इतिहास से भी पुरातन, परंपराओं से भी पुराना, संसार के प्रचीनतम शहरों में एक वाराणसी सभवत: पहली बार किसी विश्वव्यापी महामारी से लड़ने को तैयार हो रही थी. कुछ दिक्कतें भी थीं. सघन बसा शहर और चकल्लस के लिए मशहूर काशीवासी फूड होम डिलिवरी, आनलाइन शापिंग जैसे डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग करने में थोड़ा सुस्त हैं. पूर्वांचल के इस सबसे बड़े शहर ने बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी जनसंख्या को अपने दामन में जगह दे रखी है. देश में जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ रहे थे वाराणसी जिला प्रशासन के सामने लोगों तक सीधे पहुंच बनाने की चुनौती भी बड़ी होती जा रही थी.
चूंकि यह इलाका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, सो लोगों की अपेक्षाएं भी खूब थीं. लोग यहां भी कुछ ऐसी ही हाइटेक व्यवस्था की आस लगा रहे थे जैसा की देश के बड़े मेट्रों शहरों में दिख रही थी. जरूरतमंद की मदद करने के साथ अपने कर्मचारियों की सुरक्षा का ख्याल रखते हुए उन्हें प्रेरित करते रहना वाराणसी जिला प्रशासन के सामने एक बड़ा लक्ष्य था. प्रशासन ने यह तय किया कि उनके पास जो मौजूदा संसाधन हैं उन्हें तुरंत एक ऐसे प्लेटफार्म पर ले आएं जहां से डायरेक्शन, मॉनीटरिंग और मोटीवेशन का काम किया जा सके.
वाराणसी के सिगरा इलाके में फरवरी, 2019 से 'काशी इंटीग्रेटेड कंट्रोल ऐंड कमांड सेंटर' (केआइ ट्रिपल सी) काम कर रहा था. यह स्मार्ट सिटी का एक कंट्रोलरूम है. इसमें शहर भर में लगे 400 कैमरों से ‘इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम’ के जरिए वाराणसी के 162 चौराहों और यातायात व्यवस्था की निगरानी, ई-चालान के अलावा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम की मॉनीटरिंग की जा रही थी. इसके अलावा इस इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम से 'एडवांस सिर्विलांस सिस्टम' को लागू करने और काशी की एकीकृत वेबसाइट तैयार करने का काम चल रहा था. काशी इंटीग्रेटेड कंट्रोल ऐंड कमांड सेंटर के पास निगरानी का एक पूरा तंत्र, विभिन्न योजनाओं को समाहित करते हुए 'इंटीग्रेटेड डैशबोर्ड' तैयार करने के लिए तकनीकी दक्ष लोगों की एक टीम, टेलीफोन लाइंस, डेडीकेटेड लीज लाइन, सर्वर मौजूद था.
वाराणसी के म्युनिसिपल कमिश्नर (नगर आयुक्त) और स्मार्ट सिटी के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) गौरांग राठी ने काशी इंटीग्रेटेड कंट्रोल ऐंड कमांड सेंटर के जरिए एक तंत्र बनाकर लॉकडउन के दौरान वाराणसी में जरूरतमंदों की मदद करने का प्रस्ताव जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा के सामने रखा. कौशलराज को यह प्रस्ताव जंचा और उन्होंने तुरंत कमिश्नर दीपक अग्रवाल को इसके बारे में बताया. कमिश्नर की अनुमति मिलते ही गौरांग की टीम युद्धस्तर पर जुट गई और पहली अप्रैल से काशी इंटीग्रेटेड कंट्रोल ऐंड कमांड सेंटर, कोविड-19 इंटीग्रेटेड वाररूम में तब्दील हो गया. सभी जरूरी सेवाएं एक छत के नीचे आ गईं.
इंटरेक्टिव वायस रिस्पांस सिस्टम (आइवीआरएस) आधारित हेल्पडेस्क से केंद्रीकृत निगरानी और फीडबैक की व्यवस्था शुरू हुई. इसके लिए गौरांग ने कमांड सेंटर में 40 लोगों की एक टीम को आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्ट के साथ चौबीस घंटे काम पर लगाया. इसकी एक बैक-हैंड टीम थी जो कंट्रोलरूम को मिले आंकड़ों को कंपाइल करके एक सिस्टम में लाती. यहां से इन आंकड़ों को क्षेत्रवार छांटा जाता. यह देखा जाता था कि किस क्षेत्र से किस तरह की समस्याएं आ रही हैं. इसके बाद इन आंकड़ों का क्षेत्रवार हिटमैप बनाया जाता. इस हिटमैप के आधार पर दूसरी टीम लोगों से फोन करके उनकी समस्याओं पर फीडबैक लेती. इस तरह से जरूरमंदों को भोजन मुहैया कराने के साथ सैनिटाइजेशन की मॉनीटरिंग शुरू हुई.
