यह अजीब विडंबना है कि जिस शख्स ने यूपीए 1 को बचाया वही शख्स अब यूपीए 2 को गिरा सकता है. वोट के बदले नोट घोटाले में जहां एक तरफ दिल्ली पुलिस ने समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह से पूछताछ की तैयारी कर ली है, वहीं कांग्रेस नेतृत्व इस बात को लेकर चिंतित है कि वे क्या खुलासा करेंगे.
पुलिस सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि असैनिक परमाणु समझैते पर संसद में 2008 के विश्वास मत में सरकार को बचाने के लिए पैसे देने के मामले से अमर सिंह के जुड़े होने के बारे में उसके पास काफी सबूत हैं.
भाजपा के तीन सांसद 28 जुलाई, 2008 को रुपयों से भरे दो बैग लेकर लोकसभा में पहुंचे थे और उन्होंने अमर सिंह पर दलबदल को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था. लेकिन पुलिस जानना चाहती है कि ठाकुर नेता किसकी सलाह पर काम कर रहे थे.
जहां सरकार हंगामेदार मानसून सत्र के लिए कमर कस रही है, वहीं साख का संकट झेल रही मनमोहन सिंह की सरकार भ्रष्टाचार के एक और घोटाले में फंस सकती है. सरकार की विश्वसनीयता पर पहले ही सवाल उठ रहे हैं. मार्च में विकिलीक्स कव्बल के जरिए जब यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया तो प्रधानमंत्री ने लोकसभा को भरोसा दिलाया था कि '' कांग्रेस पार्टी या सरकार में से कोई भी 2008 में विश्वास मत के दौरान इस तरह की गैरकानूनी कार्रवाई में शामिल नहीं था.''
अगर नोट की आंच कांग्रेस मुख्यालय तक पहुंचती है तो 1993 से भी ज्यादा गंभीर संकट पैदा हो सकता है, जैसा नरसिंह राव सरकार को झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को कथित तौर पर रिश्वत देकर विश्वास मत हासिल करने पर झेलना पड़ा था.
पुलिस सूत्रों के अनुसार इस समय पुलिस हिरासत में बंद भाजपा युवा मोर्चा के पूर्व कार्यकर्ता सुहैल हिंदुस्तानी और अमर सिंह के पीए रह चुके संजीव सक्सेना ने दावा किया है कि नकद राशि अमर सिंह ने दी थी. बड़बोले हिंदुस्तानी ने तो घोटाले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरफ भी इशारा किया है. अपराध शाखा के गुप्तचर जब हिंदुस्तानी को पूछताछ के लिए ले जा रहे थे, उन्होंने मीडिया को बताया, ''प्रधानमंत्री के करीबी लोगों ने और यहां तक कि 10 जनपथ से भी मुझे फोन किया गया था.''
सक्सेना की गिरफ्तारी के बाद से, अमर सिंह नजरों से दूर हो गए हैं. जिस व्यक्ति ने घोटाले के सामने आने पर एक दिन में छह प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, वह आज मीडिया से बच रहा है. समाजवादी पार्टी छोड़ने के बावजूद, उनमें इतनी ताकत है कि वे कांग्रेस के दिग्गजों को परेशानी में डाल सकते हैं.
हालांकि अमर सिंह से पूछताछ की जाएगी, कानूनी विशेषज्ञ यह बता पाने में असमर्थ हैं कि क्या उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है क्योंकि उनकी भूमिका पीछे से काम करने वाले की थी जबकि हिंदुस्तानी और सक्सेना स्टिंग ऑपरेशन के दौरान रिकॉर्ड किए गए टेप में हैं. न ही उसमें कांग्रेस के नेता अहमद पटेल हैं. भाजपा अपनी इस बात पर कायम है कि सांसदों की खरीद-फरोख्त को उजागर करने के लिए उसने स्टिंग ऑपरेशन किया था.
दिल्ली पुलिस यूपीए को हाल में मुश्किल में डालने वाले सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद हरकत में आई. अदालत ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे. एम. लिंगदोह की दायर की हुई याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले हफ्ते टिप्पणी की थी, ''क्या हमारी जांच एजेंसियां इतनी निकम्मी हैं कि दो साल बाद भी, एक साधारण मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है?''
इस मामले के राजनैतिक दृष्टि से नाजुक होने की वजह से पुलिस ने अब तक इस मामले की जांच की दिशा में कोई गंभीर कोशिश नहीं की थी, हालांकि एक संसदीय समिति ने दिसंबर 2008 में अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया था. इस समिति के अध्यक्ष किशोर चंद्र देव ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस बारे में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सका कि क्या ''श्री संजीव सक्सेना जिन्होंने तीन सांसदों तक धन पहुंचाया वह दूत थे या अमर सिंह के इशारे पर काम कर रहे थे.''
