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तीन साल में तीन कदम न चल पाई सीबीआई जांच

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की परीक्षाओं में हुई गड़बड़ि‍यों की सीबीआइ जांच को तीन साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन जांच एजेंसी ने अब तक केवल एक मुकदमा दर्ज किया है. सीबीआई की धीमी जांच पर प्रतियोगी परीक्षार्थी निराश हैं.

यूपी लोक सेवा आयोग
यूपी लोक सेवा आयोग
अपडेटेड 28 जनवरी , 2021

करीब तीन साल पहले जनवरी-2018 में जब प्रतियोगी परीक्षाओं की जांच करने सीबीआई प्रयागराज में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) परिसर में दाखिल हुई थी तो प्रतियोगी छात्रों को लगा था कि परीक्षाओं में धांधली करने वालों की उलटी गिनती शुरू हो गई है. भर्ती में भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबा आंदोलन करने वाले छात्रों को सीबीआई से ढेरों उम्मीदें थीं. अब जांच को तीन साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन जांच एजेंसी ने अब तक केवल एक मुकदमा दर्ज किया है और वह भी आयोग के अज्ञात अफसरों तथा बाहरी अज्ञात लोगों के खिलाफ है. सीबीआई की धीमी जांच पर प्रतियोगी परीक्षार्थी तरह-तरह के सवाल खड़े कर हैं.

यूपी में पिछली सपा सरकार में प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी का आरोप लगाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने युवाओं का समर्थन बटोरा था. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने यूपीपीएससी की परीक्षाओं में यादव जाति के अधि‍कारियों की असमान्य भर्ती का मुद्दा उठाकर गैर-यादव राजनीति को हवा दी थी. गैर-यादव ओबीसी पॉलिटिक्क में भाजपा की पैठ बनाने के पीछे यह मुद्दा काफी कारगर साबित हुआ था. इसका फायदा भाजपा को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मिला था जब गैर-यादव पिछड़ी जातियां खासकर युवा भाजपा के पीछे लामबंद हो गए थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार बनने के चार महीने बाद जुलाई, 2017 को कैबिनेट बैठक में यूपीपीएससी की परीक्षाओं में सीबीआई जांच की सिफारिश की थी. इसके बाद 21 नवंबर 2017 में केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने एक अधि‍सूचना जारी कर सीबीआई भ्रष्टाचार निरोधक प्रकोष्ठ प्रथम के तत्कालीन एसपी राजीव रंजन को जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी. सीबीआई ने 25 जनवरी, 2018 को लखनऊ में पीई दर्जकर जांच शुरू कर दी थी. 31 जनवरी 2018 को राजीव रंजन यूपीपीएसी के दफ्तर पहुंचे थे और कागजों की तलाशी ली थी. सीबीआई की जांच रोकने के लिए यूपीपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष ने हाइकोर्ट की शरण ली लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली थी.

सीबीआई ने शुरुआत में तेजी दिखाते हुए 5 मई 2018 को आयोग के विरुद्ध पहला मुकदमा दर्ज किया था. इसी बीच सीबीआई को अपर निजी सचिव (एपीएस) परीक्षा-2010 में भी गड़बड़ी मिली. सीबीआई ने इसकी जांच करने के लिए भी शासन से अनुमति मांगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 अक्तूबर 2018 को सीबीआई को अपर निजी सचिव (एपीएस) परीक्षा-2010 की जांच की अनुमति दे दी. इसी बीच नवंबर 2018 में सीबीआई के जांच अधि‍कारी राजीव रंजन की प्रतिनि‍युक्त‍ि पर तैनाती का समय पूरा हो गया और वह अपने गृह प्रदेश सिक्क‍िम वापस चले गए. इसके बाद से सीबीआई जांच धीमी हो गई. यूपीपीएससी की परीक्षाओं में गड़बड़ि‍यों के खि‍लाफ संघर्ष कर रहे प्रतियोगी छात्र  संघर्ष समि‍ति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय ने राजीव रंजन का तबादला होने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक पत्र भी लिखा. पत्र में कहा गया कि यूपीपीएससी की अहम सीबीआई जांच के बीच में जांच अधि‍कारी को नहीं बदला जाना चाहिए था. अवनीश ने राजीव रंजन की प्रतिनियुक्ति‍ बढ़ाने की मांग की थी जिसे गृह मंत्रालय ने नजरंदाज कर दिया था.

 सीबीआई की टीम आयोग की उन परीक्षाओं की जांच कर रही है, जिनके परिणाम अप्रैल 2012 से मार्च 2017 के बीच जारी किए गए थे. इसके साथ ही अपर निजी सचिव (एपीएस) परीक्षा-2010 की जांच के लिए सीबीआई ने प्रदेश सरकार से विशेष अनुमति ली थी. इस तरह सीबीआई कुल 598 परीक्षाओं की जांच कर रही हैं, जिनके तहत लगभग 40 हजार अभ्यर्थियों का चयन किया गया. तीन साल की जांच के दौरान के दौरान सीबीआई ने सिर्फ पीसीएस -2015 में गड़बड़ी को लेकर मुकदमा दर्ज किया, जिसमें आयोग के अज्ञात अफसरों और बाहरी अज्ञात लोगों को संदिग्ध माना गया है. इसके अलावा सीबीआई को कई अन्य परीक्षाओं में भी गड़बड़ी मिली है. सीबीआई के गोविंदपुर, प्रयागराज स्थित कैंप कार्यालय में अब तक लगभग एक हजार चयनित अभ्यर्थियों, आयोग के पूर्व और वर्तमान अफसरों एवं कर्मचारियों से पूछताछ की जा चुकी है. वहीं, दिल्ली स्थित मुख्यालय में भी तकरीबन पांच सौ लोगों को बुलाकर पूछताछ की जा चुकी है. जांच की इतनी लंबी प्रक्रिया के बाद भी कोई कार्रवाई न होने से प्रतियोगी छात्र हताश हैं. अवनीश पांडेय कहते हैं, “यूपीपीएससी की गड़बड़ि‍यों के खि‍लाफ आंदोलन करने वारे छात्र खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि सीबीआई अपनी जांच तेजी से आगे नहीं बढ़ा पा रही है.”

