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शख्सियत: लखनऊ में नए बदलाव का अभिषेक

लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने खुद की डिजायन मशीनों का यूपी का सबसे बड़ा बेड़ा तैयार कर पूरे जिले को सेनेटाइज कराया. स्मार्ट हॉटस्पॉट, स्मार्ट क्वारंटीन सेंटर जैसी व्यवस्थाओं ने लखनऊ को प्रदेश में अलग पहचान दिलाई.

लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश
लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश
अपडेटेड 28 मई , 2020

लखनऊ में 27 मई की शाम अपने कैंप ऑफिस में जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश कुछ अधिकारियों के साथ विदेश से आए प्रवासियों के रहने-खाने की व्यवस्था की जानकारी ले रहे थे. तभी शाम के 7.35 बजे उन्होंने मेज पर रखे अपने मोबाइल का स्पीकर ऑन करके एक नंबर डायल किया. उधर से एक महिला की आवाज आई, “नमस्कार, कोविड नाइनटीन लखनऊ के कंट्रोलरूम में आपका स्वागत है.” इसके बाद एक पुरुष की आवाज आती है. वह पूछता है, “नमस्कार मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं.” अभिषेक कहते हैं, “मेरा नाम राहुल है, मैं परिवर्तन चौक के पास से बोल रहा हूं, मुझे परिवार के लिए राशन का किट चाहिए.”

उधर से एक बार फिर नाम पूछा जाता है. अभिषेक दो बार “राहुल-राहुल” बताते हैं. उधर से आवाज आती है, “ये नंबर हमारे रिकार्ड में किसी रमेश कुमार के नाम से दर्ज है.” अभिषेक फोन काट देते हैं. अभिषेक ने एक हफ्ते पहले अपने इसी मोबाइल नंबर से कलेक्ट्रेट में चल रहे कंट्रोलरूम को रमेश के नाम से फोन किया था. दूसरी बार फोन करने पर वह तुरंत पकड़ में आ गए. असल में कोविड के लिए बने कंट्रोल रूम की सक्रियता जांचने के लिए अभिषेक समय-समय पर अलग-अलग मोबाइल नंबर से नाम बदलकर कॉल करते हैं. यह देखते हैं कि काल करने के कितनी देर बाद संबंधित अधिकारी का फोन उनके पास आता है. कहीं कोई शिकायत मिलने पर खुद उसे दूर भी करते हैं.

लॉकडाउन की घोषणा होते ही लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने कलेक्ट्रेट में चल रहे 'इंटीग्रेटेड वन स्टाप कंट्रोल रूम' को 'कोविड-19' कंट्रोल रूम में तब्दील कर दिया. कंट्रोल रूम का एक सॉफ्टवेयर बेस्ड टोल फ्री नंबर है जो तीस पीआर लाइन पर संचालित है. इस कंट्रोल रूम में आने वाली सभी कॉल रिकार्ड होती हैं. कॉल में बताई जाने वाली हर समस्या के निस्तारण के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया गया है. इस कंट्रोल रूम की पूरी निगरानी सीधे अभिषेक करते हैँ. कंट्रोलरूम से सहायता मांगने वाले को मदद पहुंचाने के बाद उसका फीडबैक लिया जाता है. जब जरूरतमंद खुद अपनी समस्या के पूरी तरह से निस्तारित होने का फीडबैक देता है उसके बाद ही कंट्रोलरूम में दर्ज उसकी कॉल को क्लोज किया जाता है.

कॉल करने वाले हर व्यक्ति के पास कंट्रोलरूम से उसके मोबाइल पर मैसेज भी जाता है जिसमें उसका ‘कंप्लेन नंबर’ दर्ज होता है. यही मैसेज समस्या के निस्तारण के लिए संबंधित अधिकारी को भी भेजा जाता है. लॉकडाउन के दौरान 24 घंटे चलने वाले इस कंट्रोलरूम ने एक दिन में अधिकतम साढ़े बारह हजार कॉल रजिस्टर की है और उसी दिन उन्हें क्लोज भी किया है. खास बात यह भी है कि इस कॉल रिकार्ड मैनेजमेंट सिस्टम वाले कंट्रोल रूम में आने वाली हर कॉल की रिकार्डिंग जिलाधिकारी कार्यालय के पास मौजूद है. लॉकडाउन लागू होने के बाद अभिषेक ने लखनऊ में हर सेवाओं का एक पारदर्शी, एकीकृत और पब्लिक ओरिएंटेड (जनोन्मुखी) सिस्टम बनाया है.

