पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार महाराजगंज में जिलाधिकारी के तौर पर पहली पोस्टिंग के पांच महीने ही गुजरे थे कि कोरोना संक्रमण से निबटने की कठिन चुनौती उज्जल कुमार के सामने थी. चीन के वुहान से कोरोना संक्रमण पूरे विश्व में फैला था. उज्जवल को जानकारी मिली कि वुहान के एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाला छात्र महाराजगंज आया है. उज्जवल ने फौरन पूरी एहतियात बरतते हुए इस छात्र के सैंपल को नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी, पुणे में जांच के लिए भेजा. दो दिन बाद इस छात्र की रिपोर्ट निगेटिव आई लेकिन इसने पूरे महाराजगंज प्रशासन को कोरोना संक्रमण के प्रति अलर्ट कर दिया था.
महाराजगंज की सीमा नेपाल से मिलती है. इस रास्ते कोरोना संक्रमण देश में न फैल जाए इस आशंका से निबटने के लिए फरवरी के अंतिम हफ्ते में महाराजगंज के सुनौली और ठूठीबाड़ी बार्डर पर इमीग्रेशन डिपार्टमेंट की टीम तैनात हो गई थी. इनके साथ स्वास्थ्य विभाग की टीम भी जो बॉर्डर पर हर आने जाने वाले की इंफ्रारेड थर्मामीटर से स्कैनिंग करती थी. सबसे एक फॉर्म भरवाया जाता था जिसमें कई जानकारियों के साथ यह भी सूचना दर्ज होती थी कि वे उन देशों से तो नहीं आए हैं जहां कोरोना का काफी प्रकोप है. चूंकि इंफ्रारेड थर्मामीटर से व्यक्ति काफी पास से जांच करता है. ऐसे में मेडिकल टीम को कोरोना संक्रमण की किसी भी आशंका से बचाने के लिए आइ-एफ थर्मामीटर खरीदा गया. यह भी इंफ्रारेड थर्मामीटर ही था लेकिन इसे हाथ में पकड़कर नहीं बल्कि कैमरे की भांति ट्राइपॉड पर लगाकर सामने खड़े व्यक्ति की थर्मल स्कैनिंग शुरू की गई.
बॉर्डर पर जिस तरह आने-जाने वाले लोगों में कोरोना संक्रमण के प्रति दहशत दिख रही थी उसका फीडबैक उज्जवल को लगातार मिल रहा था. वह समझ रहे थे आने वाले दिनों में महाराजगंज को भी कोरोना संक्रमण के प्रकोप का सामना करना पड़ सकता है. उज्ज्वल ने स्वास्थ्य सेवाओं पर फोकस किया. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में चालू सेवाओं का विस्तृत सर्वे कराया. जहां कमियां थीं उन्हें दूर किया. यह प्रक्रिया चल रही कि तभी 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद महाराजगंज से सटे गोरखपुर समेत यूपी के 16 जिलों में लॉकडाउन की घोषणा हो गई. इस समय महाराजगंज में भी लोग कुछ दहशत में आ गए थे. उज्जवल भी प्रशासनिक मशीनरी को और ऐक्टिव करने की योजना पर मंथन कर रहे थे.
इसी बीच 23 मार्च को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को लेकर अपनी टीम-11 बनाई. उज्जवल को जैसे ही इसकी जानकारी मिली उन्होंने ठीक इसी तर्ज पर 24 मार्च को महाराजगंज में तैनात पुलिस अधीक्षक, सीडीओ, सीएमओ जैसे जिला स्तरीय अधिकारियों को लेकर अपनी टीम इलेवन बना ली. हर अधिकारी को एक तय जिम्मेदारी दी गई. इसी तरह ब्लॉक और तहसील के अधिकारियों ने भी अपनी टीम इलेवन तैयार की. इतना ही नहीं गांव में जागरूकता और जरूरी इंतजाम की निगरानी के लिए महाराजगंज के प्रधानों ने भी अपनी टीम इलेवन तैयार की. अलग-अलग स्तर पर बनी टीम इलेवन की नियमित दिन में एक बार बैठक होने लगी. हर स्तर पर होने वाली बैठक की जानकारी जिलाधिकारी कार्यालय तक पहुंचने लगी. फौरन इसका लाभ भी मिला जब लॉकडाउन लागू होने के बाद महाराजगंज में तबलीगी जमात के लोग गुपचुप पहुंचने लगे थे. प्रधानों को अपनी टीम के जरिए इसकी जानकारी हुई और उन्होंने इसे फौरन जिलाधिकारी तक पहुंचाया. इन 25 लोगों की जांच कराई गई जिसमें छह कोरोना पॉजिटिव निकले.
रात के बारह बजे जैसे ही छह लोगों के कोरोना पाजिटिव होने की रिपोर्ट आई तुरंत इन्हें महाराजगंज के एल-1 कोविड अस्पताल में भर्ती कर दिया गया. जिले में अलग-अलग स्तर पर बनी टीम इलेवन के जरिए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की कांटैक्ट ट्रेसिंग कराई गई. इससे टीम इलेवन के कामकाज की एक ‘ड्रिल’ सेट हो गई. लॉकडाउन लागू होने के बाद यहां निचलौल, नौतनवां समेत कई इलाकों में मौजूद पिछड़ी मुसहर और वनटांगियां जातियों की बस्तियों में भोजन की समस्या हो गई. उज्जवल ने लोगों के सहयोग से इन इलाकों में राशन और जरूरी सामानों के पैकेट बंटवाए. इन गांवों के साथ महाराजगंज के हर गांव में गरीब लोगों के बीच साबुन, सैनेटाइजर, मास्क बांटे गए.
