चुनाव का बिगुल बजते ही नेताओं को हार-जीत के साथ अपनी सुरक्षा की भी चिंता सताने लगी है. चुनाव के बाद जनता को सुरक्षा देने का वादा करने वाले नेता फिलहाल खुद अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं. वोट मांगने के लिए जनता के बीच जाने में उन्हें सरकारी सुरक्षा पर भरोसा नहीं सो अपने इर्दगिर्द निजी सुरक्षा गार्डों का घेरा बना रखा है.
पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मो. अयूब ने चुनाव की घोषणा होने के बाद से अपनी सुरक्षा बढ़ा दी है. उनके इर्दगिर्द करीब आधा दर्जन निजी सुरक्षा गार्ड संभावित खतरे की निगहबानी करते हैं. अयूब बताते हैं कि पिछले साल 15 जून को फैजाबाद फ्लाइओवर पर उनपर जानलेवा हमला हुआ था. वे बच गए लेकिन रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से आज भी व्हील चेयर का सहारा ले रहे हैं.
उम्मीदवारों में खुद की सुरक्षा को लेकर बढ़ी फिक्र ने निजी सुरक्षा एजेंसियों की चांदी कर दी है. वैसे तो प्रदेश में केवल पांच बड़ी सुरक्षा एजेंसियां हैं, जिनका नेटवर्क करीब-करीब हर जिले में है. लेकिन स्थानीय स्तर पर खुली निजी सुरक्षा एजेंसियों की संख्या भी 20 के करीब बैठती है. इनमें 3,000 जवान नेताओं और उम्मीदवारों को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. ये बगैर असलहे वाले सुरक्षा गार्ड हैं क्योंकि चुनाव आचार संहिता में सार्वजनिक स्थलों पर असलहा प्रतिबंधित है.
निजी सुरक्षा गार्ड ही क्यों? लखनऊ में चुनाव लड़ रहे एक सपा प्रत्याशी इसका जवाब देते हैं, ‘पुलिस के जवान का एक खौफ होता है. साथ ही इनको लेकर वोट मांगने जाओ तो जनता समझती है कि उम्मीदवार अपना प्रभाव दिखाना चाहता है. मतदाताओं में इसका गलत संदेश जाता है. जबकि निजी सुरक्षा गार्डों के साथ ऐसा नहीं है. ये सिविल पोशाक में होते हैं. इन्हें मनमाफिक पोशाक भी पहनाई जा सकती है जिससे ये हमारी पार्टी के ही सदस्य लगें.’
निजी गार्डों की जरूरत बड़े नेताओं को भी पड़ रही है, जिनके पास पहले से ही एक्स, वाइ या जेड श्रेणी की सरकारी सुरक्षा मौजूद है. बीती 23 जनवरी को उत्तराखंड के विकासनगर के हाइवे लैंड मैदान में एक जनसभा के दौरान कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भाषण दे रहे थे तभी भीड़ में से एक युवक ने उनके ऊपर जूता फेंका. इसके बाद से राहुल की रैलियों में निजी सुरक्षाकर्मी भी दिखाई देने लगे हैं. 28 जनवरी को भकुरई, हरदोई में राहुल की रैली के दौरान मंच से 15 मी. की दूरी पर बनी सुरक्षा घेरे की रेखा 'डी' के आसपास ग्रामीणों की वेशभूषा में 50 से ज्यादा हट्टे-कट्टे जवान तैनात थे, इनमें से कुछ ने कुर्ता जींस के साथ सिर में मुरैठा भी बांध रखा था. प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जूता फेंकने की घटना दोबारा न हो, इसके लिए निजी सुरक्षा गार्डों का सहारा लिया गया है. मंच पर 'डी' घेरे तक राहुल की सुरक्षा का जिम्मा एसपीजी उठा रही है और इसके बाहर भीड़ में आने वाले असामाजिक तत्वों पर नजर रखने के लिए निजी गार्डों का सहारा लिया जा रहा है. राहुल की सभी रैलियों में इसी तरह का ही सुरक्षा बंदोबस्त होगा.
राहुल ही नहीं, बीती 18 जनवरी को गोंडा के आइटीआइ मैदान में सभा करने आये समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायमसिंह यादव हेलिकॉप्टर से उतरकर जैसे ही मंच की ओर बढ़े थे वैसे ही बैरिकेडिंग के इर्दगिर्द जमा लोग धक्का-मुक्की करते हुए सुरक्षा के लिए बने 'डी' घेरे में कूद आए. इसी बीच मंच के करीब पहुंचे एक युवक को हटाने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी. इस घटना के बाद से सपा ने अपने स्तर पर मुलायम और अखिलेश यादव की सुरक्षा को मजबूत करने के प्रबंध किए हैं.
