अनिल कपूर की तेजाब या अमिताभ बच्चन की अमर अकबर एंथनी जैसी बॉलीवुड फिल्मों में देसी शराब बार-बार दिखती है. बुरे लोगों के साथ शराब इस कदर जुड़ी हुई है कि तीन दशक पहले जमशेदपुर के एक शराब कारोबारी अपनी दादी को तमाम प्रयास के बावजूद यह समझने में सफल नहीं हो पाए कि वे वैध कारोबार कर रहे हैं. उन्होंने समझया कि सरकार ने इसके लिए उन्हें लाइसेंस दिया है. इसके बावजूद उस बुजुर्ग महिला की यह धारणा नहीं बदली कि उनके पोते का कारोबार फिल्मों में दिखाए जाने वाले माफिया के कामकाज जैसा ही है.
उस दादी मां की सोच अपनी जगह सही हो सकती है-उत्तर प्रदेश में शराब के दिग्गज व्यापारी गुरुदीप सिंह 'पोंटी' चड्ढा पर इनकम टैक्स विभाग के छापे पिछले दिनों सुर्खियां बने थे-लेकिन भारत में बनी भारतीय शराब (आइएमआइएल जिसे 'कंट्री लिकर' या देसी शराब भी कहते हैं) ऐसा वैधानिक उद्योग है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 2011-12 में इस उद्योग का कारोबार 24,000 करोड़ रु. का था. 2011-12 में 45 करोड़ केस (कुल बिक्री का करीब 42 फीसदी हिस्सा) आइएमआइएल की बिक्री हुई जिसमें बियर और वाइन शामिल नहीं हैं. एक केस में आम तौर पर 12 से 42 बोतल होती हैं, यह केस के आकार पर निर्भर करता है.
देशभर में अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के ग्राहकों की तरह ही देसी शराब पीने वाला उपभोक्ता भी संपन्न हो रहा है. इसकी वजह से ग्लोबस स्पिरिट्स, रेडिको खेतान, चंडीगढ़ डिस्टिलिरीज और जीएम ब्रूवरीज जैसी देसी शराब बनाने वाली कंपनियां लगातार आगे बढ़ रही हैं और अपनी तकनीक का विस्तार कर रही हैं. हालांकि इनकी शराब की एक बोतल की कीमत आम तौर पर 200 रु. से कम ही होती है.
ग्लोबस स्पिरिट्स के कार्यकारी निदेशक शेखर स्वरूप ने बताया, ''रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले घरेलू उत्पादों (एफएमसीजी) के कारोबार के विपरीत आइएमआइएल कारोबार राज्य केंद्रित होता है. विदेशी शराब के विपरीत इसके लिए आप जिस राज्य में बिक्री करना चाहते हैं, वहां एक ब्रूवरी (शराब की भट्ठी) होनी चाहिए.'' 26 साल के स्वरूप ब्रिटेन की ब्रैडफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद अपने पारिवारिक कारोबार ग्लोबस से तीन साल पहले ही जुड़े हैं. लेकिन वे इस कारोबार से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. उनकी कंपनी का देसी शराब का कारोबार हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में फैला है. दूसरी तरफ भारत में बनी विदेशी शराब (आइएमएफ एल)-व्हिस्की, वोदका और अन्य शराब जो भारतीय नहीं है-का कुल खपत में करीब 35 फीसदी हिस्सा है. शेष 30 फ ीसदी हिस्सा बियर और वाइन का है. ऐसे एल्कोहलयुक्त पेय जो आइएमएफएल के अंतर्गत नहीं आते, उन्हें 'कंट्री लिकर' की श्रेणी में रखा जाता है. अब ज्यादातर विदेशी शराब अनाज से बनती है. पहले इसे शीरे से तैयार किया जाता था. लेकिन देसी शराब अब भी शीरे से ही बनाई जाती है.
1993 में स्वरूप के पिता ने पानीपत में एक डिस्टिलरी लगाकर आइएमआइएल कारोबार शुरू किया, जिसमें अब हर रोज 45,000 लीटर शीरे की प्रोसेसिंग की जाती है. कंपनी का नींबू ब्रांड लांच हुए एक साल से थोड़ा ज्यादा वक्त ही हुआ है और आज यह हरियाणा के बाजार का अगुआ बन चुका है.