नेपाल से जुड़ी सीमा भी उज्जवल के लिए एक बड़ी चुनौती थी. नेपाल ने बिना कोई सूचना दिए 23 मार्च को अपनी सीमा बंद कर दी. अचानक नेपाल जाने वाले करीब दो हजार लोग महाराजगंज में फंस गए. उज्जल ने नेपाल के अधिकारियों से बात की, शासन को भी इससे अवगत कराया. लगातार प्रयास के बाद उसी दिन शाम को नेपाल महाराजगंज सीमा पर फंसे लोगों को लेने पर राजी हो गया. समस्या यहीं खत्म नहीं हुई. अगले दिन दो सौ से ज्यादा और लोग नेपाल जाने के लिए सुनौली बार्डर पर पहुंच गए. नेपाल ने इन लोगों को लेने से मना कर दिया. इसके बाद उज्जवल ने इन नेपाली लोगों का चार स्कूलों में रुकने का प्रबंध किया. करीब पच्चीस दिन बाद नेपाल ने इन्हें आने की अनुमति दी तबतक उज्जवल ने इनके खाने-पीने का पूरा इंतजाम कराया.
लॉकडाउन के दौरान मार्च के अंतिम दिनों में करीब दस हजार प्रवासी मजदूर महाराजगंज पहुंच गए थे. उज्जल ने प्रधानों से बात करके इन सभी को उनके गांव में ही बने क्वारंटीन सेंटर में ठहराया. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) की टीम ने इन प्रवासी मजदूरों की नियमित जांच की. हालांकि इन मजदूरों में कोई भी कोरोना पॉजिटिव नहीं निकला लेकिन इस पूरी कवायदइ में एएनएम, आशा, संबंधित स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल अफसर इन चार्ज (एमओआइसी) को रोकथाम और इससे जुड़े एहतियात की बखूबी जानकारी हो गई. इसका फायदा मई में मिला जब महाराजगंज में एक लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों की दूसरी खेप पहुंची. इन मजदूरों को होम क्वारंटीन में रखकर निगरानी की शुरू की गई. इन सब घरों में होम क्वारंटीन की सूचना देने वाले “फ्लायर्स” भी चिपका दिए गए.
प्रधान की टीम इलेवन इन सभी प्रवासी मजदूरों की लगातार निगरानी कर रही है. होम क्वारंटाइन को न मामने की सूचना फौरन जिले के अधिकारियों को दी जाती है. पंचायत से लेकर जिले तक बनी अधिकारियों की टीम की नियमित बैठक होने इनके बीच समन्वय बेहतर हुआ और किसी भी समस्या से निबटने के लिए तुरंत निर्णय लेने में आसानी हुई. इसी का नतीजा था कि अप्रैल में एक वक्त ऐसा भी आया था जब महाराजगंज जिले को सरकार ने कोरोना फ्री भी घोषित किया था.
पिछले महीने अप्रैल में प्रदेश सरकार ने जैसे ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीनरेगा) के तहत गांव में रोजगार देने का निर्णय लिया. उज्जवल ने अपने महाराजगंज के सीडीओ के साथ मिलकर नरेगा में रोजगार सृजन और जाब कार्ड बनवाने का अभियान शुरू किया. अबतक नरेगा में साढ़े 18 लाख से अधिक मानव दिवस का सृजन करते हुए 1.22 लाख परिवारों को रोजगार मुहैया कराया गया है. इसके अलावा गांव में मौजूद सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाएं मास्क के साथ सेनेटाइजर भी बना रही हैं. पिछले वर्ष अक्तूबर में महाराजगंज के जिलाधिकारी बनने के बाद उज्जवल कुमार ने जिले में मौजूद स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को कंपोस्ट खाद बनाने की प्रशिक्षण दिलाया. अब यह अपने-अपने घरों में कंपोस्ट खाद बनाकर उसे बेच रही हैं.
महाराजगंज में प्रशासनिक समन्वय से कोरोना को काबू में करने वाले उज्जवल झारखंड के चतरा जिले के एक पिछड़े गांव के रहने वाले हैं. इनके पिता अध्यापक थे. चतरा से हाइस्कूल करने के बाद इन्होंने हजारीबाग से इंटरमीडियट किया. हैदराबाद के कॉलेज ॉफ वेटेनरी साइंस, राजेंद्रनगर से ग्रेजुएशन के बाद इन्होंने चेन्नै के मद्रास वेटेनरी कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया. कॉलेज में सीनियर छात्रों के आइएएस में सेलेक्ट होने से उज्जवल को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने की प्रेरणा मिली.
वर्ष 2012 में इनका चयन भारतीय सिविल सेवा में हो गया. ट्रेनिंग एटा में हुई. मुजफ्फरनगर में ज्वाइंट मैजिस्ट्रेट के रूप में पहली पोस्टिंग हुई. इसके बाद मैनपुरी, मुरादाबाद के सीडीओ बने. प्रदेश की योगी आदित्यानाथ सरकार ने जब मथुरा-वृंदावन को नगर निगम बनाया तब उसके पहले नगर आयुक्त के रूप में उज्जवल कुमार तैनात किए गए. इसके बाद ये सात महीने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में निदेशक रहे. प्रयागराज में कुंभ की तैयारियों में लगी प्रदेश सरकार ने नवंबर, 2018 में उज्जवल को प्रयागराज का नगर आयुक्त बनाया. कुंभ के बेहद सफल आयोजन की एक कड़ी उज्जवल भी थे. पिछले वर्ष अक्तूबर से यह महाराजगंज के जिलाधिकारी हैं. लॉकडाउन में प्रशासनिक समन्वय के जरिए किए गए कार्योँ ने महाराजगंज के लोगों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. इसे बरकरार रखना उज्जवल की अगली चुनौती है.
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