फेडरल सिक्युरिटी एजेंसी के सीएमडी अरमान खान बताते हैं कि चुनाव की घोषणा के बाद बिना असलहा वाले निजी सुरक्षा गार्डों की मांग अचानक बढ़ गई है. इन सुरक्षा गार्डों में तीन तरह के जवान हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) से सेवानिवृत्त जवान, रिटायर फौजी और प्रशिक्षित सिविलियन गार्ड. जरूरत के हिसाब से इनकी मांग है. मसलन, पूर्वांचल में चुनाव लड़ रहे भाजपा के एक बड़े नेता ने अपने सुरक्षा दस्ते में सेवानिवृत्त एनएसजी जवान और रिटायर फौजी को शामिल किया है. चूंकि इस नेता की सभाओं में पार्टी के कई बड़े नेता शामिल हो रहे हैं जिनको सुनने के लिए काफी भीड़ भी आ रही है.
अरमान के मुताबिक सेवानिवृत्त एनएसजी के जवान पैनी सतर्कता रखते हैं. भले ही चुनाव में इनके पास असलहा नहीं होता लेकिन भीड़ में मंच या नेता के करीब आने वाला कोई भी संदिग्ध व्यक्ति इनकी निगाह से नहीं बच सकता. अरमान बताते हैं कि उनकी कंपनी के 500 निजी सुरक्षा गार्ड पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
चुनाव में उतरने वाले नेता अपनी सुरक्षा को दुरुस्त करने के लिए निजी गार्डों के अलावा सुरक्षा सामान का भी सहारा ले रहे हैं. बुलेट प्रूफ सामान मुहैया कराने वाली मेरठ की कंपनी 'जेड प्लस सिक्युरिटी सिस्टम लिमिटेड' के मालिक बलविंदर सिंह शेखू बताते हैं कि जिस तरह से आपराधिक प्रवृत्ति के लोग चुनाव मैदान में उतर रहे हैं उससे दूसरे उम्मीदवार भी अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित हैं. करीब एक साल पहले से ही ये उम्मीदवार अपनी सुरक्षा के लिए बुलेट प्रूफ सामान की व्यवस्था करने में जुट गए हैं.
बलविंदर बताते हैं, ‘बीते एक साल के दौरान उनकी कंपनी ने 500 बुलेट प्रूफ जैकेट बेचीं और 150 गाड़ियों को बुलेट प्रूफ किया. इनके ज्यादातर उपभोक्ता राजनीतिक पृष्ठभूमि के थे. आमतौर पर एक साल में 80 से 100 बुलेट प्रूफ जैकेट बिकती थीं लेकिन बीते साल इसमें पांच गुना का इजाफा हो गया.’ 'जेड प्लस सिक्युरिटी सिस्टम लिमिटेड' से बीते साल बिकने वाली 500 बुलेट प्रूफ जैकेटों के 60 फीसदी खरीदार प्रदेश के पूर्वी जिलों से थे.
लखनऊ के डीआइजी डी.के. ठाकुर बताते हैं कि बगैर शासन की अनुमति के किसी भी गाड़ी को बुलेट प्रूफ नहीं किया जा सकता. बलविंदर बताते हैं कि बीते साल उनकी कंपनी ने कुल 150 गाड़ियों को बुलेट प्रूफ किया जो इससे बीते साल की संख्या से करीब तीन गुना है. अलग-अलग गाड़ी के हिसाब से इन्हें बुलेट प्रूफ करने का खर्च भी अलग-अलग है. स्कारपियो, एंडेवर, सफारी, पजेरो जैसी एसयूवी को बुलेट प्रूफ कराने का खर्च 1,50,000 रु. तक आता है.
प्रत्याशियों में खुद के बूते अपनी सुरक्षा चौकस करने की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे पूर्व पुलिस महानिदेशक और 'इलेक्शन वॉच' संस्था के संयोजक आइ.सी. द्विवेदी चुनाव में अपराधियों की बढ़ती संख्या को जिम्मेदार मानते हैं. वे कहते हैं, ‘प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उतरने वाले कुल उम्मीदवारों में तकरीबन 35 फीसदी दागी छवि के हैं. इस वजह से चुनाव में किसी भी वक्त हिंसा की आशंका बनी रहती है.’ इसी वजह से दूसरे उम्मीदवार अपनी सुरक्षा के लिए निजी एजेंसियों का सहारा ले रहे हैं.
यदि चुनाव में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश रोक दिया जाये तो दूसरे उम्मीदवार निडर होकर चुनाव लड़ सकेंगे. शायद तभी सही मायने में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना की ओर कदम बढ़ सकेगा.

