कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता टीवी चैनलों की डिबेट से 29 मई से एक महीने तक के लिए जुदा हैं. मुमकिन है कि ये अवधि एक महीने और बढ़ जाए. लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से एक अप्रत्याशित फैसले के तहत कांग्रेस ने अपने प्रवक्ताओं को टीवी चैनलों पर बहस में भेजने से मना कर दिया था. कांग्रेस की तरह समाजवादी पार्टी ने भी ऐसा ही फैसला किया था.
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद 29 मई को पार्टी के प्रवक्ताओं को टीवी डिबेट में न भेजने के फैसले की जानकारी कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक ट्वीट के जरिए दी थी. कांग्रेस के नेता बताते हैं कि प्रवक्ताओं को टीवी डिबेट में भेजने में पर रोक एक महीने के लिए और बढ़ाई जा सकती है. परिस्थितियां भी रोक बढ़ने के संकेत दे रही हैं. वैसे भी कांग्रेस में सांगठनिक तौर पर फेरबदल संभावित हैं क्योंकि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं और अपने फैसले पर अडिग भी हैं. पार्टी नेतृत्व का मसला सुलझने तक प्रवक्ताओं वाले मामले पर फैसला होने के आसार दिखाई नहीं देते.
कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी कहते हैं, "यदि यह कांग्रेस पार्टी के लिए आत्ममंथन का दौर है तो मीडिया घरानों के लिए भी आत्ममंथन का दौर है. सवाल पूछे जाने चाहिए. लेकिन विपक्ष जो सवाल उठा रहा है, सरकार के विरुद्ध उनको भी मीडिया में जगह मिलनी चाहिए. मीडिया का कार्य सरकार से सवाल पूछना है न कि विपक्ष से. सत्ता पक्ष से सवाल पूछे जाने से लोकतंत्र मजबूत होता है. और सवालों से लोकलाज बची रहती है."
पार्टी मानती है कि उसकी छवि को मीडिया के वर्ग के एकतरफा प्रस्तुतिकरण से नुकसान पहुंचा और उसका असर नतीजों पर भी हुआ. हालांकि, पार्टी ने प्रिंट मीडिया का कोई बहिष्कार नहीं किया है. अखबारों-पत्रिकाओं से पार्टी प्रवक्ता पहले की तरह ही बात कर रहे हैं. पार्टी नेता भी मान रहे हैं कि रोक की एक महीने की मियाद बढ़नी चाहिए.
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