scorecardresearch

जान पर बन आया जादू-टोना

असम के गांवों में आस्था पुरानी दुश्मनी का बदला चुकाने का एक जरिया बन गई है, जहां काला जादू और औरतों को डायन बताकर उनकी हत्या के चलते इस साल 10 लोगों की जान जा चुकी है

जादू-टोना
जादू-टोना
अपडेटेड 30 अक्टूबर , 2011

असम में डायनों को मारने, तंत्रविद्या करने और जानवरों की बलि चढ़ाने का चलन सदियों पुराना है. इस राज्‍य का समाज आज भी आधुनिकता और बर्बरता के बीच असहज अस्तित्व में फंसा हुआ है. इस साल 10 औरतों को डायन बताकर उनकी हत्या कर दी गई है.

काला जादू करने वाले लोग, जिन्हें बेज या ओझा कहा जाता है, आज भी आदिवासी बहुल इलाकों में अपना सिक्का जमाए हुए हैं. और आस्था यहां अक्सर अपने विरोधियों से बदला चुकाने का हथियार बन चुकी है.

8 अक्तूबर को कोकराझार जिले के जराइगुरी में लोगों ने 60 वर्षीय बिगीरम नरज़ारी और उनकी 55 वर्षीया पत्नी उर्बशी नरज़ारी की पत्थर मारकर हत्या कर दी. लोगों का कहना था कि वे दोनों पिछले कुछ माह से गांव में हो रही मौतों के लिए जिम्मेदार थे.

9 अक्तूबर को मेघालय में पश्चिमी गारो हिल्स जिले के पहाड़ी नगर में 121 सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) बटालियन के शिविर के भीतर कथित रूप से 7 साल के एक बच्चे की बलि चढ़ा दी गई.

बच्चे का शव क्षत-विक्षत हो गया था, पेट के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे और माथे में अगरबत्तियां चुभोई गई थीं. पुलिस का कहना है कि इस जघन्य काम में बीएसएफ के दो जवान और असम के मानकाचर का एक तांत्रिक शामिल था.

इस साल डायन बताकर औरतों को मारने की ज्‍यादातर घटनाएं कोकराझार, उदालगुड़ी और सोनितपुर जिलों में हुई हैं. कामरूप (ग्रामीण), गोलपाड़ा, चिरांग, बासका, लखीमपुर और कारबी आंगलोंग जिलों में भी ऐसा प्रचलन मौजूद है.

इन जिलों में भारी निरक्षरता होने के अलावा वे दुर्गम भी हैं और उनमें स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, साफ-सफाई और पीने योग्य पानी का अभाव है. जाहिर है, स्थानीय लोग बीमारियों के इलाज और मृतकों को जिंदा करने के लिए इन्हीं ओझाओं की शरण में जाते हैं.

9 अक्तूबर को नागांव जिले में जूरिया के अक्कास अली को सांप के काट लेने पर अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इसके बाद उसके परिवार ने ओझाओं को बुलाया, जिन्होंने दावा किया कि वे उसे जिंदा कर सकते हैं.

20 सितंबर को गुवाहाटी में इसी तरह के एक मामले में ओझा लोग सांप के काटने से मर चुकी 45 वर्षीया सरला देवी को तीन दिन तक जिंदा करने की कोशिश करते रहे. आखिर उसके शव को लकड़ी की खपच्चियों से बनी नाव पर डालकर ब्रह्मपुत्र नदी में बहा दिया गया. इस महिला के एक रिश्तेदार ने बताया, ''किसी दिन वह शव किसी ओझा के हाथ लग गया तो वह उसे फिर से जिंदा कर  सकता है.''

किसी को डायन बताना ह्ढायः बदला भंजाने का एक बहाना होता है. सोनितपुर जिले के एक पुलिस अधिकारी बताते हैं, ''कुछ मामलों में डायन बताकर की गई हत्याएं और कुछ नहीं, बल्कि भू-माफिया का काम है.''

22 जून को सोनितपुर में पुलिस को एशिया के सबसे बड़े मोनाबारी टी स्टेट में एक गड्ढे में चार शव पड़े मिले. 46 वर्षीय बिनंदा गौड़, उनकी 36 वर्षीया पत्नी करिश्मा गौड़, 15 वर्षीया बेटी नैना और 14 वर्षीय पड़ोसी मोंगलू मौर के शवों पर कई जगह घाव के निशान थे और चेहरों को तेजाब से झुलसा दिया गया था. बागान मजदूरों ने करिश्मा और नैना को डायन घोषित कर दिया था.

