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बंगाल में महापुरुषों का टकराव

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा हिंदी पट्टी पार्टी की छवि से निकलकर अपना बंगाल कनेक्शन दिखा रही है ताकि तृणमूल को घेरा जा सके.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जन्मदिन पर उन्हें स्मरण करते जे.पी. नड्डा और अन्य भाजपा नेता (एएनआइ)
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जन्मदिन पर उन्हें स्मरण करते जे.पी. नड्डा और अन्य भाजपा नेता (एएनआइ)
अपडेटेड 14 जुलाई , 2020

पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच रस्साकशी तेज हो गई है क्योंकि अब राज्य में विधानसभा चुनाव को एक साल से भी कम समय बचा है. तृणमूल सरकार पर कोविड के हालात से निपटने और तूफान अम्फान के पीड़ितों को राहत पहुंचाने में कुप्रबंधन के आरोप लगाने के बाद अब दोनों पार्टियों के बीच बंगाल के महापुरुषों के सम्मान को लेकर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है.

2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 में से 18 सीटें जीतने और 40 फीसद वोट हथियाने के बावजूद भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती हिंदी क्षेत्र की पार्टी की अपनी छवि से बाहर निकलना है क्योंकि टीएमसी अक्सर भाजपा को राज्य की सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा बताती है. इन आरोपों से खतरा महसूस करते हुए भाजपा ने प्रदेश के प्रतीकों के प्रति अपना सम्मान और जुड़ाव दिखाना शुरू किया है. इस क्रम में भाजपा विचारधारा की सीमाएं भी लांघने को तैयार है. लगता है, टीएमसी को भी इससे गुरेज नहीं और वह भगवा प्रतीकों के प्रति सम्मान दिखाने को तैयार है.

1 जुलाई को भाजपा ने प्रख्यात चिकित्सक बिधानचंद्र रॉय को उनकी जयंती और पुण्यतिथि (दोनों एक ही तारीख को होती हैं) पर श्रद्धांजलि दी. रॉय ने 1948 से जीवनपर्यंत यानी 1962 तक बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की सेवा की. भाजपा नेताओं ने रॉय को ‘विकास पुरुष’ और ’अमादेरे लोक’ (हमारे जैसे लोग) करार दिया.

नई दिल्ली में 1 जुलाई को श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन ने फेसबुलक लाइव आयोजित किया जिसमें पश्चिम बंगाल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने रॉय के बारे में अपने विचार प्रकट किए. घोष ने कहा रॉय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मखर्जी का बहुत सम्मान करते थे और रॉय ने मुखर्जी से अप्रैल 1947 में कहा था कि वे कांग्रेस कार्यसमिति को बंगाल को हिंदू बहुल राज्य बनाने के लिए मना लेंगे. घोष ने कहा कि रॉय ने मुखर्जी की 1953 में हिरासत में मौत की जांच भी शुरू कराई थी.

इसके बाद आई मुखर्जी की जयंती 6 जुलाई को, तब टीएमसी ने उन्हें बंगाल के महानतम पुत्रों में शुमार बताकर उनकी तारीफ की तो कांग्रेस और वाम दलों ने उसकी कड़ी निंदा की.

जनसंघ नेता की जयंती मनाना भाजपा में वर्षों परानी परंपरा है. लेकिन इस साल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने मुखर्जी के बांग्ला स्नेह को रेखांकित किया. एक आभासी (वर्चुअल) रैली में नड्डा ने कहा कि मुखर्जी ने अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएशन किया था, लेकिन उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन बंगाली साहित्य में किया. 1937 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहते हुए मुखर्जी ने पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर को दीक्षांत समारोह में बंगाली में संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था.

जहां तक टैगोर की बात है तो उनके जन्मदिवस पर मई 2017 में भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने महान कवि के नॉर्थ कोलकाता के जोरासांको स्थित पैतृक आवास जाकर श्रद्धांजलि दी थी. टैगोर के अलावा बंगाल के एक और साहित्यकार बंकिम चंद्र चटर्जी के प्रति भी भाजपा नेता सम्मान जाहिर करते रहे हैं.

पिछले तीन साल की तरह टीएमसी ने मुखर्जी का जन्मदिवस और पुण्यतिथि इस साल भी मनाई. 3 जून को उनके जन्मदिवस से तीन दिन पहले ममता बनर्जी ने घोषणा की कि उन्हें कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर मुखर्जी के नाम पर रखने की केंद्र सरकार की पहल पर कोई ऐतराज नहीं है. पिछले साल उनकी पार्टी ने मुखर्जी की पुण्यतिथि पर भी एक कार्यक्रम आयोजित किया था.

वामदल और कांग्रेस, जो कि भाजपा और टीएमसी के मुकाबले खुद को धर्मनिरपेक्ष विकल्प के रूप में पेश करते हैं, ने मुखर्जी के प्रति भक्ति दिखाने पर दोनों पार्टियों को आड़े हाथ लिया है. विधानसभा में वाम दलों के नेता सुजन चक्रवर्ती ने 6 जुलाई को कहा कि मुखर्जी बंगाल को हिंदू राज्य बनाना चाहते थे. फॉरवर्ड ब्लॉक नेता नरेन चटर्जी ने दावा किया कि सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा को देश का गद्दार करार दिया था.

हालांकि भाजपा का मुखर्जी पर अपना नजरिया है कि वे किस तरह पश्चिम बंगाल के निर्माण के लिए सक्रिय रहे और वे बंगालियों के सच्चे हितैषी थे. मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के लिए टीएमसी सरकार को घेरते हुए घोष पहले भी कह चुके हैं कि ममता सरकार के राज में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का पश्चिम बंगाल अब पश्चिम बांग्लादेश में तब्दील हो रहा है.

अब ये देखना होगा कि इस तरह महान लोगों का महिमामंडन भाजपा और तृणमूल को कितना चुनावी फायदा पहुंचाता है. कोलकाता प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत राय कहते हैं, “बंगाल के महापुरुषों को याद करना और उनके प्रति सम्मान जताना एक स्वस्थ परंपरा है लेकिन एक ही संदेह होता है कि क्या ये सब सही मंशा से किया गया है. राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए बहुत कुछ करते हैं. भाजपा खुद को बंगाल से जुड़ी पार्टी दिखाना चाहती है जबकि तृणमूल कांग्रेस ये साबित करना चाहती है कि उसका महापुरुषों के प्रति प्रेम दिखावा नहीं है.”

अनुवादः मनीष दीक्षित

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