माटी पंख और आकाश
ज्ञानेश्वर मुळे
राजकमल प्रकाशन, दरियागंज,
नई दिल्ली-2,
कीमतः 350 रु.
ज्ञानेश्वर मुळे महाराष्ट्र के एक पिछड़े इलाके से हैं और सामाजिक तौर पर पिछड़े समाज से आते हैं. आर्थिक तंगी की पृष्ठभूमि के बावजूद मुळे भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी बने. जिस युवक के पास स्कूल में पहनकर जाने के लिए चप्पल-जूते नहीं थे, किताब खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, वह एक दिन दूसरे देशों में भारत का राजदूत बनता है तो जाहिर है, उसकी कहानी में कई रंग शामिल होंगे.
कामकाजी सिलसिले में देश-विदेश में रहते हुए मुळे अपना गांव, मातृभाषा परंपरा और संस्कृति नहीं भूले. उनका अपना संघर्ष भी याद आता रहा. संवेदनशील मन के चलते ही मुळे ने अपनी संघर्ष यात्रा को आत्मकथात्मक पुस्तक माती पंख आणि आकाश के रूप में पेश किया. हिंदी में वही माटी पंख और आकाश नाम से आई है.
आत्मकथा तीन पड़ावों में बंटी है. 'माटी' अपने घर-परिवार और समाज पर आधारित है.
दूसरे अध्याय 'पंख' में शैक्षणिक सफर का ब्यौरा है. और तीसरे अध्याय 'आकाश' में मुळे ने उन दिनों को आधार बनाया है, जब वे पहली पोस्टिंग के तहत जापान में कार्यरत थे. वहां का एक दिलचस्प उदाहरण देते हुए वे बताते हैं कि उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था. इसे हासिल करने के लिए उन्हें 1984 में 80,000 रु. बतौर ट्रेनिंग फीस देनी पड़ी, तीन बार ह्ढैक्टिकल में फेल हुए सो अलग.
खैर, पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत है कि यह आत्मकथा होते हुए भी उपलब्धियों का बखान भर नहीं है. बल्कि
यह भारतीय समाज की असमानता, व्यवस्थागत मुश्किलों और फिर जापानी संस्कृति को समझने का आख्यान बन पड़ा है. हां, अनुवाद और संपादन में कुछ गंभीर खामियां हैं. उम्मीद है दूर कर ली जाएंगी.