रद्दी कागज की कीमतें दोगुनी होने के बाद गत्ता उद्योग के समक्ष बड़ा संकट खड़ा हो गया है. कोरोना से पहले 10 से 13 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव पर मिलने वाले रद्दी कागज की कीमत 22 से 24 रुपए प्रति किलो पहुंच गई है. इंडियन एग्रो ऐंड रिसाइकिल्ड पेपर मिल्स एसोसिएशन (आइएआरपीएमए) के मुताबिक, रद्दी कागज की कीमतें दोगुनी होने के बाद गत्ता उद्योग के सामने अप्रत्याशित संकट खड़ा हो गया है. गत्ते के उत्पादन में रद्दी कागज की हिस्सेदारी 65 से 70 फीसद है.
दुनियाभर में इस बात की गहरी आशंका है कि कोविड-19 का कहर थमने के बाद दबी हुई मांग वापस निकलते ही महंगाई बढ़ जाएगी. कच्चे तेल, बेस मेटल की बढ़ती कीमतें इस बात का संकेत हैं. वैश्विक बाजार से जुड़ी कमोडिटीज के अलावा घरेलू स्तर पर विभिन्न वस्तुओं का दाम बढ़ने से उद्योगों की लागत बढ़ रही है जो वस्तु और सेवाओं की बढ़ती कीमतों के रूप में सामने आ रही है.
आइएआरपीएमए ने वाणिज्य मंत्रालय को पत्र लिखकर यह कहा है कि देश में सालाना 2.5 करोड़ टन कागज का उत्पादन होता है. इसमें से करीब 1.7 करोड़ टन कागज का उत्पादन रद्दी कागज आधारित पेपर मिलें करती हैं. रद्दी कागज की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण कागज उत्पादन में किसी भी तरह की कमी से लिखने, छपाई करने, अखबारी कागज और पैकेजिंग इंडस्ट्री पर दुष्प्रभाव पड़ेगा. क्राफ्ट वेस्ट पेपर की कीमतें भी 22 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई हैं, जो कोरोना से पहले की अवधि में 10 रुपये प्रति किलो के स्तर पर थीं.
आइएआरपीएमए ने सरकार से हस्तक्षेप करने और गोदामों व रद्दी कागज के स्टॉक केंद्रों पर छापे मारकर अवैध जमाखोरी पर नियंत्रण की अपील की है. संगठन ने यह आशंका जताई है कि ‘कुछ आपूर्तिकर्ता देश में रद्दी कागज की कृत्रिम कमी का माहौल बना रहे हैं इसे खत्म किया जाना चाहिए. जिससे कागज विनिर्माता और कागज उपभोक्ताओं पर अनावश्यक दबाव न पड़े.’
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