कोरोना संक्रमण फैलने के बाद पूरे लखनऊ जिले का सेनेटाइजेशन करना अभिषेक के प्रशासनिक जीवन की एक कठिन चुनौती थी. लॉकडाउन की घोषणा होते ही अभिषेक प्रकाश ने पहले से ही कोरोना संक्रमण की मार झेल रहे चीन, अमेरिका, यूरोपियन देशों के इंटरनेट पर मौजूद वीडियो खंगालने शुरू कर दिए थे. अभिषेक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि इन देशों ने अपने यहां किस तरह से सेनेटाइजेशन का काम किया है? इन वीडियो में दिख रही हाइटेक मशीनों की तकनीकी समझने में अभिषेक की इंजीनियरिंग की पढ़ाई काफी काम आई. अब अभिषेक ने कुछ तकनीकी लोगों को साथ लेकर विदेशी हाइटेक सेनेटाइज मशीन का देसी संस्करण डिजायन किया. इसके लिए एक ट्रैक्टर का इंतजाम किया. पीछे की चेसिस पर सोडियम हाइपोक्लोराइउ के ‘वन परसेंट सल्यूशन’ को रखने के लिए एक पांच हजार लीटर का टैंक फिट किया. इसे दो तरफ से सौ-सौ मीटर की फाइबर और स्टील की ट्यूब के जरिए जेट पावर प्रेशर पंप से जोड़ा गया. इनमें मिस्ड गन लगाई गई. इस तरह जमीन से ही तीन मंजिला से ऊपर तक की इमारतों को सेनेटाइज करने की क्षमता वाली मेकेनाइज्ड मशीन तैयार हो गई. एक मशीन की कीमत करीब साढ़े छह लाख रुपए आई.

अभिषेक ने कंपनियों के 'कार्पोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी' फंड और विधायकों की निधि से पैसों का इंतजाम किया. इनसे नगर निगम, नगर पंचायत और ग्राम पंचायत के लिए मेकेनाइज्ड स्वीपिंग मशीनों की व्यवस्था की. आज लखनऊ नगर निगम में कुल 28 और तहसील में 12 जिओ मेकेनाइज्ड स्वीपिंग मशीनें काम कर रही हैं जिनमें प्रत्येक की क्षमता पांच हजार लीटर सोडियम हाइपोक्लोराइड रखने की है. इसके अलावा 65 मैकेनाइज्ड स्वीपिंग मशीनें एक-एक हजार लीटर की क्षमता वाली हैं. सौ से अधिक मेकेनाइज्ड स्वीपिंग मशीनों से सेनेटाइजेशन की क्षमता रखने वाला लखनऊ यूपी का इकलौता शहर है.

लॉकडाउन के शुरू होते ही लखनऊ शहर की चुनौतियों का भी आगाज हो गया था. इनमें सबसे महत्वपूर्ण था सप्लाई चेन को बनाए रखना. इसके लिए अभिषेक ने तुरंत अपनी एक टीम बनाई जिसमें लखनऊ के सीडीओ और अपर जिलाधिकारी (एडीएम) ट्रांसगोमती विश्वभूषण मिश्र शामिल थे. राशन, सब्जी, फल, दूध जैसी जरूरी चीजों की डोर स्टेप डिलिवरी के लिए अभिषेक ने तुरंत मोबाइल नंबर, लैंडलाइन फोन नंबर और व्हाट्सऐप नंबर पर ऑर्डर लेने की व्यवस्था बनाई. शहर में जितनी भी कंपनियां ऑनलाइन डिलिवरी में लगी थीं उनके साथ बैठक हुई. इनसे जुड़े करीब आठ हजार से अधिक डिलिवरी ब्वाय को इकट्ठा किया गया. लॉकडाउन में आने जाने के लिए इन डिलिवरी ब्वाय को पास जारी किए गए.

