कहानी समग्र (तीन खंडों में)
नासिरा शर्मा
किताबघर प्रकाशन,
नई दिल्ली
कीमतः 2,100 रु.
नासिरा शर्मा
नासिरा शर्मा उन कहानी लेखिकाओं में से हैं जिनकी भारतीय ही नहीं बल्कि दूसरे एशियाई मुल्कों खासकर मुस्लिम देशों की संस्कृति, समाज, साहित्य और राजनीति पर गहरी पकड़ है. उन्हें इन विषयों का विशेषज्ञ भी माना जाता है. इन देशों के साहित्य, राजनीति, परिवेश और बौद्धिक हलचलों पर उन्होंने पर्याप्त विमर्श और नियमित लेखन किया है. पत्र-पत्रिकाओं में छपीं उनकी टिप्पणियां और किताबें इस तथ्य का साक्ष्य हैं.
प्रबुद्ध-संवेदनशील सृजक की दृष्टि और उसकी पूर्वाग्रह रहित मुद्रा के कारण शर्मा ने भारतीय समाज में अल्पसंख्यकों की समस्याओं और उनके समाधान भी सुझाए हैं. उनका रचनात्मक लेखन भी इसलिए विश्वसनीय लगता है कि उन्हें जटिल भारतीय समाज के समाजशास्त्र की प्रामाणिक पहचान है. शर्मा सामाजिक विषमताओं को दैनंदिन घटनाओं और अपने आसपास के पात्रों के माध्यम से उभारने में पारंगत हैं. यही उनका रचनात्मक वैशिष्ट्य है.
उनके सात उपन्यास और लगभग 130 कहानियों के कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. उनकी अब तक प्रकाशित सभी कहानियां तीन खंडों में इस संकलन में मौजूद हैं. अपनी शुरुआती कहानियों में शर्मा ने एक ऐसा प्रखर स्त्री-विवेक और विमर्श किया जिसमें बड़बोलापन नहीं है बल्कि विशिष्ट स्त्री-भाषा के नजरिए से भी उनके योगदान को रेखांकित किया जा सकता है. शुरुआत में ही वे कथित स्त्री-विमर्शवादी उस लेखक का प्रतिपक्ष प्रस्तुत करती हैं, जिसमें कहानी का मतलब केवल निजी संबंधों की सनसनीखेज प्रस्तुति माना गया हो. शर्मा एक सतर्क स्त्री की आंख से अपने समय और समाज में अपनी पहचान के लिए जूझ्ने वाली औरतों की लड़ाई और हिम्मत को देखती और व्यक्त करती हैं.
शर्मा ने मानवीय संबंधों की समय और समाज के संदर्भ में जांच-पड़ताल की है. उन्होंने यह सब प्रस्तावित किया है कि समाज कहीं का भी हो, उसमें जीवित लोग पहले अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं और फिर बड़े इंसानी सरोकारों को बचाने के लिए लड़ते हैं. उनके कहानी संग्रहों पत्थर गली, शामी कागज और इब्ने मरियम की कहानियां ईरान और भारत की संस्कृति, राजनीति और जीवन को इन्हीं प्रसंगों में व्यक्त करती हैं. शर्मा संस्कृति के इतिहास और वर्तमान के बीच में उभरने वाले फर्क को ऐसी सजग भाषा में प्रस्तुत करती हैं कि कहानियों के अदृश्य पात्र भी पाठक की संवेदना का हिस्सा बन जाते हैं. खास बात यह है कि इंसानी रिश्तों के बहाने लेखिका बदलते वक्त में मानवीय मूल्यों की पड़ताल करती है.
नासिरा शर्मा ने मनुष्य की संवेदनशीलता के साथ-साथ उसमें छुपे हुए हैवान को भी पहचाना है. इस संदर्भ में खुदा की वापसी, संग सार, शबीना के चालीस चोर जैसे संग्रहों की कहानियां अहम हैं. ये कहानियां बताती हैं कि इंसान से शैतान के बीच के लम्हे में मनुष्य का कायांतरण नहीं होता; उसका मानसिक धरातल और यहां तक कि रूह भी बदल जाती है. शर्मा ने मनुष्यों के चारित्रिक पतन को कई धरातलों पर परखा है.
राजनैतिक शक्तियां, सत्ता हथियाने के लिए हैवान बन जाती हैं तो दूसरी तरफ कट्टर मजहबी ताकतें धर्म की रक्षा के नाम पर अधार्मिक, अमानवीय कुकृत्य करती हैं. शर्मा ने इन कहानियों में देश और समाज के हाशिये पर पड़े उस मजलूम तबके की खोज-खबर ली है जो ईमानदारी से देश की संस्कृति बचाने के लिए संघर्ष करता है और उसकी तरफ कोई ध्यान भी नहीं देता. ताकतवर असरदार लोग उसका शोषण करते हैं और उसे नष्ट होने के लिए छोड़ देते हैं. इस सिलसिले में खुदा की वापसी और संसार जैसी कहानियां सघन रचनात्मकता का सबूत हैं. ये कहानियां स्थूल विषयों को उठाती हैं लेकिन वस्तु-विन्यास और समूची प्रस्तुति में एक बेहतरीन शिल्प में बदल जाती हैं. उनकी कहानियां यह साबित कर देती हैं कि शिल्प की कलात्मकता श्रेष्ठ विषय से निर्धारित होती है.
शर्मा ने ऐसी कहानियां भी लिखी हैं जो विषयवस्तु की दृष्टि से कविता के नजदीक हैं. बुतखाना, दूसरा ताजमहल और इंसानी नस्ल संग्रहों की कहानियां सूक्ष्मता से इंसान की जांच करती हैं. हिंदी की इस अनूठी कथाकार की कहानी पांचवां बेटा मानवीय सरोकार से परिपूर्ण एक मार्मिक रचना है.
टपकती छत से बचाव की जद्दोजहद यहां मनुष्य की जिजीविषा और करुणा का दस्तावेज बन जाती है. अमतुल और कहानी के दूसरे पात्र पाठक को अपने आसपास के संघर्षरत इंसान लगते हैं इसीलिए उनकी कश्मकश से उसे गहरा जुड़ाव महसूस होता है. ये कहानियां इसलिए कविता के नजदीक हैं क्योंकि कम शब्दों में ये बड़े कथ्य को प्रस्तुत कर देती हैं. लेखिका उन कमजोर आवाजों को भी सुन लेती है जिन्हें समाज दबाता रहा है और उन लोगों को भी सामने लाती है जिन्हें देखकर भी अनदेखी कर दिया जाता है.
नासिरा शर्मा की कहानियों की तीन खंडों में यह समग्र प्रस्तुति एक महत्वपूर्ण रचनाकार के काम को समग्रता में प्रस्तुत करती है और यह मौका देती है कि इन कहानियों केमाध्यम से हमारे समय की एक नई अर्थसंपन्न व्याख्या की जाए.