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बिहार में मुखिया पद के लिए घमासान

एक समय सरपंच को ग्राम समिति का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था, लेकिन समय के साथ उसका महत्व कम होता लगता है.

बिहार में पंचायत चुनाव
बिहार में पंचायत चुनाव
अपडेटेड 4 मई , 2011

एक समय सरपंच को ग्राम समिति का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था, लेकिन समय के साथ उसका महत्व कम होता लगता है. बिहार में स्थानीय स्वशासन ने इस व्यवस्था को बदल कर रख दिया है और सरपंच अपना महत्व मुखियाओं के हाथों खो बैठे हैं.

बिहार में 10 चरणों में चल रहे पंचायत चुनावों में मुखिया पद के उम्मीदवारों की संख्या से इस बात की पुष्टि हो जाती है. राज्‍य चुनाव आयोग के उपसचिव और जनसंपर्क अधिकारी राजीव राठौर बताते हैं, ''मुखिया पद की दौड़ में 79,423 उम्मीदवार हैं.'' दूसरी ओर, सरपंच पद के लिए 36,560 उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में हैं, बिहार पंचायत चुनाव 20 अप्रैल से शुरू हुए हैं और मई के मध्य में समाप्त होंगे.

यही नहीं, मुखिया पद के कई उम्मीदवारों ने ग्राम समिति पर अपना वर्चस्व बनाए रखने और भविष्य पर नजर रखते हुए खुद के समर्थन वाले उम्मीदवार भी उतारे हैं. वरीयता देने के पीछे बहुत ही साधारण कारण मौजूद हैं: सरपंचों के पास कोई भी वित्तीय शक्ति नहीं है, वहीं मुखियाओं का विकास योजनाओं पर संपूर्ण नियंत्रण रहता है जिसमें ग्रामीण सड़कें तक शामिल हैं, जिनसे मोटा पैसा जुड़ा रहता है.

सत्ता के विकेंद्रीकरण ने मुखियाओं को चैक पर हस्ताक्षर करने का अधिकार भी दे दिया है, इसके अलावा उन्हें सब्सिडी की सिफारिश और पंचायत अध्यापकों तथा समाज कल्याण योजनाओं के लिए विकास मित्र भर्ती करने का भी अधिकार हासिल है. हालांकि राज्‍य सरकार अभी तक बिहार में 2.5 लाख अध्यापकों की भर्ती कर चुकी है.

मुखियाओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. कुछ तो अध्यापकों की भर्ती के लिए रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार भी किए गए हैं. सरपंच के पास अर्द्धन्यायिक शक्तियां हैं और वह सिर्फ छोटेमोटे वित्तीय विवादों का ही निपटान कर सकता है. सरपंच से छोटे पद पंच की भी खास पूछ नहीं है. अत्यधिक सीमित अधिकारों के चलते कई स्थानों पर किसी ने भी पंच का चुनाव लड़ने के बारे में सोचा तक नहीं, जबकि कई स्थानों पर वे निर्विरोध चुन लिए गए हैं.

मुखिया पद की ताकत ने बाहुबलियों को भी आकर्षित किया है तभी कुछ सलाखों के पीछे से चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं. जो दोषी ठहराए जाने के चलते खुद नहीं लड़ सकते उन्होंने पत्नी, रिश्तेदार या छद्म उम्मीदावार उतारे हैं. निहितार्थों के बढ़ने से प्रत्येक चरण के साथ हिंसा का खतरा भी बढ़ेगा. दर्जन भर मुखिया पद के दावेदार और उनके समर्थकों की हत्या हो चुकी है. बिहारशरीफ और राघोपुर में पिछले एक सप्ताह में पांच लोगों का कत्ल हो चुका है.

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