पावर थिंकिंग
डॉ. उज्ज्वल पाटनी
मेडिटेंट इंडिया बुक्स,
नई दिल्ली
कीमतः 185 रु.
अपने नाम के अनुरूप इस पुस्तक में जिस एक अवधारणा पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया है, वह है थिंकिंग यानी सोचने के ढंग पर. डॉ. उज्ज्वल पाटनी ने अपनी इस पुस्तक में सरल भाषा और सामान्य तरीके से सोच में बदलाव लाने की वकालत की है. और लेखक के विचार से वही किसी व्यक्ति की सफलता की कुंजी है. पुस्तक प्रेरक भी है, रोचक भी और तथ्यपरक भी. पुस्तक के कई अंशों में लेखक ने सोच और मनोभाव में बदलाव लाने के कई महत्वपूर्ण टिप्स भी दिए हैं, जिन्हें अगर कोई व्यक्ति चाहे तो आसानी से व्यवहार में ला सकता है. जैसे कि पुस्तक के आखिरी भाग में दिए गए आठ क्रांतिकारी और कड़वे अध्याय.
पावर थिंकिंग की अवधारणा की व्याख्या करते समय लेखक ने काफी स्पष्ट शब्दों में यह बताने का प्रयास किया है कि कैसे हम अपने नजरिए में बदलाव लाकर व्यवहारकुशल, स्थिर, दूरदर्शी और आत्मनिर्भर बन सकते हैं. लेखक का मानना है कि आजकल हर तरफ जो पॉजिटिव थिंकिंग यानी सकारात्मक सोच की बात की जाती है, वह काफी नहीं है. सफलता के लिए पॉजिटिव थिंकिंग से आगे बढ़कर पावर थिंकिंग अपनाने की जरूरत है. पावर थिंकिंग के चार सिद्धांतों के जरिए लेखक ने इसकी अवधारणा को स्पष्ट करने की कोशिश की है.
पावर थिंकिंग कहती है कि उपलब्धियों को पाने के लिए आपको हां से ज्यादा ना बोलने की कला आनी चाहिए. इससे आप दूसरों के लिए उपयोगी तो रहेंगे लेकिन कोई आपका दुरुपयोग नहीं कर सकेगा. पावर थिंकिंग अपने हितों की रक्षा करने की शक्ति पैदा करने को कहती है.
पुस्तक में पावर थिंकिंग को विकसित करने के लिए विभिन्न चरण बताए गए हैं. इसमें कुछ ऐसी बुनियादी बातों पर चर्चा की गई है, जिन्हें हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में नजरअंदाज कर देते हैं. हालांकि वे काफी महत्वपूर्ण होते हैं. लेखक की खूबी यही है कि उन्होंने सामान्य बातों के महत्व को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से समझया है. व्यक्तिगत जीवन में पावर थिंकर बनने के चार चरण वाला खंड उपयोगी है.
पुस्तक की एक खासियत यह है कि इसमें विभिन्न तरह के विचारों का समावेश है और लेखक ने अपनी बात रखने के लिए अनुभव, घटनाओं, कहानियों और दृष्टांतों का मुक्तभाव से इस्तेमाल किया है. इसमें पाश्चात्य लेखकों और भारतीय विचारों का सम्मिश्रण है और सरल भाषा में लिखे जाने के कारण सुग्राह्य है.
हालांकि किताब की एक खामी दिखती है. वह है इसमें मौलिकता की कमी. विभिन्न विचारों, अवधारणाओं और लेखकों की कही गई तमाम बातों को इस किताब में समाहित किया गया है. हालांकि उससे इसकी उपयोगिता पर असर नहीं पड़ता. पुस्तक व्यावहारिक है, उपयोगी है और प्रेरक है, खासकर आज के युवा वर्ग के लिए, जो येन-केन-प्रकारेण आज की इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में सफलता के सूत्रों की बड़ी बेसब्री से तलाश कर रहा है. लेकिन ऐसे पाठकों को यह भी तय करना होगा कि किताब में सुझए गए उपायों को वे अपनाएं, तभी उन्हें इसका लाभ मिल पाएगा.
किताब की एक खासियत यह भी है कि इसे बार-बार पढ़ने पर भी एकरसता का एहसास नहीं होता. लेखक ने बीच-बीच में कुछ घटनाएं, संस्मरण, कहानियां और कुछ अपने प्रयोगों की बात डालकर इसे जीवंत बना दिया है. लेखक का यह कथन कि 'रोल मॉडल' अपनाएं, बहुत ही सटीक है क्योंकि समाज में बदलाव लाने में रोल मॉडल की भूमिका बहुत ही कारगर होती है. आज के परिवेश में तो सही रोल मॉडल का चयन और भी जरूरी है क्योंकि समाज में मूल्यों का क्षरण हो रहा है. कुल मिलाकर व्यक्तित्व विकास और मनोवृत्ति में बदलाव लाने के लिए एक उपयोगी पुस्तक.