इन हत्याओं के आरोप में गिरफ्तार लोगों में टीकू  ओरांग ने स्वीकार किया कि उन लोगों को सूरत मोदी नाम के एक आदमी ने उकसाया था कि वे बिनंदा और उसके परिवार पर डायन विद्या करने का आरोप लगाएं, जिसकी वजह से बागान के मजदूर बीमार पड़ रहे थे. लेकिन बिनंदा की पत्नी और बेटी असली निशाना थे. हत्या से पहले दोनों के साथ बलात्कार किया गया.

आधिकारिक रिपोर्टें बताती हैं कि 2001 से लेकर आज तक डायनों को लेकर इस तरह की मान्यता के चलते 61 लोग मारे जा चुके हैं. इनमें 31 बोडो और 22 आदिवासी थे. कुल मिलाकर 86 मामले दर्ज हुए और 54 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए जा चुके हैं. लेकिन आज तक एक भी मामले में सजा नहीं हुई है. जो लोग डायन बताकर हत्या करते हैं, वे बच निकलते हैं, क्योंकि ऐसे मामलों में कोई गवाह  नही मिलता है. इसके अलावा किसी एक को दोषी बताना संभव नहीं होता क्योंकि यह काम भीड़ करती है.

इस राज्‍य में जानवरों की बलि चढ़ाने की घटनाओं में वृद्धि होना अंधविश्वास का ही एक और रूप है. असम में 100 से ज्‍यादा मंदिर हैं, जहां यह प्रथा प्रचलित है. इनमें गुवाहाटी का मशहूर कामाख्या मंदिर भी शामिल है. बलि की संख्या ही सारी दास्तां बयां कर देती है. नलबाड़ी जिले के बिलवेश्वर मंदिर में वर्ष 2010 में 20 भैंसों की बलि चढ़ाई गई और इस साल अभी तक 32 भैंसों को मौत के घाट उतारा जा चुका है.

गुवाहाटी के उग्रतारा मंदिर में इसी अवधि के दौरान यह संख्या 3 से बढ़कर 13 का आंकड़ा पार कर गई. सूत्रों का कहना है कि इस साल अष्टमी पूजा के दौरान शिवसागर जिले के देवी दौल में 500 बकरों के अलावा 200 बत्तखों और कबूतरों की बलि चढ़ाई गई. गुवाहाटी स्थित एक स्वयंसेवी संगठन आरण्यक के प्रमुख बिभब तालुकदार कहते हैं, ''ईमानदारी से कहें तो इस प्रथा को रोक पाना नामुमकिन है. हम सिर्फ यही कर सकते हैं कि इसकी संख्या में कमी ला सकते हैं.''

कई दबाव समूह और स्वयंसेवी संगठन औरतों को डायन बताकर मारने की प्रथा के खिलाफ काम कर रहे हैं, लेकिन इसका ज्‍यादा असर नहीं हुआ दिखता है. इस साल जून में कोकराझार में ऑल बोडो स्टुडेंट्स यूनियन ने जागरूकता अभियान शुरू किया. ओमेयो कुमार दास इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल चेंज ऐंड डेवलपमेंट की निदेशक इंद्राणी दत्ता कहती हैं, ''जब तक इस खतरे के मूल कारण-शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा के अभाव-का समाधान नहीं होता, इस तरह के अभियान कभी कारगर नहीं होंगे.''

2001 में असम पुलिस के तत्कालीन डीआइजी (पश्चिमी रेंज) कुला सैकिया ने कोकराझार में डायनों की हत्या की प्रथा के खिलाफ प्रहरी नामक योजना शुरू की थी, जिसमें गांव के मुखियाओं और बुजुर्गों को जागरूक बनाने की कोशिश की गई थी. यह योजना पिछले दो साल से बंद है. कोकराझार के निवासी थेबला बासुमतारी के मुताबिक, ''खतरे से निबटने में यह योजना अधिक कारगर रही थी.

इसे दोबारा शुरू किया जाना चाहिए.'' सैकिया कहते हैं, ''यह कहना सही नहीं है कि डायन बताकर की जाने वाली हत्याओं की घटनाएं बढ़ी हैं. प्रहरी परियोजना और मीडिया में चर्चा की वजह से ऐसी घटनाएं अब ज्‍यादा प्रकाश में आने लगी हैं.''

असम राज्‍य महिला आयोग ने बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर डायन के नाम पर औरतों की हत्या के खिलाफ कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सैकिया समेत तीन सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया, ताकि वे एक मसौदा तैयार करके सरकार को दे. अब तक इसकी दो बैठकें हो चुकी हैं.

Advertisement
Advertisement