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स्मृतिशेषः जिंदगी और रिश्तों के मुकम्मल जहां थे योगेश

जिंदगी कैसी है पहेली...गीत लिखने वाले गीतकार योगेश सामान्य जिंदगी जीते हुए बेहद खुश थे. उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं थी. क्योंकि, उन्होंने जिंदगी और रिश्तों को ताउम्र जिया और यही उनके लिए मुकम्मल जहां था

गीतकार योगेश नहीं रहे
गीतकार योगेश नहीं रहे
अपडेटेड 30 मई , 2020

नवीन कुमार/ मुंबई

गीतकार योगेश नवाबी शहर लखनऊ के थे. लेकिन मुंबई में वे गोरेगांव उपनगर में लगभग ढ़ाई सौ वर्गफुट के फ्लैट में रहते थे. उसी में उनके बेटे का परिवार भी रहता था. इस घर में जब वे अकेले होते थे तो खुद ही चाय और कॉफी बना लेते थे. पड़ोस के लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे. इसलिए घर में पुराने एक फ्रिज में उनकी पसंद के खाने पड़ोसी रखते थे और बता देते थे कि अंकल यह रख दिया है. सूरज के ढलने से पहले वे अपनी आंखों में दवा डाल लेते थे, डॉक्टर ने उन्हें एक अलग तरह की ऑयल वाली दवा दी थी. यह दवा डालने के बाद वे सो जाते थे.

दो साल पहले जब मैं इंडिया टुडे हिंदी की साहित्य वार्षिकी के लिए इंटरव्यू करने उनके पास गया था तो उन्होंने अपने हाथ से कॉफी बनाकर दी थी. उनमें जो आत्मीयता देखी वो अद्भुत थी.

जिंदगी कैसी है पहेली ...गीत लिखने वाले गीतकार योगेश सामान्य जिंदगी जीते हुए बेहद खुश थे. उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं थी. क्योंकि, उन्होंने जिंदगी और रिश्तों को ताउम्र जिया और यही उनके लिए मुकम्मल जहां था.

उन्होंने जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीया और रिश्ते को भी वैसी ही शर्तों पर निभाया.

उनके सबसे प्रिय मित्र सत्यप्रकाश थे जो उनके साथ इसी घर में रहते थे. पारिवारिक जिंदगी में दोस्ती का रिश्ता उतना ही अटूट था. उन्होंने कहा था कि सत्यप्रकाश उनकी जिंदगी का हिस्सा थे. उन्हे वे अपनी जेहन से बाहर नहीं कर पा रहे थे.

उन्होंने जिंदगी और रिश्तों को जिस सच्चाई से अपनाया था वो उनके लेखन का भी हिस्सा बन गया था. वो उनके गीतों भी दिखते थे.

लखनऊ से मुंबई आकर एक स्थापित गीतकार बनने के दौरान उन्होंने जिंदगी के सच को जाना और उसे गीतों में भी ढाल दिया था. वे कहते थे कि उनके गीतों में साहित्य है. लेकिन वे खुद साहित्यकार नहीं हैं.

शायद लखनऊ की मिट्टी का असर था जिससे उन्हें गीतकार के साथ कवि के रूप में भी पहचान दिलाई.

रिमझिम गिरे सावन..., कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए..जैसे गानों में भी उनका साहित्य साफ झलकता था. उन्होंने शुरुआती दौर में पैसों के लिए गाने लिखे थे. मगर वे सलिल चौधरी के साथ सचिन देव बर्मन से लेकर राहुल देव बर्मन तक के पसंदीदा गीतकार भी थे. लता दीदी ने भी उनके लिखे गीतों को अपनी आवाज दी. योगेश साठ-सत्तर दशक के ही गीतकार नहीं थे. उन्होंने हर नए दौर को अपने गीतों से झुमाया था.

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