लॉकडाउन लागू होने के दो दिन बाद 27 मार्च से डिलिवरी ब्वाय की फौज लखनऊ की सड़कों पर घर-घर सामान पहुंचाने के लिए उतर गई थी. लखनऊ प्रदेश का पहला शहर था जिसने लॉकडाउन लागू होने के बाद इतने बड़े पैमाने पर होम डिलिवरी शुरू की थी. औसतन 38 से 40 हजार घरों में रोज इस तंत्र के जरिए सामान पहुंचने लगा. लॉकडाउन के दौरान अबतक शहर में 15 लाख 86 हजार, 428 से अधिक घरों में होम डिलिवरी की जा चुकी है. घर-घर सामान पहुंचाने की व्यवस्था करने के साथ अभिषेक गरीब और असहाय लोगों को मुफ्त भोजन मुहैया कराने में भी जुट गए थे.

27 मार्च से लखनऊ में 17 कम्युनिटी किचेन शुरू हो गए थे. इसके लिए नगर निगम, लखनऊ विकास प्राधिकरण, तहसील प्रशासन सबको इंटीग्रेट करके एक व्यवस्था बनाई गई. जीपीएस मैपिंग करते हुए हर विभाग को क्षेत्र बांटे गए. हर कम्युनिटी किचेन में सौ फीसद सेनेटाइजेशन प्रोटोकाल लागू किया गया. इन कम्युनिटी किचेन में बनने वाले ‘हॉट कुक्ड मील’ को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए 35 गाड़ियां और दो क्विक रेस्पांस टीम (क्यूआरटी) लगाई गईं. भोजन के लिए जरूरतमंदों को चिन्हित करने के लिए अभिषेक ने नगर निगम के सभी 110 वार्ड और तहसीलों में दो-दो लोगों की टीम बनाकर उसे लगातार सर्वे करते रहने का जिम्मा सौंपा. नगर निगम के दफ्तर में चलने वाले जिले के कंट्रोलरूम और सभी कम्युनिटी किचेन के अपने टोलफ्री नंबर को एक साथ जोड़कर अधिक से अधिक संख्या में जरूरतमंदों तक पहुंचने की रणनीति बनी. भोजन की क्वालिटी और मात्रा के लिए 'क्वालिटी परफार्मेंस इंडीकेटर' के अनुरूप गाइडलाइन जारी की गई. बंटने वाला भोजन पूरी तरह से पैक्ड और इसकी मात्रा कम से कम 300 ग्राम निर्धारित की गई.

भोजन पहुंचाने वाली सभी गाड़ियों में जीपीएस लगा था जिसे स्मार्ट सिटी के कंट्रोल रूम से ट्रैक किया गया. कम्युनिटी किचेन से कितने लोगों को सुबह का भोजन बंटना है, इसकी सूची सुबह नौ बजे तक तैयार हो जाती है. इसी तरह शाम छह बजे तक रात में भोजन पाने वालों की सूची बन जाती है. इसके साथ ही हर जरूरतमंद तक पहुंचने का एक रूटचार्ज बनता है. इसके अनुसार कम्युनिटी किचेन से निकली गाड़ी गरीबों, असहायों को भोजन पहुंचाती है. लॉकडाउन की शुरुआत में रोज डेढ़ लाख से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन कराया गया. कम्युनिटी किचने के जरिए भोजन करने वालों की अधिकतम संख्या एक दिन में एक लाख 85 हजार तक पहुंच गई थी. अब तक इन कम्युनिटी किचेन के जरिए 55 लाख से अधिक लोग भोजन पा चुके हैं, जबकि इसमें प्रवासी मजदूरों को दिए गए मुफ्त भोजन का आंकड़ा शामिल नहीं है.

