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अब बेधड़क मिलाइए मुख्‍यमंत्री मुंडा को फोन

झारखंड के मुख्यमंत्री ने रांची के अपने दफ्तर में लोगों की शिकायतें सुनने के लिए 30 फोन लगवाए हैं और सभी कॉल्स रिकॉर्ड की जाती हैं. मुंडा का कहना है कि लोग उन्हें योजना विशेष के फोटोग्राफ भी भेजें, ताकि अधिकृत रिपोर्ट से उन्हें मिलाया जाए और स्थिति सुधारी जाए.

अपनी वेबसाइट का उद्घाटन करते अर्जुन मुंडा
अपनी वेबसाइट का उद्घाटन करते अर्जुन मुंडा
अपडेटेड 5 फ़रवरी , 2012

उग्रवाद से प्रभावित गढ़वा जिले के रहने वाले सुमित कुमार गुप्ता को सुखद आश्चर्य हुआ, जब उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री के टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर पर फोन किया और उनके फोन को उठाने वाला ऑपरेटर उस समय गायब हो गया और एक नई आवाज बीच में जबरन आ गई, ‘मैं अर्जुन मुंडा बोल रहा हूं. कृपया निश्चिंत रहिए, आपने जूट की जिन बोरियों की मांग की है, उन्हें हम आज उपलब्ध करवा देंगे.’

गुप्ता ने फोन यह पूछने के लिए किया था कि उन्हें क्या करना चाहिए. उनके गांव में कहीं भी जूट के बोरे उपलब्ध नहीं हैं, जिनमें धान भरकर वे सरकार के नए क्रय केंद्र तक ले जा सकें. फोन को उठाने वाला ऑपरेटर उन्हें यह सलाह दे ही रहा था कि वह जिला अधिकारियों से संपर्क करें, कि मुंडा, जो बातचीत सुन रहे थे, फोन से जुड़ गए. गढ़वा के उपायुक्त को तुरंत एक एसएमएस किया गया और जूट के बोरे कुछ ही घंटों में उपलब्ध करा दिए गए.

8 फरवरी 2012: तस्‍वीरों में इंडिया टुडे

कॉल सेंटर के ऑपरेटर को भी एक संदेश मिल गया थाः ‘समाधान दो, कॉल किसी और को फारवर्ड मत करो. आम तौर पर कोई इनसान मुख्यमंत्री को फोन इसलिए करता है, क्योंकि वह जानता है कि यह आखिरी दरवाजा है.’

मुंडा ने 6 जनवरी को एक अनूठी समस्या निवारण प्रणाली शुरू की है, जिसमें एक टोल-फ्री नंबर होता है, जहां फोन करके लोग अपने मसले दर्ज करवा सकते हैं. मुंडा कई बार अपने लैपटॉप पर बातचीत सुनते हैं. हेल्पलाइन के कॉल सेंटर में 30 कर्मचारी सातों दिन और चौबीसों घंटे फोन उठाते हैं. जब मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं होते, उस दौर की कॉल्स भी रिकार्ड की जाती हैं. इस प्रणाली पर रोजाना 8,000 फोन कॉल्स प्राप्त हो रही है. हरेक शिकायतकर्ता को एसएमएस से एक नंबर भी भेजा जाता है, जिसे वह भविष्य में इस्तेमाल कर सकता है.

मुंडा कहते हैं, ‘मुझे इस बात से परेशानी नहीं है कि इतनी सारी शिकायतें आ रही हैं. बल्कि इसके उलट, यह उत्साहवर्धक है कि इतने सारे लोग अपनी शिकायतें दर्ज करवाने के लिए हमारे सेंटर पर फोन करते हैं.’ यह प्रणाली लोगों को अपनी शिकायतें कई तरीकों से भेजने का मौका देती है, जिनमें फोन कॉल्स हैं, फैक्स, ई-मेल, और यहां तक कि फेसबुक या ट्विटर जैसे माइक्रो ब्लॉगिंग साइट्स भी हैं. मुंडा ने इंडिया टुडे से कहा, ‘विचार यह है कि समस्याएं सुलझाने के अलावा, एक सीधे संवाद का रास्ता खोला जाए और एक स्वतंत्र और विश्वसनीय फीडबैक प्रणाली हो, जिससे सरकार जमीनी वास्तविकता से बेहतर ढंग से परिचित हो सके.’

1 फरवरी 2012: तस्‍वीरों में इंडिया टुडे

शिकायतों की देखरेख करने वाले विशेष सेल से यह भी कहा गया है कि वह शिकायतों की संख्या और उनकी प्रकृति की श्रेणियां बनाए. मुंडा कहते हैं, ‘शिकायतें विभिन्न जिलों में प्रशासन की टूटी कड़ियों को समझने का एक अच्छा तरीका है.’ अभी तक की अधिकांश शिकायतें शिक्षा, ऊर्जा, सड़क, कल्याण, ग्रामीण विकास और ग्रामीण रोजगार के विभागों में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक सुस्ती की हैं.

शुरू में मुंडा ने यह प्रणाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़े विभागों जैसे कुछ चुनिंदा विभागों से संबंधित शिकायतें दर्ज करने के लिए शुरू की थी. मुंडा कहते हैं, ‘लेकिन धीरे-धीरे सरकार इस प्रणाली का दायरा बढ़ाकर राज्‍य के सभी विभागों को इसके तहत ले आएगी.’ झारखंड सरकार ने एक और कॉल सेंटर शुरू किया है, जिसका संचालन झारखंड राज्‍य विद्युत परिषद कर रही है.

मुंडा आम लोगों को इस बात के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वे उन्हें सरकारी योजनाओं की वास्तविक स्थिति या किसी नियम उल्लंघन के बारे में फोटोग्राफ भी भेजें. मुंडा कहते हैं, ‘अगर किसी योजना की स्थिति हमें भेजी गई अधिकृत रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है, तो हम संबंधित अधिकारियों की खबर लेंगे.’

25 जनवरी 2012: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

शिकायत निवारण प्रणाली झारखंड के लिए बड़ी उपलब्धि है. ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग अपनी शिकायतें इस उम्मीद में दर्ज करवा रहे हैं कि कोई समाधान मिलेगा. अर्जुन मुंडा पर यह बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें इस उम्मीद को बरकरार रखना होगा.

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