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रणवीर सेना के सरगना का खूनी अंत

रणवीर सेना के मुखिया की हत्या से सामाजिक संतुलन को खतरा. पिछले साल रिहाई के बाद से खामोश रहे ब्रह्मेश्वर सिंह ने हाल ही में नीतीश सरकार के फैसलों को चुनौती देते हुए अपने सियासी मंसूबों को जाहिर किया था.

ब्रह्मेश्‍वर मुखिया की हत्या के बाद हिंसा
ब्रह्मेश्‍वर मुखिया की हत्या के बाद हिंसा
अपडेटेड 5 जून , 2012

'मुखिया' (66) की एक जून को तड़के किसी ने गोली मारकर हत्या कर दी. इसके बाद उसके समर्थकों ने मध्य बिहार के कुछ जिलों में भारी बवाल काटा. बिहार के भोजपुर जिले में स्थित कैरा में यह हत्या तब हुई जब मुखिया सुबह टहलने के लिए निकला हुआ था. अज्ञात बंदूकधारियों ने उस पर हमला बोल करीब 40 गोलिया चलाईं.

नब्बे के दशक में बिहार में हुए 36 नरसंहारों के पीछे ब्रह्मेश्वर सिंह का ही हाथ माना जाता है जिनमें कम-से-कम 400 लोगों की हत्या कर दी गई थी. इनमें 1997 में हुआ कुख्यात लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड भी है जिसमें 63 दलितों को एक साथ खड़ा कर के मार दिया गया था. इन नरसंहारों के आरोप में मुखिया को अगस्त 2002 में गिरफ्तार किया गया था और वह पिछले ही साल जमानत पर रिहा हुआ था.

इन दस साल के दौरान उसने चुप्पी साधे रखी थी और महीने भर पहले ही अपनी नई रणनीति की घोषणा की थी. बीती 7 मई को मुखिया ने 'किसानों और खेत मजदूरों' को संगठित करने का संकल्प लिया था ताकि किसानों के हितों की ओर सरकार का ध्यान खींचने के लिए एक अहिंसक आंदोलन चलाया जा सके.

इसके अलावा मुखिया ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बथानी टोला हत्याकांड के 23 दोषियों को बरी किए जाने के फैसले को नीतीश सरकार द्वारा चुनौती देने का विरोध किया था. जुलाई 1996 में हुए बथानी टोला नरसंहार में 21 दलितों को मौत के घाट उतार दिया गया था. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मुखिया की मंशा इस मुद्दे का इस्तेमाल करके अपने कमजोर पड़ चुके आधार को दोबारा हासिल करने की थी. उसने हालांकि किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से इनकार किया था, लेकिन इस बारे में किसी को शक नहीं था कि वह सत्ता के एक केंद्र में रूप में उभरने की इच्छा पाले बैठा है.

जनता के कल्याण के लिए समाज सेवा करने के उसके हवाई दावों के बीच यह आशंका जताई जा रही थी कि ब्रह्मेश्वर रणवीर सेना को नए सिरे से जिंदा कर के बिहार में अपनी खोई हुई जमीन तलाशने की कवायद में है.

यह हत्या उसके पुराने कु कृत्यों का परिणाम है या हालिया उभार का, इस बाबत अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन नब्बे के दशक में रणवीर सेना के नाम से बेहद बर्बर निजी सेना चलाने वाले मुखिया की हत्या बिहार के नाजुक सामाजिक संतुलन के लिहाज से गंभीर खतरा भी है. इस घटना से बिहार का सियासी पारा अचानक चढ़ गया है. राजद के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और भाजपा की बिहार इकाई अध्यक्ष सी.पी. ठाकुर ने इस हत्या की सीबीआइ से जांच करवाने की मांग कर डाली है.

ब्रह्मेश्वर सिंह 1971 में पहली बार भोजपुर जिले के संदेश ब्लॉक की खोपिरा पंचायत का प्रमुख चुना गया था, तब से उसके नाम के आगे 'मुखिया' जुड़ गया. ब्रह्मेश्वर को बेलूर ब्लॉक के मुखिया शिव नारायण चौधरी से 1994 में रणवीर किसान संघर्ष समिति की कमान मिली थी और ऐसा होते ही पासा पलट गया. ब्रह्मेश्वर के वर्चस्व के शिखर पर पहुंचने की वजह थी उसकी सशस्त्र सेना से जमींदारों को मिलने वाली राहत और संरक्षण, जो उस इलाके में अतिवामपंथी समूहों के उभार के चलते असुरक्षित हो चुके थे.

इसी दौरान यादवों ने सवर्ण और वामपंथी गिरोहों से लड़ने के लिए लोरिक सेना बना ली थी. कुर्मियों की भी भूमि सेना थी, जबकि राजपूत भूस्वामियों की सेना का नाम था सनलाइट सेना. इसके अलावा आजाद सेना, श्रीकृष्ण सेना, कुंवर सेना और गंगा सेनाएं भी सक्रिय थीं. सेनाओं और हिंसा के उस दौर में तो मुखिया का कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन शांति का वक्त इस बूढ़े लड़ाके पर भारी गुजरा.

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