किसी मां-बाप से उसके जिगर का टुकड़ा बिछड़ जाए तो उनके दुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. अगर बिछड़ चुके बच्चे को खोजकर उनके मां-बाप से मिला दिया जाए तो उनकी खुशियों का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर अपर पुलिस महानिदेशक, रेलवे ने पिछले वर्ष ऐसे ही गुमशुदा बच्चों को खोजने के लिए एक अभियान चलाने का निर्देश दिया था. इसके बाद झांसी और आगरा डिवीजन में पुलिस अधीक्षक जीआरपी के पद पर तैनात रहे (21 जनवरी से यूपी स्पेशल सिक्युरिटी फोर्स के पहले कमांडेंट के रूप में तैनात) वर्ष 2012 के आइपीएस अफसर आशीष तिवारी ने अपर पुलिस अधीक्षक रेलवे आगरा मो. मुश्ताक के नेतृत्व में जीआरपी अनुभाग आगरा व झांसी के अन्तर्गत वर्ष 2018, 2019, 2020 में गुम हुए बच्चों की बरामदगी हेतु गृह मंत्रालय द्वारा संचालित 'आपरेशन मुस्कान' के तहत दोनों अनुभागों के अन्तर्गत आने वाले गुमशुदा बच्चों की शत्-प्रतिशत बरामदगी करने हेतु एक समर्पित अभियान की रूपरेखा बनाई.
इस अभियान को सफल बनाने के लिए सर्वप्रथम दोनों अनुभागों के अन्तर्गत आने वाले समस्त जनपदों एवं जीआरपी के थानों से गुम हुए बच्चों का डेटा संकलन किया गया. डेटा संलकन के पश्चात गुम हुए बच्चों से संबंधित पूर्ण अद्यतन जानकारी सहित एक एल्बम तैयार की गयी, जिसमें कुल 231 बच्चे गुमशुदा पाये गये. इन सभी बच्चों को बरामद करने के लिए एक समर्पित व स्व-प्रेरित (सेल्फ मोटीवेटेड) टीम व बेहतर रणनीति की आवश्यकता थी. जिसके लिए सबसे पहले एक एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) तैयार की गयी. इसके पश्चात दोनों अनुभागों से समर्पित एवं जो पुलिसकर्मी सामाजिक कार्यों में रुचि रखने एवं सामाजिक कार्यों के लिए प्रोत्साहित रहने वाले पुलिस कर्मियों का साक्षात्कार के माध्यम से चयन किया गया. चयन के पश्चात दोनों अनुभागों में कुल चार टीमें गठित की गयीं. इन सभी टीम सदस्यों को बच्चों से संबंधित कानून जैसे बाल अधिकार संरक्षण कानून 2005, जुबेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून 2000, बाल मजदूरी( निषेध एवं नियमन) कानून 1986, पोक्सो एक्ट 2012 इत्यादि के बारे में जानकारी देते हुए व्यावहारिक रुप से प्रशिक्षित किया गया साथ ही गुमशुदा बच्चों की तलाश हेतु बनाये गये एसओपी का विस्तृत कार्यशाला आयोजित कर जानकारी दी गयी. जिसके तहत आश्रय स्थल, बस स्टेण्ड़, रेलवे स्टेशन, एनजीओ, स्थानीय पुलिस, और सी-प्लान का प्रयोग करके कैसे गुमशुदा बच्चों की पहचान करना तथा उनके घर वालों तक पहुंचाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जानकारी प्रशिक्षण के माध्यम से दी गयी.
प्रशिक्षण के उपरान्त प्रथम चरण में 25 दिसंबर से उत्तर प्रदेश के जनपद आगरा, मथुरा, हाथरस, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, अलीगढ, मैनपुरी, इटावा, फर्रुखाबाद, बांदा, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, कानपुर, झाँसी, महोबा, चित्रकूट को चिन्हित कर टीमों को आवंटित कर उन्हें रवाना किया गया. इसके पश्चात दूसरे चरण में भारत के बड़े शहरों दिल्ली, फरीदाबाद, पलवल, गुडगांव, गाजियाबाद, ग्वालियर, भोपाल, इंदौर एवं मुंबई को चिन्हित किया गया, जो अभी जारी है. 15 जनवरी तक मजह 20 दिनों में टीमों द्वारा तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए 100 से अधिक बच्चों को खोज लिया गया. जिनमें एल्बम के 231 बच्चों मे से अभी तक कुल 81 बच्चों के घर पर संपर्क स्थापित किया गया तो यह सभी गुमशुदा बच्चे अपने घर आ चुके थे. इसके अतिरिक्त टीमों द्वारा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड एवं बालगृहों में कई वर्षों से अंधकार में जीवन जी रहे कुल 22 बच्चे-बच्चियों को टीम की कड़ी मेहनत एवं सर्विलांस व सी-प्लान ऐप (जिसमें उत्तर प्रदेश के प्रत्येक गांव से 10 -10 सम्भ्रान्त व्यक्तियों के फोन नंबर उपलब्ध हैं) की मदद से उनके परिजनों से मिलाया जा चुका है. दूसरे चरण का कार्य अभी जारी है. इसके अतिरिक्त तृतीय चरण हेतु कोलकाता, चैन्नै एवं गुजरात को चिन्हित किया गया है जो बहुत जल्द शुरु होगा.
