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जननांगों के लिए क्रीम: यहां तक आ पहुंची बात!

इंटीमेट वाश के एक विज्ञापन में गोरेपन की सीमाएं जननांगों तक जा पहुंचीं. क्या यह हदों से पार जाने का मामला है?

अपडेटेड 30 अप्रैल , 2012

एक एकाकी स्त्री अपनी बैठक में बैठी चाय की चुस्कियां ले रही है जबकि उसका पति जैसे उसके वहां होने से अनजान बना अखबार में खोया हुआ है. स्त्री वैसे खूबसूरत है; बॉलीवुड की मलिका कैटरीना कैफ न भी हो तो कम-से-कम गरीबी की कैटरीना तो वह है ही. तो फिर इतनी बेरुखी की वजह? सांसें थामिए जरा. ऐसा इसलिए क्योंकि उसके गुप्तांग साफ नहीं हैं और उसके गोरे और सुंदर चेहरे से मेल नहीं खाते. बाथरूम का एक चक्कर लगाया, क्लीन ऐंड ड्राइ इंटीमेट वाश का इस्तेमाल किया और लीजिए... दुखभरे दिन बीते रे भैया.

इस सबकी शुरुआत चेहरे के साथ हुई. उसके बाद गर्दन, पैरों और फिर कांख जैसे अंगों की बारी आती गई. और अब फार्मास्युटिकल कंपनियों ने पाया कि एक और अंग है, जो आपके या आपके उनके लिहाज से गोरा या सुंदर नहीं है-वह है आपकी योनि. मार्च से दिखाया जाना शुरू हुए क्लीन ऐंड ड्राइ के विज्ञापन ने गोरेपन की सीमाओं को कामांगों तक विस्तारित कर एक तूफान खड़ा कर दिया है.

साइबर जगत तो खास तौर पर नाराज है. लेखिका लिंडी वेस्ट ने स्त्रियों के ब्लॉग जे.जीबेल पर लिखा, ''अब हर कोई इस तथ्य के प्रति असुरक्षित महसूस करेगा कि उसके जननांग उसी रंग के हैं या नहीं जिस रंग के जननांग होने चाहिए? बहुत खूब! हे भगवान, अभी उसी दिन मैं कह रही थी कि मेरे स्त्री द्वेष में नस्लवाद नहीं था.''

इस विज्ञापन के बारे में यू ट्यूब पर एक थोड़ा कम अभद्र टिप्पणी कहती है, ''क्या यह अजीब नहीं है कि श्वेत लोगों को धूप से तप्त त्वचा की चाहत होती है, जबकि भारतीयों को (जो वैसे ही सांवले रंग के होते हैं) गोरी त्वचा की. हम चमड़ी के अपने उस रंग के साथ क्यों नहीं खुश रह सकते जो हमारे पास पहले से ही है?''

गोरी चमड़ी के प्रति भारतीयों की दीवानगी का क्या किया जाए. गोरेपन का धंधा भारत में पहले से ही बहुत बड़ा रहा है. बॉलीवुड कलाकारों जेनेलिया डिसूजा, असिन, शाहरुख खान, जान अब्राहम आदि ने लगातार ऐसे उत्पादों का विज्ञापन किया है और इस तरह बॉलीवुड ने भी 'गोरेपन' की संस्कृति को बढ़ावा देने के काम को बखूबी अंजाम दिया है.

लब्बोलुआब यही कि अगर आप गोरे हैं तो जिंदगी बेहतर होती है. और तमाम भारतीय इस पर भरोसा भी करते हैं. इसके पक्ष में अकाट्य सबूत भी हैं, 900 करोड़ रु. का गोरेपन की क्रीम का धंधा, 2,000 करोड़ रु. के त्वचा की देखभाल के उत्पादों के उद्योग के 47 फीसदी हिस्से पर काबिज है. मगर गोरी योनि की तुलना खुशहाल जीवन से करके वे बहुत दूर की कौड़ी नहीं ले आए हैं? नेट पर इस उत्पाद के पन्ने पर दावा किया गया है, ''स्त्रियों के लिए अब जीवन अधिक निर्मल, अधिक स्वच्छ और अधिक गोरा होगा.''

कोलकाता की 27 वर्षीया गृहिणी सानंदा चक्रवर्ती का कहना है कि वे इसे आजमा सकती हैं. ''मैं पिछले पांच सालों से रोज गोरेपन की क्रीम का इस्तेमाल कर रही हूं. इसे भी देखूंगी.'' बंगलुरू की वेब-डेवलपर 27 वर्षीया रोशनी सिंह का भी मानना है कि यह उत्पाद एक बेहतर विचार है.

वे कहती हैं, ''यह लोगों की नई चीजों को आजमाने की चाहत की ओर इशारा है. इससे पता चलता है कि भारत का बाजार खुल रहा है और लोगों का दिमाग भी.'' रोशनी 2006 से गोरेपन की क्रीमों का इस्तेमाल कर रही हैं. क्या वे क्लीन ऐंड ड्राइ का इस्तेमाल करेंगी? वे बताती हैं, ''मैं उसे इस्तेमाल नहीं करूंगी. मुझे नहीं लगता कि मुझे उसकी जरूरत है.''

क्लीन ऐंड ड्राइ के निर्माता मिडास कव्यर का कहना है कि यह उत्पाद गोरेपन की अपेक्षा योनि को स्वच्छ रखने से ज्‍यादा संबंधित है. कंपनी के एक प्रवक्ता ने ई-मेल कर बताया कि ''कुछ लोगों की गुप्तांगों की त्वचा, कुहनियों और घुटनों की त्वचा की तरह शरीर की सामान्य रंगत से थोड़ा गहरे रंग की हो सकती है.'' यह भी बताया गया कि विज्ञापन में स्त्री को अस्वीकार किए जाते नहीं दिखाया गया है और उत्पाद को सकारात्मक रूप से स्वीकार किया गया है. तमाम स्त्रियों ने 'सबसे अंतरंग जरूरतों की पूर्ति के लिए' कंपनी को शुक्रिया कहा है.

पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की त्वचा विशेषज्ञ शीला कुरूविला कहती हैं, ''मैंने ऐसे मरीज देखे हैं, जिन्हें गोरेपन की क्रीम लगाने पर चकत्ते पड़ गए या किसी और तरह की एलर्जी हो गई.'' उन्हें भी इस बात पर आश्चर्य हुआ कि योनि को गोरा बनाने की जरूरत क्यों? ''धूप में निकलने पर आपकी त्वचा थोड़ी सांवली हो जाती है और वह अपने मूल रंग में वापस आ सकती है, त्वचा उससे ज्‍यादा गोरी नहीं हो सकती.'' स्त्री अधिकारों के लिए कार्य करने वाले चेन्नै स्थित गैर-सरकारी संगठन प्रजन्या की 30 वर्षीया अनुपमा श्रीनिवासन पूछती हैं, ''जननांग का साफ-सुथरा होना अच्छी बात है... पर उसे गोरा होने की क्या जरूरत?'' बताइए तो!

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