स्वरूप ने इसकी मार्केटिंग के लिए एफएमसीजी जैसा तरीका अपनाया है. खुदरा विक्रेताओं को बोतल पर डिस्काउंट देने की जगह उन्होंने ब्रांड बिल्डिंग और प्रचार अभियानों पर पैसा खर्च करना उचित समझ. शीशे की बोतल की जगह पैकिंग के लिए उच्च स्तर की पीईटी बोतल का इस्तेमाल करने वाले स्वरूप कहते हैं, ''हमने पेप्सी और कोक का मुआयना किया और उनसे पैकेजिंग की सीख ली.'' ग्लोबस स्पिरिट्स को इस साल आइएमआइएल कारोबार से 260 करोड़ रु. की आमदनी की उम्मीद है.
अकेले उत्तर प्रदेश में करीब 30 लाख केस देसी शराब बेचने वाली रेडिको खेतान तो पीईटी बोतल खुद ही बनाती है. कंपनी के निदेशक (ऑपरेशंस) के.पी. सिंह ने बताया,''हम अच्छी गुणवत्ता वाले रेजिन का इस्तेमाल करते हैं. देसी शराब के बारे में धारणा बदलनी चाहिए.'' रेडिको खेतान के एक कार्यकारी ने बताया कि उनकी कंपनी के कारोबार में देसी शराब का हिस्सा सिर्फ पांच फीसदी ही है.
पैकेजिंग से देसी शराब के बारे में धारणा बदली जा सकती है. साथ ही इसे सुरक्षित बनाने के लिए इसके प्रोसेस करने के तरीके में भी बदलाव किया जा रहा है. बड़ी डिस्टिलरी अब परंपरागत संशोधित स्पिरिट की जगह एक्स्ट्रा न्यूट्रल एल्कोहल (ईएनए) का इस्तेमाल कर रही हैं जो कि उम्दा स्तर के डिस्टिलेशन से गुजरती है और ज्यादा शुद्ध होती है. इन सबके बावजूद इस कारोबार की रफ्तार को लेकर चिंताएं हैं. देसी शराब की बिक्री जहां सालाना औसतन आठ फीसदी की दर से बढ़ रही है, वहीं विदेशी शराब की बिक्री इससे दोगुना गति से बढ़ रही है. देसी शराब के कई उत्पादक अब सस्ते आइएमएफएल उत्पादन की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं.
सिंभावली डिस्टिलरी ने देसी शराब का कारोबार बंद कर दिया है और सस्ते आइएमएफएल तैयार कर रही है. सिंभावली डिस्टिलरी के मुख्य महाप्रबंधक आर. के. सिंह कहते हैं, ''उत्तर प्रदेश में देसी शराब उतनी ही अच्छी होती है जितनी आइएमएफ एल. आमदनी के समूह के लिहाज से एक तरह का विभाजन हो गया है और लोग देसी शराब ज्यादा नहीं पी रहे हैं.'' आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो देसी शराब पर प्रतिबंध है. ऑल इंडिया डिस्टिलर्स एसोसिएशन के महानिदेशक वी. एन. रैना ने कहा, ''इससे अवैध कारोबार कम हुआ है.'' उन्होंने कहा कि पिछले तीन-चार साल में अवैध शराब के कारोबार में 30 फ ीसदी तक कमी आई है. उद्योग के जानकारों का कहना है कि जिन राज्यों में देसी शराब की 25 डिस्टिलरी हैं वहां उनका कंसोलिडेशन हो सकता है और सिर्फ तीन-चार बड़े खिलाड़ी ही रह सकते हैं.
ग्लोबस या रेडिको खेतान जैसी बड़ी कंपनियां आगे बढ़ती रह सकती हैं. जमशेदपुर के कारोबारी की दादी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन दो दशकों से भी ज्यादा समय से वे जो बार चला रहे हैं, उसकी बिक्री लगातार बढ़ रही है.