प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी का 14 जून को हुआ पतन पाकिस्तानी टेलीविजन पर अब तक का सबसे बड़ा रियल्टी शो बन गया था. उस दिन कार्यपालिका, राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और न्यायपालिका यानी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी के बीच की लड़ाई अपने अंजाम पर पहुंच गई.
पीपीपी के 2008 में सत्ता में आने के बाद से ही चौधरी ने जरदारी को भ्रष्टाचार के आरोपों के सिलसिले में अपने निशाने पर लिया हुआ था. जनरल परवेज मुशर्रफ ने भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे जिन 8,000 लोगों को नेशनल रीकंसीलिएशन ऑर्डिनेंस के तहत माफी दे दी थी, उसे चौधरी ने पलट दिया और सरकार को आदेश दिया कि वह राष्ट्रपति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करे.
जरदारी ने इसका जवाब दिया, लेकिन चार साल बाद बीते 12 जून को सरकार ने एक रियल एस्टेट कारोबारी को चीफ जस्टिस पर हमला करने के लिए तैयार किया. पाकिस्तान में अमीर लोगों की सूची में 12वें पायदान पर बैठे 58 साल के मलिक रियाज हुसैन ने दावा कर डाला कि चौधरी के बेटे अरसलान को उन्होंने अपने हक में अदालती फैसले करवाने के बदले 34.78 करोड़ रु. की रिश्वत दी थी.
उसूलों के पाबंद चीफ जस्टिस की प्रतिष्ठा पर यह आरोप बदनुमा दाग लगाने के लिए काफी था. लेकिन जरदारी के दोस्त मियां अमीर महमूद के उर्दू टीवी चैनल दुनिया न्यूज के स्टुडियो में हुई ऑफ एयर बातचीत अचानक लीक हो गई, जिससे पता चला कि चौधरी पर एक साजिश के तहत इल्जाम लगाया गया था.
दुनिया स्पेशल में रियाज से पूछताछ को दिखाया जाना था जिसके मेजबान थे पाकिस्तान के दो बड़े टीवी ऐंकर मुबशिर लुकमान और मेहर बुखारी. ऐंकरों ने पूछताछ करने की बजाए रियाज के साथ मिलकर चौधरी और उनके बेटे को बदनाम करने की तरकीब निकाली. लुकमान ने फोन पर किसी से बात की जिसे उन्होंने प्रधानमंत्री गिलानी का बेटा और पंजाब असेंबली का सदस्य, 31 वर्षीय अब्दुल कादिर गिलानी बताया.
रियाज ने एक घिसा-पिटा सवाल करने के लिए उकसाया तो एक ऐंकर ने इस पर ऐतराज जताया. इस पर रियल एस्टेट कारोबारी रियाज ने साफ कर दिया कि बातचीत उनके हिसाब से ही चलेगी. उन्होंने कहा, ''लेकिन मैं ऐसा चाहता हूं...'' उन्होंने जोर देकर कहा, ''मैं इसे सामने लाना चाहता हूं ताकि चीफ जस्टिस तक बात को ले जा सकूं.''
मलिक रियाज का यह प्लांटेड इंटरव्यू 14 जून को यू-ट्यूब पर अपलोड हो गया. कुछ ही घंटों के भीतर इसकी खबर आग की तरह फैल गई और एक हफ्ते के भीतर इसे 2,00,000 से ज्यादा लोगों ने देखा.
19 जून को चौधरी ने पलट दांव खेला और पाकिस्तान के इतिहास में पहला न्यायिक तख्तापलट हुआ. चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री गिलानी को इस आरोप में बरखास्त कर दिया कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राष्ट्रपति का बचाव कर रहे थे. एक बार फिर पाकिस्तान नए सियासी संकट में घिर गया. उसके लिए इससे बुरा वक्त नहीं हो सकता था. पाकिस्तान में प्रशासनिक ढांचा ढह चुका है. चिलचिलाती गर्मी में 20 घंटे की बिजली कटौती ने पाकिस्तानियों को सड़कों पर ला दिया है. बुनियादी सेवाएं चरमरा गई हैं. गुजरांवाला, फैसलाबाद, कसूर, सरगोधा और ओकारा में हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झ्ड़पें हुई हैं. उन्होंने थानों पर हमला कर उसे तहस-नहस किया है, स्थानीय बिजली बोर्ड के दफ्तरों में आग लगा दी है और राजमार्गों को जाम कर दिया है. बीते 18 जून को प्रदर्शनकारियों ने पीपीपी के एक नेशनल असेंबली सदस्य के घर पर हमला कर दिया. ठीक उसी दिन प्रदर्शनकारियों ने लाहौर-सियालकोट सवारी ट्रेन की तीन बोगियों में गुजरांवाला स्टेशन पर आग लगा दी.
