तुलसीदास
नंदकिशोर नवल
राजकमल प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली-2
कीमतः 200 रु.
भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग माना जाता है. तुलसीदास भक्तिकाल के कवि हैं. सुपरिचित आलोचक नंदकिशोर नवल ने अपनी इस कृति में वर्तमान समय में तुलसीदास की प्रासंगिकता पर व्यापक प्रकाश डाला है. वे अब तक आधुनिक कविता पर लिखते रहे हैं. इस किताब में उन्होंने पहली बार मध्य युग के एक कवि को विषय बनाया है.
स्वभावतः ऐसा उन्होंने अपनी अंतःप्रेरणा से किया है. नतीजे में उनकी पुस्तक में शुष्क विश्लेषण करने वाले शास्त्रज्ञ आलोचक की बजाए एक रसज्ञ पाठक से मुलाकात होती है. इसके तीन लेखों के जरिए तुलसीदास की कविता का संपूर्ण चित्र आंखों के सामने आ जाता है. वह चित्र जितना भास्वर है, उतना ही सरस भी. इसके बल पर तुलसीदास का कवि-चित्र भी विशाल से विशालतर होता जाता है.
पुस्तक के पहले लेख में नवल ने तुलसीदास के प्रमुख काव्यों पर प्रकाश डाला है. इसमें रामलला नहछू को तुलसी की पहली रचना बताया गया है. इसके अलावा रामाज्ञा प्रश्न, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, गीतावली, कृष्ण गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली, कवितावली और हनुमानबा'क की विशेषताओं का भी उल्लेख है.
कहा जाता है कि बरवै रामायण की रचना तुलसी ने अब्दुर्रहीम खानखाना के काव्य बरवै नायिकाभेद से प्रेरित होकर की. रहीम उनके मित्र भी थे और संभवतः उन्होंने अपना वह काव्य उन्हें भेजा भी था. इस कृति में सीता का रूप-वर्णन बहुत कुछ वैसे ही किया गया है, जैसे वे रीतिकालीन नायिका हों. पार्वतीमंगल की कथा कालिदास के कुमारसंभवम् वाली ही है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि तुलसीदास के मानसेतर अवधी काव्य में वही मिठास मिलती है, जो जायसी के पद्मावत में.
दूसरे लेख में तुलसीदास के सुदृढ़ कीर्ति-स्तंभ रामचरित मानस पर प्रकाश डाला गया है. इसी के बल पर वे भारत के ही नहीं, संसार के महान् कवियों में गिने जाते हैं. जॉर्ज ग्रियर्सन ने इसकी लोकप्रियता देखकर ही उन्हें बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक कहा था. कवि-कुलगुरु कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम् का समारंभ जिस श्लोक से किया है, उसमें वे वागर्थ की प्राप्ति के लिए उस शिव और पार्वती की स्तुति करते हैं, जो वाक् और अर्थ की तरह संयुक्त हैं.
इससे भिन्न तुलसीदास ने मानस का समारंभ सरस्वती और गणेश वंदना से किया है. वह इसलिए कि सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं और गणेश विद्या-वारिधि बुद्धि विधाता हैं. पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' का कहना है कि मैंने दुनिया का ढेर सारा श्रेष्ठ साहित्य नहीं पढ़ा लेकिन मुझे उसका अफसोस नहीं क्योंकि मैंने रामचरित मानस पढ़ा है.
अंतिम लेख में नवल ने विनयपत्रिका को चुना है. तुलसी साहित्य के कुछ विद्वान विनयपत्रिका को ही उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हैं. इसके स्तोत्रों में तुलसी का विराट कवित्व प्रकट हुआ है, जो हिंदी कवियों के लिए एक चुनौती भी है. इसके विनय खंड में ज्यादातर पद प्रायः सरल भाषा में लिखे गए हैं. तुलसीदास की यह बड़ी विशेषता है कि वे अभिव्यक्ति को सरल और संप्रेषणीय बनाते हुए भी उसे अभिजात स्तर से नीचे नहीं आने देते. विवेच्य पुस्तक रोचक, उपयोगी और पठनीय है.