गौरांग ने काशी में एक खास तरह डिजिटल एनालिटिक्स प्लेटफार्म भी तैयार कराया. वाराणसी के जीआइएस मैप पर कोआर्डिनेट्स लेकर अलग-अलग सूचनाओं को प्लॉट कर नतीजे निकालते हैं. इसमें बाहर से आ रहे लोगों का भी एक हिटमैप भी तैयार किया गया. इससे यह पता चल गया कि किस इलाके में कितने लोग बाहर से आए हैं. पुलिस और प्रशासन के सभी सीनियर अफसर को इस एक लॉगइन आइडी और पासवर्ड दिया गया. एनालिटिक्स में कलर कोडिंग के जरिए यह साफ पता चल जाता था कि कहां बाहर से आने वाले लोगों की संख्या अधिक है और कहां कम. इसके बाद अधिकारी अपनी टीम के जरिए बाहर से आए लोगों की टेस्टिंग और कान्टैक्ट ट्रेसिंग कराते थे.
गौरांग ने वाराणसी में सभी 480 पथ विक्रेताओं जैसे ठेला चलाने वाले आदि का मोबाइल नंबर समेत पूरा डेटा इकट्ठा किया. इनके आइकार्ड दिए गए और बेचे जाने वाले सभी सामान के मूल्य भी तय कर दिए गए. इन पथ विक्रेताओं को वाराणसी के जीआइएस मैप पर प्लॉट कर दिया. इस तरह से एनालिटिक्स का प्रयोग लाकडाउन में लोगों तक सामान पहुंचाने में किया गया. कंट्रोल रूम से इन पथ विक्रेताओं पर नजर रखी जाने लगी. कंटेनमेंट जोन में लोगों को सामान पहुंच रहा है कि नहीं, किस दाम पर सामान बेचा जा रहा है, यह सारी जानकारियां लगातार ली जाने लगीं. लॉकडाउन के दौरान लोगों को दैनिक जरूरतों का सामान पहुंचाने के लिए 'किराना लिंकर' नामक एजेंसी की मदद ली गई. इस एजेंसी ने एक सिस्टम तैयार किया. इसमें गूगल मैप पर अपने घर का पता टाइप करते ही उसके आसपास की सभी दुकानें दिखाई देने लगीं. मैप पर मौजूद बैलून पर क्लिक करते ही स्टोर की पूरी जानकारी मोबाइल स्क्रीन पर आने लगी. इसके जरिए लोगों ने जरूरी सामानों का ऑर्डर किया और किराना स्टोर से वह उनके घर पहुंचाया जाने लगा.
गौरांग ने वाराणसी में सैनिटाइजेशन के लिए क्विक रिस्पांस टीम बना दी थी. इसमें 14 गाड़ियां नगर निगम और पांच गाड़ियां अग्निशमन विभाग की थीं. इसके अलावा 110 सफाईकर्मी बाइक या पैदल जाकर कंधे पर मशीन टांग कर सैनिटाइजेशन का काम कर रहे थे. सैनिटाइजेशन में लगी सभी गाड़ियों में जीपीएस लगा था जिसके जरिए इनकी रियल टाइम मॉनिटरिंग की जा रही थी. वाराणसी उत्तरी भारत में पहला शहर था जहां ड्रोन के जरिए सैनिटाइजेशन कराया गया. चेन्नई की एक टीम ने नगर निगम की टीम को ड्रोन से सैनिटाइजेशन करने का प्रशिक्षण दिया. लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू होते ही 15 अप्रैल से वाराणसी शहर में ड्रोन से 1750 एकड़ जमीन का सैनिटाइजेशन शुरू हुआ.
होली के बाद जैसे ही देश भर में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने लगे थे वाराणसी में स्मार्ट सिटी के पब्लिक एड्रेस सिस्टम के जरिए पूरे शहर में कोविड-19 की बीमारी के लक्षण और उससे बचाव के तौर-तरीकों की जानकारी देनी शुरू हो गई थी. इसके साथ ही वाराणसी के 23 चौराहों पर विजुअल डिसप्ले मैसेज बोर्ड भी लगे हैं. इनके जरिए भी कोरोना से जुड़ी जानकारियों दी जाने लगी थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 22 मार्च को पूरे देश में जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी तभी गौरांग एक मोबाइल ऐप तैयार करने में जुट गए थे.