विदेशी निवेश नदारद है, अर्थव्यवस्था 3 फीसदी की सालाना वृद्धि दर पर रेंग रही है और जो पैसा आ रहा है, वह अफीम और बंदूक की नली के गैर-कानूनी रास्तों से आ रहा है. नेशनल असेंबली के एक सदस्य कहते हैं, ''नकद सिर्फ पख्तूनों के पास है जिनका अफीम के धंधे और अफगानिस्तान की सीमा पर लंडी कोटल में लगने वाले हथियारों के बाजार पर कब्जा है.'' भ्रष्टाचार अभूतपूर्व है-ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 2011 में जारी सूची के मुताबिक, 183 देशों की सूची में पाकिस्तान 134वें नंबर पर है.
इस्लामाबाद को सबसे ज्यादा मदद और पैसे देने वाले वॉशिंगटन के साथ भी रिश्ते संकट में हैं. अफगानिस्तान में आपूर्ति के रास्तों को दोबारा खोलने के लिए पाकिस्तान को राजी करने की अमेरिकी कोशिशें नाकाम रही हैं क्योंकि अफगानिस्तान जाने वाले हर ट्रक पर पाकिस्तान अमेरिका से 5,000 डॉलर मांग रहा है जबकि वह सिर्फ 250 डॉलर प्रति ट्रक देने को तैयार है. यह मार्ग नवंबर में अमेरिकी हेलिकॉप्टर द्वारा गलती से किए गए एक हमले के बाद से बंद पड़ा है. उस हमले में 24 पाकिस्तानी जवानों की मौत हो गई थी.
जातीय और सांप्रदायिक हिंसा ने देश का ताना-बाना छिन्न-भिन्न कर दिया है. पांच लाख की मजबूत फौज का करीब एक-तिहाई बलूचिस्तान और संघ प्रशासित कबायली इलाके (फाटा) में बगावत को थामने में लगा है. पिछले साल 476 बड़े आतंकी हमलों में 4,400 से ज्यादा लोग मारे गए थे. सबसे बड़ा शहर कराची नस्लीय दंगों का अखाड़ा बन चुका है, जहां 2011 के बाद से 2,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. दूसरी जगहों पर कट्टरपंथी पहले से ही कम हो रहे उदार लोगों पर कहर ढा रहे हैं.
जरदारी के लिए राहत की बात बस इतनी रही कि उनका बेटा, 23 वर्षीय बिलावल भुट्टो जरदारी ने ऑक्सफोर्ड के डिसर्टेशन में अव्वल दर्जा हासिल किया. यह बात अलग है कि अगर जरदारी की नाकामियों पर किसी को नंबर देना हो, तो वे फेल हो जाएंगे. पाकिस्तान में लोकतंत्र के चारों खंबे एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं. कार्यपालिका और न्यायपालिका एक-दूसरे को पूरी तरह तबाह करने पर तुली हुई हैं. कट्टरपंथ के उभार के खिलाफ लोग जिस मीडिया की ओर आखिरी राहत के रूप में देखते थे, उसकी विश्वसनीयता भी हमलों के डर से घिस चुकी है.
काम करने की सजा पत्रकारों को यह मिली है कि 2000 के बाद से अब तक 39 पत्रकार मारे जा चुके हैं. जो बाकी हैं, वे बिकने को अभिशप्त हैं-''रियाज से लुकमान ऑफ एयर कहता है, ''तुमने हामिद मीर को जैसा बंगला दिलवाया, क्या मुझे भी वैसा मिल सकता है?'' इस बार विडंबना यह है कि चुनी हुई सरकारों के तख्तापलट के लिए कुख्यात पाकिस्तानी फौज मौजूदा संकट में दूर-दूर तक कहीं नहीं है.
गिलानी दरअसल उधार की जिंदगी जी रहे थे. बीते 26 अप्रैल को चीफ जस्टिस ने कोर्ट की अवमानना की उन्हें प्रतीकात्मक सजा दी-''उन्हें 30 सेकंड कैद सुनाई गई थी. अब उनके जाने के बाद न्यायपालिका के निशाने पर जरदारी हैं. पाकिस्तान ऑन द ब्रिंक नाम की किताब लिखने वाले अहमद रशीद का अनुमान है कि चिट्ठी कांड (मेमोगेट) पर कोर्ट और जरदारी के बीच अभी और खतरनाक संघर्ष होना बाकी है. अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने कथित तौर पर जरदारी के कहने पर ही पाकिस्तानी फौज की नकव्ल कसने की गुहार अमेरिका से लगाई थी.
अहमद कहते हैं, ''अब वह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट के पाले में है और आने वाले एकाध हफ्तों में शायद सुनवाई शुरू हो जाए. यदि ऐसा होता है तो मुल्क से गद्दारी के इल्जाम में जरदारी और दूसरे नेताओं को मुजरिम करार दिया जा सकता है. सभी के लिए अच्छा होगा कि इस नौबत से बचा जाए और जल्द चुनाव करवाना पाकिस्तान को वापस पटरी पर ला सकता है.''
जरदारी जब तक राष्ट्रपति हैं, उनके सिर पर संविधान के अनुच्छेद 248 का साया है. सुप्रीम कोर्ट ने चौधरी के नेतृत्व में 2009 के बाद से जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले खोलने का दबाव सरकार पर बनाया है, जिसमें दो बड़े मामले पैसों के हेर-फव्र और रिश्वतखोरी के हैं.
