मायावती सरकार ने आखिर यू-टर्न लिया. एक दिन पहले तक कोर्ट में डॉ. वाइ.एस. सचान की मौत की जांच विशेष जांच दल (एसआइटी) से कराने की बात कह रही सरकार 24 घंटे के भीतर सीबीआइ जांच को राजी हो गई. उसे लगा कि यदि उसने ऐसा फैसला नहीं किया तो कोर्ट के निर्देश पर सीबीआइ जांच करानी पड़ सकती है. ऐसे में उसके पास कोई चारा नहीं बचा था.
डिप्टी सीएमओ डॉ. सचान की जेल में मौत की सीबीआइ जांच कराने की मांग वाली याचिका पर हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ अपना निर्णय सुनाने वाली थी कि एक दिन पूर्व मायावती सरकार ने प्रकरण की जांच सीबीआइ से कराने की सिफारिश कर दी.
रात में जारी एक सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि मुख्यमंत्री मायावती ने सीबीआइ जांच करवाने में हीला-हवाली करने वाले अधिकारियों को फटकार लगाई और पूछा कि ''यदि सचान का परिवार सीबीआइ जांच चाहता था तो प्रशासन और पुलिस को ऐसा करने में क्या दिक्कत थी?'' सरकार ने केंद्र से केवल जेल में बंद डॉ. सचान की मौत की जांच कराने की ही सिफारिश की है. अदालत ने भी ऐसी जांच के निर्देश दिए हैं.
लखनऊ में सीएमओ (परिवार कल्याण) डॉ. बी.पी. सिंह की हत्या और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपी डॉ. सचान की 22 जून को संदिग्ध परिस्थितियों में जेल में मौत हो गई थी. उनके शरीर पर कई गहरे जख्म थे. पर मौके पर पहुंचे पुलिस महानिरीक्षक (जेल) वी.के. गुप्ता और अन्य अधिकारियों ने उनकी मौत को आत्महत्या बताया था और कहा था कि डॉ. सचान ने जेल अस्पताल के शौचालय में बेल्ट से फांसी लगाकर जान दी है.
अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने डॉ. सचान की मौत का कारण जख्मों से हुए खून के अत्यधिक रिसाव को माना और गले पर बेल्ट के निशान को मौत के बाद का जख्म बताया. जाहिर था कि डॉ. सचान की मौत आत्महत्या नहीं है, पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद भी कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह इसे आत्महत्या करार दे रहे थे.
अगले दिन तत्कालीन जिला जज लखनऊ शिवानंद मिश्र ने जेल में डॉ. सचान की मौत का संज्ञान लेते हुए न्यायिक जांच का आदेश दिया था. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट राजेश उपाध्याय ने 24 जून से जांच शुरू की. 12 जुलाई को सीजेएम ने जांच रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष पेश की, जिसमें डॉ. सचान की मौत के बारे में सरकार के दावों को गलत बताते हुए इसे पूरी तरह से हत्या का मामला बताया.
इस बीच पुलिस ने अभी तक गिरफ्त से बाहर रहे पूर्व सीएमओ डॉ. ए.के. शुक्ल को चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रामा सेंटर से गिरफ्तार कर लिया. पुलिसिया कार्रवाई की पूर्व सूचना मिल जाने के कारण डॉ. शुक्ल एक दिन पहले ही अस्पताल में भर्ती हो गए थे. सत्ता में उनकी ऊंची पहुंच के चलते पुलिस ने उनकी ओर से आंखें मूंद रखी थीं.
7 अप्रैल को एनआरएचएम में वित्तीय अनियमितता बरतने के आरोप में डॉ. सचान के साथ डॉ. शुक्ल के खिलाफ परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. राजेंद्र कुमार ने वजीरगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
इसके बाद डॉ. सचान को तो गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया लेकिन डॉ. शुक्ल को केवल पद से हटाकर उनका तबादला स्वास्थ्य महानिदेशालय में संयुक्त निदेशक पद पर कर दिया गया.90 दिनों की विवेचना के दौरान एक बार भी पुलिस ने मुख्य अभियुक्त डॉ. शुक्ल का बयान लेने की जहमत नहीं उठाई. कोर्ट सख्त हुआ तो पुलिस ने तर्क दिया कि डॉ. शुक्ल ढूंढे़ नहीं मिल रहे हैं.
जानकारों के मुताबिक न्यायिक जांच में डॉ. सचान की हत्या की बात आते ही सरकार का रवैया बदल गया. हाइकोर्ट में डॉ. शुक्ल की गिरफ्तारी न होने पर घिरने की आशंका को देखते हुए सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने पुलिस को तत्काल डॉ. शुक्ल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. डीआइजी डी.के. ठाकुर का तर्क था, ''उनके खिलाफ साक्ष्य मिल गए हैं और विवेचना भी पूरी हो गई है इसी के बाद डॉ. शुक्ल गिरफ्तार किए गए.''
स्वास्थ्य विभाग के एक पूर्व महानिदेशक बताते हैं कि ''सीबीआइ जांच से डॉ. सचान का असली कातिल, साजिशकर्ता और पूरे घटनाक्रम के मास्टमाइंड का खुलासा हो सकेगा. इस घटना के तार कहीं न कहीं सरकार में बैठे पहुंचवालों से जुड़े हुए हैं.'' यदि उनके गिरेबान तक सीबीआइ के हाथ पहुंच गए तो चुनावी साल में यह सत्ताधारी पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. साथ ही सरकार को घेरने में आमादा विपक्ष को एक और हथियार मिल सकता है.