जरूरतमंदों को लोगों के सहयोग से मुफ्त राशन मुहैया कराने के लिए एक 'ग्रेन बैंक' की भी स्थापना हुई. बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे जो जरूरतमंदों को राशन बांटना चाहते थे इनसे मदद ली गई. ग्रेन बैंक में अब तक एक हजार क्विंटल से अधिक का राशन लोग दान कर चुके हैं. इसमे मिले राशन और अन्य जरूरी सामानों को खरीदकर लखनऊ के जिला प्रशासन ने पहली अप्रैल से गरीबों, जरूरतमंदों राशन किट बांटना शुरू किया जबकि इस बारे में सरकारी आदेश बाद में आया था. प्रदेश सरकार ने अधिक से अधिक लोगों तक राशन पहुंचाने के लिए सभी जिलों को अभियान चलाकर पात्र लोगों के राशन कार्ड तुरंत बनाने का आदेश दिया था. अभिषेक ने आदेश मिलते ही महानगर में सभी जोनल अफसर और सप्लाई विभाग के अफसर की टीमों का गठन किया. लखनऊ में अब तक प्रदेश में सबसे अधिक 68 हजार एक सौ 53 परिवारों के राशन कार्ड बनाए गए हैं.

लॉकडाउन लागू होने बाद लखनऊ के कुछ इलाकों में तेजी से कोरोना संक्रमित लोग सामने आने लगे थे. लखनऊ के कई इलाके हॉटस्पॉट बने. हॉटस्पॉट मैनेजमेंट के लिए अभिषेक ने चार स्तर पर काम किया. इन इलाकों में रोकथाम करने के लिए राजस्व विभाग, नगर निगम और पुलिस के कर्मचारियों को शामिल करते हुए इन्होंने एक स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप बनाया. हॉटस्पाट को चारों ओर से बैरकेडिंग कराकर सील किया गया. इसके अलावा हॉटस्पॉट इलाके में सीसीटीवी कैमरों का जाल बिछाया गया, नाइट विजन कैमरे और साउंड बॉक्स लगाए गए. इन कैमरों की लाइव फीड के जरिए नगर निगम मुख्यालय में बने स्मार्ट सिटी कंट्रोल रूम से चौबीस घंटे की निगरानी शुरू की गई. जरा सी संदिग्ध हलचल दिखाई देने पर स्मार्ट सिटी कंट्रोलरूम से ही हॉटस्पॉट इलाके में घोषणा की जाती है. इसके अलावा इन कैमरों में कैद होने वाली सभी हलचल पर अभिषेक भी अपने मोबाइल से निगरानी रख रहे हैँ.

हॉटस्पॉट इलाकों में राशन, दवाएं से लेकर मोबाइल एटीएम के जरिए घर के दरवाजे पर पैसे भिजवाने की भी व्यवस्था की गई. हॉटस्पॉट के हर एक घर को सुबह और शाम के वक्त सेनेटाइज करने की व्यवस्था भी शुरू हुई. किसी प्रकार की गड़बड़ी से बचने के लिए हर बार सेनेटाइजेशन के बाद घर पर बकायदा एक मार्क लगा दिया जाता है. इसके अलावा लखनऊ में 'स्मार्ट क्वारंटीन सेंटर' तैयार किए गए. हर क्वारंटीन सेंटर को सीसीटीवी कैमरों के जरिए स्मार्ट सिटी कंट्रोल रूम से जोड़ा गया. हर क्वारंटीन सेंटर पर एक प्रशासनिक अधिकारी तैनात करने के साथ डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ तैनात किए गए. क्वारंटीन सेंटर में आने वाले लोगों से स्मार्ट सिटी कंट्रोल रूम के जरिए भोजन, सफाई के बारे में फीडबैक भी लिया जा रहा है.

