जब दिन फिरते हैं, तो कौड़ी के भाव बिकने वाली चीज भी लाखों में बिकने लगती है. जैसलमेर के किसानों के लिए कुछ ऐसा ही बहाना बनकर आई है ग्वार की फसल. कुछ समय पहले तक किसान जिसकी खेती से जी चुराया करते थे, अब उसी को लेकर जमकर उत्साह में हैं. यह उत्साह होना लाजिमी भी है क्योंकि उनके पास कोडियासर गांव के मुकेश गौड़ जैसी मिसाल जो है. कुछ समय पहले तक सिर पर खुद की छत के लिए तरसने वाले गौड़ के पास अब सिर्फ घर ही नहीं है बल्कि वे स्कॉर्पियो की सवारी भी करते हैं और नई जमीन खरीदने जा रहे हैं.
ग्वार से जीवन बदलने की कई दास्तानें जैसलमेर में मौजूद हैं. विशेष रूप से देश के शुष्क इलाकों में बोई जाने वाली ग्वार की फसल में आई उछाल, विदेश की ही देन है. अमेरिका सहित विश्व के कई देशों में तेल-गैस के लिए खोदे जाने वाले कुओं में पेस्टिंग के लिए ग्वार गम पाउडर की मांग इतनी बढ़ गई कि ग्वार के दाम आकाश छू रहे हैं. और इसके साथ ही, किसानों को ग्वार में नए सपने दिखने शुरू हो गए हैं. कोई किसान चमचमाती नई गाड़ी खरीद रहा है तो कोई आशियाने के अपने ख्वाब को पूरा करने में लगा है.
रबी की पिछली फसल में पाकिस्तान की सीमा से सटे रेगिस्तानी जिले जैसलमेर में करीब 16 लाख बोरी से ज्यादा ग्वार की पैदावार हुई यानी करीब 250 करोड़ रु. से ज्यादा की फसल. जैसे ही ग्वार की कटाई शुरू हुई, वैसे ही ग्वार ने ऊंची छलांगें लगानी शुरू कर दीं. 15-20 रु. प्रति किलो बिकने वाला ग्वार कुछ ही दिनों में 300 रु. तक जा पहुंचा. इसी तरह 50 रु. प्रति किलो बिकने वाले ग्वार गम पाउडर ने भी 1,000 रु. के आंकड़े को छू लिया.
हालांकि इसमें किसानों को इतना ज्यादा फायदा नहीं हुआ जितना कारोबारियों को क्योंकि किसानों ने बड़ी संख्या में अपनी फसल 70-80 रु. के भाव पर निकाल दी थी. बावजूद इसके, किसान घाटे में नहीं रहे.
जैसलमेर के फतेहगढ़ के रहने वाले किसान लजपत सिंह राजगुरु को ही लें. हर साल ग्वार की बुआई करने वाले लजपत सिंह ने इस बार 200 बोरी ग्वार पैदा की. ग्वार की कमाई से अब वे अपने शौक पूरे करने जा रहे हैं. उनकी जीवनशैली में आमूल-चूल बदलाव आ गया है. लजपत के ही शब्दों में, ''मेरा ख्वाब फॉर्च्यूनर गाड़ी चलाने का था. अब वह पूरा होने जा रहा है. मैंने फॉर्च्यूनर बुक करवाई है.'' वे एक नया घर भी बनवा रहे हैं.
चोखोनिया की ढाणी के पीरा राम को भी ग्वार ने निहाल कर दिया है. उन्होंने ग्वार की मेहरबानी से न सिर्फ नया मकान बनवाया बल्कि जीवन से जुड़ी सुख-सुविधाओं में भी खासा इजाफा कर लिया है तो कनोई निवासी किसान सुखराम पर ग्वार की ऐसी कृपा हुई कि बरसाती पानी से छोटी-मोटी फसल बोने वाले इस किसान को ग्वार से करीब 45 लाख रु. की आमदनी हुई. ऐसे किसानों की फेहरिस्त लगातार बढ़ती ही जा रही है.