25 मार्च से लॉकडाउन लागू होते ही गौरांग ने 'सेफ काशी' नाम से एक मोबाइल ऐप तैयार कर लिया था. नगर निगम की गाड़ियों और हाउस टैक्स के आंकड़ों में दर्ज मोबाइल नंबर के जरिए इस ऐप का प्रचार-प्रसार कराया गया. इसके जरिए लाकडाउन के दौरान वाराणसी की जनता को मिलने वाली सभी जानकारियां भेजी जाने लगीं. लॉकडाउन के दौरान जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने जो जितने भी निर्देश जारी किए सब बिना देर किए सेफ काशी मोबाइल एप पर दिखाइ देने लगे. इसके अलावा इस मोबाइल ऐप के जरिए कोई भी व्यक्ति अपने आसपास कोरोना का संदिग्ध मरीज दिखने पर उसकी जानकारी सीधे फोन के जरिए कंट्रोल रूम को दे सकता था. इसमें एक रियल टाइम डैशबोर्ड भी बनाया गया जिसमें वाराणसी में कोविड मरीजों से लेकर अन्य सभी जानकारियां मौजूद हैं.
इसी सेफ काशी ऐप में वाराणसी के फार्मेसी और किराना स्टोर के नंबर भी दिए गए. मोबाइल ऐप के जरिए लोग सीधे डॉक्टर को फोन करके परामर्श ले सकते थे. एक अप्रैल से कोविड कंट्रोल रूम शुरू होने के बाद डाक्टरों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए परामर्श लेने की सुविधा भी शुरू हुई. इस तरह से वाराणसी के कमांड कंट्रोल रूम से न केवल सारी जानकारियां एक जगह एकत्र की गईं बल्कि रोज इन जानकारियों का एनालिटिक्स भी किया गया. बेंगलूरू को छोड़कर लॉकडाउन में डिजिटल प्लेटफार्म का सबसे अच्छा उपयोग वाराणसी में ही किया गया. केंद्र सरकार में आवास एवं नगरीय विकास मंत्रालय में सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने ट्वीट करके वाराणसी के मॉडल की प्रशंसा की है.
इतना ही नहीं लॉकडाउन शुरू होने के बाद एल-2 हास्पिटल के डॉक्टरों ने फेसशील्ड की मांग को लेकर वाराणसी में धरना दे दिया था. तभी गौरांग ने इन डॉक्टरों से बातचीत की. इन्हें समझाया और भरोसा दिया किया वह नगर निगम से फेस शील्ड बनवाकर डॉक्टरों को दिलाएंगे. इसके बाद गौरांग ने इंटरनेट पर गहन अध्ययन किया तो पता चला कि प्रोजेक्टर की स्क्रीन में लगने वाली शीट का उपयोग फेसशील्ड के लिए किया जा सकता है. 'नेशनल अर्बन लिवलीहुड मिशन' से जुड़ी करीब 65 महिला स्वयं सहायता समूहों से गौरांग ने न केवल मास्क बनवाया बल्कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के डॉक्टरों से प्रमाणिक पीपीई किट भी तैयार कराई. आज पूरे वाराणसी में डॉक्टर नगर निगम से तैयार पीपीई किट और फेसशील्ड उपयोग कर रहे हैं. इसके अलावा प्रयागराज, बरेली जिला प्रशासन, इंडियन एयरफोर्स ने वाराणसी में बनी पीपीई किट मंगवाई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग करके लॉकडाउन में जरूरी सेवाएं मुहैया कराने वाला अग्रणी जिला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गौरांग राठी मेरठ के पांडव नगर के रहने वाले हैं. पहली से बारहवीं तक की पढ़ाई मेरठ के दीवान पब्लिक स्कूल से करने के बाद गौरांग ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग (आइआइटी) दिल्ली में प्रवेश लिया. वर्ष 2009 में आइआइटी दिल्ली से टेक्सटाइल टेक्नोलाजी से बीटेक करने के बाद इन्होंने लंदन की एक बैंकिंग कंपनी ने ढाइ साल नौकरी की. काफी अच्छी सैलरी पाने के बाद भी गौरांग खुद से संतुष्ट नहीं थे. वर्ष 2012 में इन्होंने नौकरी छोड़कर सिविल सेवा की तैयारी करनी शुरू कर दी.
वर्ष 2014 में इनका चयन भारतीय सिविल सेवा में हुआ. इनकी ट्रेनिंग मुरादाबाद में हुई. यहां इन्हें प्रशिक्षु आइएएस के रूप में उपचुनाव करवाने का मौका मिला. पहली पोस्टिंग इन्हें बहराइच में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के रूप में हुई. अप्रैल, 2018 में ये वाराणसी के सीडीओ बने और अक्तूबर 2019 में इसी शहर के नगर आयुक्त बने. इसके बाद से भोले की नगरी में गौरांग अपने डिजिटल अंदाज से लोगों की जरूरतों को पूरा करने में जुटे हैं.
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