केंद्रीय सूचना आयोग (CLC) कार्यालय में 21 अप्रैल 2020 को एक आरटीआइ दाखिल की गई. कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशिएटिव (सीएचआरआई) के वेंकटेश नायक ने सूचना के अधिकार के तहत सवाल पूछा था कि सीएलसी ने 8 अप्रैल 2020 को 20 क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए जो सर्कुलर जारी किया था, उसका क्या हुआ? दरअसल, इस सर्कुलर में तीन दिन के भीतर यानी 11 अप्रैल तक लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों का आंकड़ा इकट्ठा करने का निर्देश दिया गया था. लेकिन 5 मई को मुख्य श्रम आयुक्त कार्यालय से मिला जवाब कुछ इस तरह था. ''आपके द्वारा मांगी गई जानकारी के मुताबिक हमारे पास कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है.'' (As per the stat section is concerned, no such details are available based on requisite information)
इस जवाब से असंतुष्ट वेंकटेश नायक ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने इस असंतोष जनक जवाब के खिलाफ शिकायत दर्ज की. शिकायत में असंतोष जनक जवाब को लेकर पड़ताल करने का निवेदन किया गया. शिकायत में यह भी कहा गया कि क्योंकि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील ओर देश के कई लोगों की जिंदगी से जुड़ा हुआ है इसलिए इस पर फौरन जांच की जरूरत है.
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) कार्यालय ने 8 मई को इस दर्ज हुई शिकायत का जवाब देते हुए कहा कि इस मामले पर जांच पड़ताल की जाएगी. वेंकटेश कहते हैं, '' जिस तरह से देश के हालात हैं, उसमें प्रवासी मजदूरों के ऊपर लगातार संकट मंडरा रहा है. अब तक एक्सीडेंट, भूख, मानसिक आघात की वजह से कई मजदूर अपनी जान से हाथ धो चुके हैं. जहां-तहां मजदूर अब भी फंसे हैं. मजदूरों के कई जत्थों के पास राशन की व्यवस्था तक नहीं पहुंच पा रही. ऐसे में मुख्य श्रम आयुक्त कार्यालय का प्रवासी मजदूरों के आंकड़े इकट्ठे करने का आदेश राहत भरा था. लेकिन आरटीआइ में पूछे गए सवाल का जवाब कहीं न कहीं लापरवाही भरे रवैए दर्शाता है, इस तरह का रवैया त्रासदी के बीच बेहद चिंताजनक है.''
भूख, सड़क हादसों, मानसिक आघात से मर रहे मजदूरों के बढ़ते आंकड़ों के बीच आरटीआइ में मिला जवाब चिंताजनक
-बेंग्लुरु के एक इंजीनियर thejeshgn G.N द्वारा बनाई गई thejeshgn.com वेबसाइट में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक महामारी के दौरान भूख, मानसिक आघात, सैकड़ों मील चलने के कारण होने वाली थकान और शिथिलता की वजह से कई मजदूरों ने जान गंवाई. इसके अलावा इन आंकड़ों में उन्हें भी शामिल किया गया जिन्होंने कोरोना पॉजिटिव होने के डर से आत्महत्या कर ली. इन आंकड़ों में एक भी वे लोग शामिल नहीं हैं जिनकी जान कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से गई हो. 24 मार्च से लेकर 2 मई तक तकरीबन 300 लोगों ने जान गंवाई. इनमें 34 भूख से मरने वाले मजदूर हैं तो 20 घर तक पहुंचने के लिए अफरा-तफरी में सैकड़ों मीलों के सफर के दौरान बीच में ही दम तोड़ने वाले मजदूर हैं. इस वेबसाइट ने हिंदी अंग्रेजी के नेशनल न्यूजपेपर के अलावा कई क्षेत्रीय अखबारों से आंकड़े जुटाए.
-सेव द लाइफ फाउंडेशन के मुताबिक 24 मार्च से लेकर 3 मई तक घर पहुंचने के लिए सैकड़ों मील का सफर तय करने निकले मजदूरों में से 42 मजदूर सड़क हादसों का शिकार हो गए. इस बीच जलना से भुसावल जा रहे 16 मजदूरों की ट्रेन हादसे में हुई मौत ने पूरे देश का दिल दहला दिया.
-एकता मजदूर परिषद के रमेश शर्मा लगातार उन मजदूरों को ट्रैक कर रहे हैं जो घर के लिए पैदल या साइकिल से निकल चुके हैं. रमेश, संस्था के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर 37,000 मजदूरों को अब तक ट्रैक कर चुके हैं. दरअसल यह संस्था इन लोगों को जहां तक संभव हो सके राशन भिजवाने का काम कर रही है. रमेश शर्मा के मुताबिक तकरीबन 12-14 लोग ऐसे हैं जो सफर के बीच में या फिर घर पहुंचकर क्वरंटीन सेंटर में रखे जाने के दौरान मानसिक आघात की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठे.
यह आंकड़े फुटकर में जुटाए गए हैं. अलग-अलग गैर सरकारी संगठन और संस्थाएं मजदूरों की मौत के आंकड़े अपनी पहुंच के हिसाब से जुटा रही हैं. लेकिन दुखद यह है कि केंद्रीय श्रम मंत्रालय के पास प्रवासी मजदूरों की संख्या का आंकड़ा मौजूद नहीं है. ऐसे में महामारी के कारण किसी भी तरह के हादसे का शिकार हुए मजदूरों की संख्या के आंकड़ों की उम्मीद श्रम मंत्रालय से करना बेमानी है. ऐसे में श्रम आयुक्त कार्यालय से आरटीआइ के सवाल का जो जवाब मिला वह यह बताता है कि प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार और सरकारी संस्थाओं का रवैया कितन लापरवाही भरा है.
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