आशीष के अभियान ने वृंदावन के एक परिवार की खुशियां लौटा दीं. आशीष के निर्देशन में बनी टीम को फिरोजाबाद के बालगृह में रह रहे 14 वर्षीय सचिन उफ रचित के बारे में जानकारी मिली. टीम द्वारा बालगृह फिरोजाबाद जाकर सचिन से पूछताछ की गयी तो उसने अपना पता केवल वृन्दावन बताया और कहा कि उसके मम्मी पापा वृन्दावन मे किराये पर रहते थे, लेकिन अब सचिन को नहीं पता कि वो कहां रहते हैं. टीम सचिन को साथ लेकर वृन्दावन गयी और जगह-जगह कॉलोनी, बस्तियों व नजदीकी गांव में सैकेडों लोगों से की गयी पूछताछ के बाद अन्ततः तीसरे दिन टीम ने सचिन के परिवार को खोज लिया जो प्रेम मंदिर के पास सुनरख वृन्दावन में रहते थे. 2 वर्ष से गुमशुदा बच्चे को उसके परिवार से पुनः मिला दिया. सचिन की मां ने अपने बच्चे के मिलने की आस पूर्णतया खो दी थी लेकिन अचानक अपने बेटे को अपनी आंखो के समाने देख कर उसे यकीन नही हो रहा था कि उसका बच्चा वापस आ गया है. उस मां की आंखों से आसुओं की धारा बह निकली. वह मां बार- बार अपने सामने खड़ं पुलिस का बार- बार उन्हें भगवान कहते हुए उनका शुक्रिया अदा कर रही थी. इसी तरह राजकीय बाल गृह शिशु केंद्र मथुरा में डेढ़ साल से रह रहा साढ़े नौ वर्षीय गणेश, रेलवे स्टेशन मथुरा पर आवारा घूम रहा 13 वर्षीय अजय, चैरिटेबल सोसायटी खेडी कलां, फरीदाबाद हरियाणा में रह रहा 13 वर्षीय विशाल, मानखुर्द चाइल्ड होम, कान्हा बालगृह फिरोजाबाद में रह रहा घर से बिछड़ा हुआ 10 वर्षीय कान्हा, मुम्बई में रह रहे 10 वर्षीय अर्जुन बाथम और नौ वर्षीय राहुल सिंह समेत सौ से ज्यादा बच्चों को उनके परिवार से मिलाया जा चुका है. इस तरह के जीआरपी पुलिस के द्वारा चलाये जा रहे विशेष अभियान के तहत कई साल से अपने परिवारजन से बिछड़े बच्चे-बच्चियों को उनके परिजनों से मिलाने का अभियान जारी है. ऐसे टीम के प्रत्येक सदस्य को प्रशस्ति पत्र, नकद पुरस्कार से 26, जनवरी पर सम्मानित किया जायेगा.
जीआरपी आगरा व झांसी डिवीजन के पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी को उत्तर प्रदेश में नवगठित स्पेशल सिक्युरिटी फोर्स का पहला कमांडेंट बनाया गया है. 2012 बैच के आइपीएस अधिकारी आशीष तिवारी इससे पूर्व वाराणसी, मिर्जापुर, एटा, जौनपुर, अयोध्या में एसपी के पद पर तैनात रह चुके हैं. यह मूल रूप से मध्य प्रदेश के इटारसी के रहने वाले हैं. 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने इटारसी के केंद्रीय विद्यालय में की. इसके बाद कानपुर आइआइटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक व एमटेक की डिग्री हासिल की है. वर्ष 2007 में ही कैंपस सिलेक्शन के दौरान लंदन की एक कंपनी में जॉब मिला, जहां उन्होंने डेढ़ साल काम किया. इसके बाद उन्होंने जापान के एक बैंक में भी डेढ़ साल जॉब की. 2010 में उन्होंने वापस भारत आकर सिविल सर्विसेज की तैयारी की और 2011 में आइआरएस में उनका सेलेक्शन हुआ. इसके बाद 2012 में आशीष भारतीय पुलिस सेवा में चयनित हुए. आशीष को 2018 में दिल्ली में फिक्की द्वारा स्मार्ट पुलिस ऑफिसर्स सम्मान से भी नवाजा जा चुका है. आशीष ने मिर्जापुर के नक्सल प्रभावित इलाके में महिलाओं के हित में कई सराहनीय कार्य किए हैं. गुमशुदा बच्चों को उनके परिवार से मिलाकर पुलिस की छवि सुधार में उल्लेखनीय योगदान देने वाले आशीष अब स्पेशल सिक्युरिटी फोर्स के पहले कमांडेंट के रूप में महत्वपूर्ण योगदान देने को तैयार हैं.
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