किसान पहले ग्वार की बोरियां खुले में ही छोड़ देते थे लेकिन इसकी बढ़ती कीमत के कारण चोरी के मामले भी सामने आ रहे हैं. बहरहाल, इस फसल की तेजी को लेकर कई तरह के प्रश्न पैदा होना स्वाभाविक है. जैसलमेर में ग्वार के व्यापारी और ग्वार गम फैक्टरी चला रहे कारोबारी मीठा लाल मोहता कहते हैं, ''यह वाकई अप्रत्याशित तेजी है. इसका कारण विदेशों में ग्वार गम की जबरदस्त मांग का होना है. जिसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल तेल गैस के कुओं में पेस्टिंग के लिए होता है.''
वे कहते हैं कि विदेशों में गम की बेहद मांग के कारण देश के कई नामी-गिरामी औद्यौगिक घराने भी इस कारोबार में हाथ आजमा रहे हैं. इनमें रुचि सोया, डीएलएफ और अडाणी ग्रुप प्रमुख हैं. ये बड़े कारोबारी व्यापार में मोटा निवेश कर रहे हैं. उनके द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में रोजाना हजारों बोरियों की खरीद-फरोख्त के कारण ग्वार के भाव प्रति दिन बढ़ते रहते हैं. यहां तक कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीएक्स में सुबह जैसे ही भाव खुलते हैं उनमें इतनी तेजी आती कि थोड़ी ही देर में सर्किट लग जाता है.
जोधपुर में ग्वार के प्रमुख व्यवसायी त्रिलोक चंद बट्ढड़ भी मानते हैं, ''पूरे देश में राजस्थान का जोधपुर संभाग विश्व में ग्वार निर्यात का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है. दुनिया भर में ग्वार गम पाउडर की बहुत बड़ी मांग को जोधपुर से ही पूरा किया जा रहा है.''
वे कहते हैं कि पिछले साल पूरे देश में करीब डेढ़ करोड़ बोरी की पैदावार हुई थी. इसमें सबसे ज्यादा पैदावार राजस्थान के बाद गुजरात और हरियाणा में हुई. आज राजस्थान से करीब 500 टन ग्वार पाउडर जिसे फास्ट हाइड्रेशन पाउडर कहा जाता है, को अमेरिका और चीन आदि में बेहद मांग के कारण निर्यात किया जा रहा है.
बट्ढड़ कहते हैं, ''ग्वार ने इस बार किसानों और कारोबारियों की किस्मत ही पलट दी. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा तेल गैस के खोज कार्यों में तेजी लाने के निर्देशों के बाद वहां ग्वार पाउडर की मांग में खासी बढ़ोतरी हुई है. आज ग्वार ने किसानों और कारोबारियों को करोड़पति बना दिया है, यही वजह है कि किसान ग्वार की खेती को प्रमुखता दे रहे हैं.''
लेकिन इन सबके बीच ग्वार के बढ़ते प्रेम से जैसलमेर में छह लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ की बुआई की जा रही है. इसमें 4 लाख हेक्टेयर रकबे में अकेले ग्वार की बुआई की गई है. इस तरह 60 फीसदी से भी ज्यादा इलाके में ग्वार की फसल की बुआई हुई है. अगर सब कुछ ठीक रहता है तो इस बार अकेले जैसलमेर में करीब 20 लाख क्विंटल ग्वार की उपज हो सकती है, जिसका संभावित मूल्य 40 अरब रु. से भी ज्यादा का हो सकता है.
कई किसानों ने ग्वार के जरिए अपनी किस्मत को बदल दिया है. लेकिन सच यह है कि ग्वार के भाव में भी गिरावट का दौर आ गया है. 351 रु. प्रति किलो के उच्चतम शिखर पर पहुंचने के बाद ग्वार के भाव आज 150 रु. प्रति किलो तक पहुंच चुके हैं. गिरावट के इस आलम को देखते हुए आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि ग्वार के प्रति यह दीवानगी बनी रहती है या नहीं, लेकिन कमाने वाले तो कमा ही चुके.