 के चुनाव में कई दिलचस्प नारे गढ़े गए. कर्नाटक के चिकमंगलूर से इंदिरा गांधी उप चुनाव लड़ रही थीं. उस दौरान दक्षिण भारत के कांग्रेस के नेता देवराज उर्स ने एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर यह नारा दिया था. उप चुनाव जीतकर इंदिरा गांधी ने 1980 में नाटकीय वापसी की. इनमें इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर, तो कई लोगो की जुबान पर आज भी है.
गरीबी हटाओ का नारा 1971 में इंदिरा गांधी ने उछाला था. इसी नारे के दम पर उन्होंने कांग्रेस को भारी जीत दिलाई थी.
1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हो गई तो सहानुभूति लहर पैदा करने में एक नारे ने बहुत अहम भूमिका निभाई थी. जब तक सूरज चांद रहेगा इंदिरा तेरा नाम रहेगा. नतीजतन, कांग्रेस को भारी जीत मिली.
कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह जब बगावत करके विपक्ष की भूमिका में आ गए तो उनके लिए भी बहुत दिलचस्प नारे गढे गए. विश्वनाथ प्रताप सिंह गरीबों के मसीहा बनना चाहते थे सो उनकी इस छवि को पुख्ता करने के लिए नारा गढ़ा गयाः राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है. 989 के चुनावों में वीपी सिंह को लेकर बना यह नारा लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा.
1989 में ही बीजेपी ने राम मंदिर से जुड़े नारे भुनाए, सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे, और बाबरी ध्वंस के बाद ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है (हालांकि ये चुनावी नारा नहीं था) हालांकि, वीपी सिंह को नारों में फकीर और देश की तकदीर बनाने वाला बताया गया. लेकिन कांग्रेस ने उन्हे रंक और देश का कलंक भी बताया था.
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद राजीव तेरा .ये बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान सामने आया. और इसका असर भी वोटिंग पर देखा गया.
1998 में अबकी बारी अटल बिहारी बीजेपी को खूब भाया और उसने इसका खूब इस्तेमाल भी किया.
यूपी में 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने अगड़े वोट लुभाने के लिए हाथी की तुलना भगवान गणेश से कर दी थी. मूल नारा था हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा बिष्णु महेश है तो समाजवादी पार्टी ने जिसने कभी न झुकना सीखा उसका नाम मुलायम है से मुलायम को खूब हौसला दिया था. 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी गजब के नारे लगे थे. समाजवादी पार्टी के नारों की कुछ बानगी है, जिसका जलवा कायम है, उसका बाप मुलायम है... जीत की चाभी, डिंपल भाभी... यूपी की मजबूरी है, अखिलेश यादव जरूरी है. एक अन्य स्थानीय नारा था
पंजा गया खंड़न्जा पे
फूल गया मुरझाए
हाथी फस गया दलदल मे
साईकिल चपले जाय
वहीं बसपा के नारे महिलाओं को आकर्षित करने के लिए बनाए गए थे. नजर डालिए, बेटियों को मुस्कुराने दो, बहन जी को आने दो एक अन्य नारा था, गांव-गांव को शहर बनाने दो, बहन जी को आने दो इस तरह डर से नहीं हक से वोट दो, बेइमानों को चोट दो. तो कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन में थी पर उसके नारों ने पुरानी लोकप्रियता हासिल नहीं की, कांग्रेस के नारे थे,
कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ,
27 साल... यूपी बेहाल,
गरीबों से खींचो, अमीरों को सींचो.
भाजपा के नारे शायद सब पर भारी पड़े थे. अबकी बार, 300 के पार, गली-गली में मचा है शोर, जनता चली भाजपा की ओर, जन-जन का संकल्प, परिवर्तन एक विकल्प. और जनता ने इन नारों पर रीझकर भाजपा को सूबे में प्रचंड बहुमत भी दिया.
यूपी की राजनीति के खास नारे
1. सपा और बीएसपी के गठबंधन पर: मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम
2. बीएसपी का चर्चित नारा: तिलक, तराजू और तलवार...
3. बीजेपी का नारा (राम मंदिर आंदोलन के वक्त): राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे
4. बीएसपी का दूसरा नारा: चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर
5. सवर्णों को साधने की खातिर बीएसपी ने बदला नारा: हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा-विष्णू-महेश हैं
6. सपा का नारा: जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है
7. सपा का नारा (पिछले विधानसभा चुनाव में): दलित नहीं दौलत की बेटी, मायावती
8. बीजेपी का नारा: सबका साथ, सबका विकास
पुराने चुनाव जिताऊ नारे
1965: जय जवान, जय किसान (कांग्रेस)
1967: समाजवादियों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावै सौ में साठ (सोशलिस्ट पार्टी)
1971: गरीबी हटाओ (कांग्रेस)
1975-1977: सिंहासन खाली करो कि जनता आती है (सोशलिस्ट पार्टी/जनता दल)
1978: एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर,चिकमंगलूर (कांग्रेस)
1984: जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा (कांग्रेस)
1989: राजा नही फकीर है, जनता की तकदीर (कांग्रेस)
1989: सेना खून बहाती है, सरकार कमीशन खाती है (जनता दल/बीजेपी)
पुराने लोकप्रिय नारे
1-इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं
2- जली झोंपडी़ भागे बैल,यह देखो दीपक का खेल
4- संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी
5- बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है
7- स्वर्ग से नेहरू रहे पुकार, अबकी बिटिया जहियो हार
8- इंदिरा लाओ देश बचाओ
9- आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे
10-इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर
11- सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे
12- जिसने कभी न झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है
13- राजीव तेरा यह बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान
14- अबकी बारी अटल बिहारी