महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा-शिवसेना में सीटों को लेकर खींचतान संबंधी बयान महज सियासी रणनीति का हिस्सा है. मोदी के चमत्कारी नेतृत्व और 2014 के विधानसभा चुनाव नतीजों से साफ है कि, भाजपा के लिए शिवसेना से गठबंधन मजबूरी नहीं है. भगवा दल इस बात को लेकर आश्वस्त है कि यदि पार्टी अकेले भी लड़ती है तो भी वह 150 से ज्यादा सीट अपने दम पर जीत सकती है.
अलबत्ता यदि वह शिवसेना के साथ गठजोड़ में लड़ती है तो भी उसके खाते में इससे अधिक सीट शायद ही आए क्योंकि 100 से अधिक सीटें उसे सहयोगी (शिवसेना) को देनी होगी. सियासत की इस हकीकत को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी जानते हैं लेकिन पार्टी की प्रासंगिकता और कैडर का भरोसा बनाए रखने के लिए भाजपा के साथ सीट बंटवारे के मुद्दे पर गतिरोध संबंधी बयान देने और दिलाने की रणनीति उनके अनकूल है.
महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना, भाजपा से अलग होकर लड़ी थी. तब पार्टी को सिर्फ 63 सीटों पर जीत मिली थी. भाजपा, शिवसेना के मुकाबले लगभग दोगुनी 122 सीटें जीतने में सफल रही थी. भाजपा अपने दम पर बहुमत से सिर्फ 23 सीटें पीछे रह गई थी.
लेकिन 2019 की स्थिति 2014 से अलग है और भाजपा के ज्यादा अनुकूल है.
विपक्षी कांग्रेस-एनसीपी 2014 के मुकाबले अधिक कमजोर दिख रही है. विपक्षी दलों के नेता बड़ी तादाद में भाजपा में शामिल हो रहे हैं. राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस पिछले पांच साल में स्थापित नेता बन चुके हैं. राज्य सरकार ने पिछले पांच साल में राज्य में असंतोष के जितने भी माहौल बने, उससे पार पा लिया, और इस बात कोई बड़ा असंतोष फड़नवीस सरकार के खिलाफ नहीं है.
कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने को लेकर राज्य में मोदी सरकार की साख और बढ़ चुकी है.
महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल कहते हैं कि, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस के नेतृत्व में एनडीए राज्य में 220 से अधिक सीट जीतेगा. तो क्या दोनों दल 144-144 सीटों के साथ गठबंधन करेंगे. महाराष्ट्र भाजपा के नेता इससे दो टूक इंकार करते हैं, वह कहते हैं कि, “भाजपा उतने सीटों पर जरूर लड़ेगी ताकि 145-50 सीट भाजपा खुद जीत सके.” मतलब भाजपा, शिवसेना के मुकाबले अधिक सीटों पर लड़ेगी?
केंद्रीय भाजपा के एक नेता कहते हैं कि, निश्चित रूप से. बहुत जल्द ही दोनों दलों में सीटों के मुद्दे पर आम राय बन जाएगी. सूत्रों का कहना है कि सीट बंटवारे को लेकर सभी 288 सीटों पर चर्चा नहीं हो रही है. भाजपा जीती हुई 122 सीटों पर कोई समझौता नहीं करेगी. इसी तरह पार्टी शिवसेना की तरफ से जीते गए 63 सीटों में छेड़छाड़ के मूड में नहीं है. ऐसे में बचे हुए 103 सीटों को लेकर ही बात होगी. इन 103 सीटों में भाजपा के खाते में 65 और शिवसेना के खाते में 30 सीटें आ सकती है. शेष 8 सीटें छोटे सहयोगियों को दिए जाने की संभावना है.
तो क्या बचे हुए 103 सीटों में शिवसेना और भाजपा बराबर की संख्या में सीटों का बंटबारा नहीं करेंगे? भाजपा के एक महासचिव कहते हैं कि इस की संभावना कम है.
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