अवनीश ने सीबीआइ जांच की गति बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग को भी पत्र लिखा है. अवनीश कहते हैं, “परीक्षाओं में पारदर्श‍िता बरतने के लिए आयोग को एक सिस्टम के तहत अंतिम परिणाम जारी होने के दिन तक कट ऑफ मार्क, मार्क सीट, रिवाइज़ आंसर की आदि सब जारी कर देना चाहिए जैसा कि अन्य आयोगों को होता है.” अवनीश के मुताबिक, आयोग द्वारा वेटिंग लिस्ट जारी करने की मांग परीक्षार्थ‍ियों ने की है, इस परिप्रेक्ष्य में माननीय न्यायालय में एक याचिका भी दाखिल है. वेटिंग लिस्ट जारी होने से प्रति परीक्षा सैकड़ों अभ्यथियों को नौकरी मिल सकती है, क्योंकि औसतन प्रति परीक्षा 100 से अधिक अभ्यर्थियों द्वारा अंतिम रूप से चयनित होने के बाद नौकरी छोड़ी जा रही है. यूपीपीएसी की परीक्षाओं में गड़बड़ी के मुद्दे पर प्रतियोगी परीक्षार्थि‍यों का समर्थन कर रहे भाजपा के विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, “प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक में यूपीपीएससी जांच को तेज करने की पैरवी कर रहा हूं. जल्द ही इस दिशा में आवश्यक कार्रवाही शुरू हो जाएगी.”

इन बिंदुओं पर हो रही है जांच

 आरक्षण—यूपीपीएससी की भर्ती परीक्षाओं में आरक्षण प्रक्रिया जांच के दायरे में है. अगर आरक्षण तय करना कार्मिक विभागों की जिम्मेदारी है तो यूपी लोक सेवा आयोग किस आधार पर लंबे समय तक यह काम खुद करता रहा. कई बार आरक्षित पदों की संख्या में अचानक फेरबदल भी हुए. इसका आधार क्या था?

इंटरव्यू—इंटरव्यू में गड़बड़ी के साक्ष्य सीबीआइ को मिले हैं. पीसीएस-2011 की मुख्य परीक्षा में त्रिस्तरीय आरक्षण पर हुए विवाद के बाद दोबारा परिणाम घोषित हुआ. सामान्य वर्ग के 151 नए अभ्यर्थी सफल घोषित हुए लेकिन इन अभ्यर्थि‍यों को इंटरव्यू में काफी कम नंबर मिले जिससे इनमें से कोई सफल नहीं हुआ.

स्केलिंग—यूपीपीएससी की परीक्षाओं में लागू स्केलिंग से एक ही विषय में एक समान अंक पाने वाले दो परीक्षार्थियों के अंक किस प्रकार से घट-बढ़ जाते हैं? घटे और बढ़े अंकों में ज्यादा अंतर क्यों होता है? इसमें भी गड़बड़ी की आशंका है. जटिल स्केलिंग को समझने के लिए सीबीआइ दस्ता दूसरे संस्थाओं के विशेषज्ञों की मदद लेगा.

ओटीपी—यूपीपीएससी की परीक्षाओं में पहले कोई भी अभ्यर्थी दूसरे अथ्यर्थी का अंकपत्र देख सकता था. वर्ष 2013 में लागू नई व्यवस्था के अनुसार अंकपत्र देखने के लिए अभ्यर्थी को ‘वन टाइम पासवर्ड’ (ओटीपी) दिया जाने लगा. दो वर्ष तक लागू रही इस व्यवस्था के जरिए गड़बड़ियों को छिपाने के साक्ष्य सीबीआइ को मिले हैं.

कोडिंग—उत्तर पुस्तिकाओं की कोडिंग में भी हेरफेर के संकेत मिले हैं. पीसीएस-2015 की मुख्य परीक्षा के परिणाम में सुहासिनी वाजपेयी को असफल घोषित किया गया. आरटीआइ के तहत जानकारी मांगने पर पता चला कि कोडिंग की गड़बड़ी के चलते सुहासिनी की कॉपी दूसरे अभ्यर्थी से बदल गई थी.

जाति-वर्ग—वर्ष 2014 से 2016 के बीच यूपीपीएससी की परीक्षाओं के अंतिम परिणाम में सफल अभ्यर्थी के नाम के आगे जाति-वर्ग नहीं लिखकर पारदर्शिता से बचा गया. रोल नंबर और रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर ही परिणाम घोषित होने से धांधली के आरोपों की जांच पर सीबीआइ ने ध्यान लगाया है.

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