अदालत की घुड़की के बाद पुलिस ने सक्सेना को गिरफ्तार कर लिया, जिन्हें सीएनएन-आइबीएन द्वारा रिकॉर्ड किए गए फुटेज में भाजपा के तीन सांसदों को नकदी से भरे बैग देते हुए दिखाया गया है. उन्हें अपने मोबाइल से एक नंबर डायल करते हुए और दो सांसदों को किसी, संभवतः सिंह से बातचीत करते हुए दिखाया गया है. इस बातचीत की पुष्टि करने वाले फोन रिकॉर्ड दिल्ली पुलिस के पास हैं. यह बातचीत भाजपा के दो सांसदों अशोक अरगल और फ ग्गन सिंह कुलस्ते द्वारा संसदीय समिति के सामने दिए गए बयान का हिस्सा है.
भाजपा सांसदों और अमर सिंह के बीच संपर्क सूत्र बताए जा रहे हिंदुस्तानी को दिल्ली पुलिस भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 के तहत पहले ही हिरासत में ले चुकी है. सूत्रों के मुताबिक हिंदुस्तानी ने अमर सिंह पर यह भी आरोप लगाया है कि भाजपा के तीन सांसदों के लिए उन्होंने 3 करोड़ रु. रिश्वत दी थी. एक कानूनी विशेषज्ञ का कहना है, ''अगर यह साबित भी हो जाता है कि यह भाजपा की सोची गई और लागू की गई 'पोल खोलने' की कार्रवाई थी, फिर भी यूपीए भी इससे अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता.''
यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे यूपीए खुद के बचाव के रास्ते के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. फिलहाल तो कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी यह कहकर बचने की कोशिश करते हैं, ''इस मामले में जांच चल रही है और किसी तरह की अटकलें लगाना ठीक नहीं होगा.'' शुक्र यह भी है कि रकम के लेनदेन वाले टैप में कांग्रेस का कोई भी नेता नहीं है.
पुलिस समाजवादी पार्टी के सांसद रेवती रमण सिंह, अरगल और लालकृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक सुधींद्र कुलकर्णी से भी पूछताछ करने जा रही है. कुलकर्णी ने कबूल किया है कि रिश्वत देने वालों को फंसाने के लिए उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन कराया था.
अमर सिंह की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं. लखनऊ के एक याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने 2008 के दौरान यूपीए को विश्वास मत हासिल कराने के अमर सिंह के कथित मकसद के बारे में अपराध शाखा को जानकारी दी है. यही नहीं, चतुर्वेदी ने मुलायम सिंह के खिलाफ बेहिसाब संपत्ति का मामला भी दायर कर रखा है.
चतुर्वेदी का कहना है, '' यादव के खिलाफ बेहिसाब संपत्ति के मामले में सरकार का 'पलटी खाना' सरकार को उनके समर्थन देने का ही पुरस्कार है. उनका कहना है, ''अमर सिंह भी असैनिक परमाणु विधेयक के पक्ष में थे.''
चतुर्वेदी का कहना है कि उन्होंने दिल्ली पुलिस को कुछ दस्तावेज दिए हैं जिनसे पता लगता है कि अमर सिंह जून 2008 में अमेरिका में थे और ऐसे अमेरिकी व्यवसायियों के संपर्क में थे जो परमाणु समझैते के पारित होने के बाद बड़े सप्लायर हो जाते.
चतुर्वेदी का दावा है कि उनके पास पुख्ता सबूत हैं जो दिखाते हैं कि अमर सिंह ने उस समय क्लिंटन फाउंडेशन को 10-50 लाख डॉलर दिए. उनका आरोप है कि यह धन विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून 2000 के अनुच्छेद 3 का उल्लंघन करते हुए हवाला कारोबार के जरिए दिया गया. आरबीआइ ने इसकी पुष्टि की है, ''हमने ऐसी कोई रकम भेजने की इजाजत नहीं दी.'' आरबीआइ ने चतुर्वेदी को सलाह दी है कि , ''जो धन हवाला के जरिए भेजा गया है उसके बारे में वे प्रवर्तन निदेशालय के पास जा सकते हैं.''
चतुर्वेदी का आरोप है, ''इससे पता लगता है कि अमर सिंह किसके पक्ष में थे.'' उनके आरोप आगे चलकर अमर सिंह के खिलाफ जांच में अहम बिंदु होंगे जिन्हें इस रकम के बारे में बताना पड़ेगा. सांसदों को दी गई 3 करोड़ रु. की रिश्वत के स्त्रोत का पता लगाना बाकी है. माना जा रहा है कि अमर सिंह के पूर्व सहायक सक्सेना ने दिल्ली पुलिस को बताया है कि वे तो महज कूरियर थे और उन्हें धन के स्त्रोत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
अब जांच एजेंसियों के सामने सवाल यह है कि क्या अमर सिंह ने यूपीए को बचाने के लिए अपने बलबूते ऐसा किया या फिर वे कांग्रेस के फरमान पर यह सब कर रहे थे ? यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि वे आखिरकार क्या खुलासा करते हैं.
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