लॉकडाउन लागू होने के बाद सबसे ज्यादा समस्या उन लोगों के सामने आ गई जो बीमार थे और जिनका अस्पतालों में इलाज चल रहा था. अस्पताल, डॉक्टरों के क्लीनिक बंद हो गए थे. इस समस्या के समाधान के लिए हेलो डॉक्टर नाम से एक टोलफ्री नंबर शुरू किया गया. इसमें सुबह दस बजे से दोपहर दो बजे तक फ्री ओपीडी की सुविधा दी गई. इसमें परामर्श देने के लिए हर विधा के दो सौ से अधिक डॉक्टरों को 'इम्पैनल्ड' किया गया. ऑडियो और वीडियो काल के जरिए मरीजों को परामर्श देने की व्यवस्था के साथ मरीजों को डिजिटली ढंग से डाक्टर का पर्चा मुहैया कराने की सुविधा भी दी गई. यदि कोई मरीज दवाएं खरीदने को निकल पाने में असमर्थ है तो डॉक्टर के पर्चे के अनुसार उसके घर सब्सिडाइज्ड रेट पर दवाएं मुहैया कराने की व्यवस्था भी की गई. गरीब मरीजों को मुफ्त दवाएं पहुंचाई गईं. गरीब और युवतियों को फ्री या सब्सिडाइज्ड रेट पर सेनेटरी पैड मुहैया कराने के लिए 12 सखी वैन चलाई गई.

नागरिकों को मिलने वाली सभी सुविधाओं को 'वन लखनऊ' मोबाइल ऐप में इंटग्रेट किया गया. इससे आरोग्य सेतु ऐप भी जोड़ा गया. इसके साथ एक अनोखी सुविधा 'लखनऊ केयर्स' के नाम से शुरू की गई. यह डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के उन परिवारों के लिए थी जो कोविड के इलाज में अपनी सेवाएं दे रहे थे. कोविड के मेडिकल प्रोटोकाल के अनुसार इलाज में लगे डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ को 14 दिन की ड्यूटी के बाद 14 दिन के ऐक्टिव क्वारंटीन में रहना था. इनके परिवारों को लखनऊ केयर्स से जोड़कर स्पीडी होम डिलिवरी शुरू की. परिवार के बूढ़े-बुजुर्गों की अलग से निगरानी की गई. स्कूलों से टाइ-अप करके बच्चों को फ्री ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा दी गई.

अपने तौर-तरीकों से लखनऊ में नए बदलाव की नींव डालने वाले अभिषेक प्रकाश बिहार में सीवान जिले के रहने वाले हैं. अभिषेक उसी जीरादेई गांव के हैं जहां के देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था. वर्ष 2004 में आइआइटी रुड़की से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिेकेशन में बीटेक करने के बाद अभिषेक ने कुछ समय प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की. इसके बाद वर्ष 2006 में इनका चयन भारतीय सिविल सेवा में हुआ. ये लखीमपुर, बरेली, अलीगढ़, हमीरपुर में जिलाधिकारी के पद पर तैनात रहे. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में लखीमपुर खीरी का जिलाधिकारी रहने के दौरान इन्हें 'गवर्नर्स अवार्ड' मिला. वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान जब अभिषेक डीएम बरेली के पद पर थे उस वक्त इन्हें भारत निर्वाचन आयोग ने 'बेस्ट डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन अफसर' का नेशनल अवार्ड मिला.

जनवरी, 2016 से अक्तूबर 2017 तक अभिषेक पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के एमडी रहे. यहां इन्होंने पहली बार बिजली बिलों के ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था लागू की. अभिषेक ने विभिन्न कंपनियों के सीएसआर फंड से दस हजार ईपॉस मशीनें खरीदीं. मीटर रीडिंग के लिए जाने वाले कर्मचारियों को ये मशीनें दी गईं. इनके जरिए घर मीटर रीडिंग और बिल देने के साथ इसके भुगतान की भी व्यवस्था प्रदेश में पहली बार लागू हुई. इसके लिए अभिषेक को नेशनल डिजिटल अवार्ड मिला था. इस वर्ष फरवरी में लखनऊ के आशियाना में डिफेंस एक्सपो का सफलतापूर्वक आयोजन में जिलाधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण अभिषेक को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार से प्रशस्ति पत्र भी मिला. लेकिन लॉकडाउन के दौरान परेशान जनता के चेहरे पर सुकून लाने से बड़ा कोई प्रशस्ति पत्र नहीं है.

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