पाकिस्तान की एक अदालत ने 1999 में जरदारी और उनकी बीवी बेनजीर भुट्टो को पांच साल कैद की सजा सुनाई थी. उस वक्त भुट्टो लंदन में निर्वासन पर थीं और उन्हें अपने दूसरे प्रधानमंत्रित्वकाल में एक स्विस फर्म से रिश्वत लेने का दोषी पाया गया था. इसके बाद 2003 में एक स्विस अदालत ने जरदारी, भुट्टो और उनकी मां नुसरत भुट्टो को पाकिस्तान सरकार के साथ कारोबार करने वाली स्विस फर्मों से 1.19 करोड़ डॉलर की रिश्वत लेने और इसके लिए स्विस बैंक खातों का दुरुपयोग करने का दोषी ठहराया था.
बीती 10 जनवरी को अदालत ने गिलानी पर आरोप लगाया कि वे ''इज्जतमाब शख्स'' नहीं हैं क्योंकि उन्होंने जरदारी के खिलाफ मामलों को दोबारा खोलने के लिए स्विस अधिकारियों को खत लिखने से इनकार कर दिया है. जरदारी आज तक अपनी बीवी के कातिलों को सजा नहीं दिलवा सके और इन सबकी वजह से अपनी शोहरत पर बट्टा लगवा चुके हैं.
वे लगातार इस मामले पर अपने कदम पीछे खींचते रहे और समय-समय पर अपनी सियासी जिंदगी बचाने के लिए किसी-न-किसी वफादार की कुर्बानी देते रहे हैं. सबसे पहले उनके पुराने वफादार हक्कानी को नवंबर, 2011 में अमेरिका के राजदूत के पद से हटाया गया. इस साल जनवरी में जब गिलानी ने फौज पर इल्जाम लगाया कि उसने मेमोगेट में सुप्रीम कोर्ट के सामने गवाही देकर संविधान का उल्लंघन किया है, तो न्यायपालिका फौज के साथ खड़ी हो गई. जरदारी ने दोनों को राहत देने के लिए संकव्त दिया कि वे अपने प्रधानमंत्री को कुर्बान कर सकते हैं.
यही वजह है कि उन्होंने गिलानी को बर्खास्त किए जाने का अब तक विरोध नहीं किया. इसके बजाए ठीक एक दिन बाद पीपीपी ने अपने सबसे बड़े सहयोगी पीएमएल (क्यू) के साथ संयुक्त रूप से 65 वर्षीय मखदूम शहाबुद्दीन को अगले प्रधानमंत्री के लिए चुन लिया. शहाबुद्दीन दक्षिणी पंजाब के पीपीपी नेता हैं.
लेकिन बाद में पीपीपी नेताओं को समझ में आया कि शहाबुद्दीन का नाम चीफ जस्टिस को नहीं भाएगा क्योंकि 2011 में चौधरी ने पाकिस्तान की ऐंटी नारकोटिक्स फोर्स को शहाबुद्दीन की हिरासत में लेकर पूछताछ करने का आदेश दिया था. शहाबुद्दीन ने 2009 में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए नौ टन एफीड्रीन के आयात को मंजूरी दी थी. इस मादक पदार्थ का आयात दो फार्मा कंपनियों ने किया था.
एफीड्रीन का इस्तेमाल सर्दी-खांसी की दवाओं में तो होता ही है, इसे हेरोइन को शुद्ध बनाने के काम में भी लाया जाता है. 21 जून को एक अदालत ने इसी मामले में उनके खिलाफ गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. पीपीपी ने शहाबुद्दीन के इस रिकॉर्ड को देखते हुए राजा परवेज अशरफ के नाम पर मोहर लगा दी और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. हालांकि अशरफ के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चल रहा है.
हाल तक पाकिस्तान का तेजी से उभरता मीडिया 15 चैनलों की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के पीछे खड़ा था, लेकिन टीवी पर चौधरी पर झूठा आरोप गढ़े जाने की घटना ने दिखा दिया है कि पाकिस्तान में पत्रकारिता भी बिक चुकी है. 15 जून को सुप्रीम कोर्ट के सभी 16 न्यायाधीशों ने रियाज वाला वीडियो देखा. उन्होंने संवादों पर घोर आपत्ति जताते हुए दो न्यायाधीशों की एक कमेटी बना दी, जिसका काम चैनल के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने की संभावनाएं तलाशना था.
इस फैसले का श्रेय पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख इमरान खान ले उड़े. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''हमारी पार्टी द्वारा दायर याचिका के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने का फैसला किया है. न्यायपालिका ने बहुत बड़ा काम किया है और हम इसे पलटने की इजाजत नहीं दे सकते'' (देखें बॉक्स).
हो सकता है कि जरदारी की सरकार पाकिस्तान में कार्यकाल पूरा करने वाली वहां की पहली सरकार बन जाए, लेकिन राष्ट्रपति के लालच और नाकाबिलियत ने यह तय कर दिया है कि लोग उन्हें दोबारा मौका नहीं देंगे.