हनुमान खरेड़िया ने सन् 1992 में चित्रकला विषय में डिप्लोमा इस चाह से किया था कि सरकारी नौकरी भी करेंगे और कलाकारी का शौक भी पूरा होगा. यह वह जमाना था जब चित्रकला और संगीत की नौकरी में शहनाई बजती थी. लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए मशहूर राजस्थान में कलाकारों पर बेकारी की गाज गिरी. वजहः राज्य सरकार ने 1992 से कला शिक्षकों की भर्ती बंद कर दी. अब हाल यह कि राज्य में चित्रकला की विधिवत शिक्षा हासिल करने वाले 50,000 लोग प्राइवेट नौकरी, मिस्त्रीगीरी, बढ़ईगीरी या पान की दुकान चलाकर जिंदगी गुजार रहे हैं. इनमें से 20,000 लोग तो ओवरएज हो चुके हैं, यानी सरकारी नौकरी के लिए वे अपात्र होंगे.
सरकारों और नेताओं से 20 वर्ष से आस लगाए खरेड़िया भी एक प्राइवेट स्कूल में 5,000 रु. की पगार पर पढ़ा रहे हैं. इस साल जब उनका जन्मदिन आया तो साथ में 'ओवरएज' होने का तोहफा भी लाया. खरेड़िया की तरह टोंक के ही चित्रकार शैलेंद्र भाटी की भी यही कहानी है. निजी स्कूल में पढ़ा रहे भाटी भी इसी वर्ष सरकारी नौकरी के लिए ओवरएज हो गए.
ये लोग तो फिर भी ठीक हैं, इन जैसे बहुत से चित्रकार कला से मुंह मोड़कर अपना रोजगार करके पेट पाल रहे हैं. हजारों ऐसे हैं जो आज भी इस इंतजार में हैं कि सरकार फिर शिक्षकों की भर्ती करेगी. आस की डोर उस सरकारी नियम पर टिकी है जिसके तहत प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर कला शिक्षकों की नियुक्ति अनिवार्य है.
लेकिन सरकार कला विषय को गौण मानते हुए सामान्य अध्यापकों से ही कला की शिक्षा दिलाने की खानापूर्ति करा रही है. इसलिए दो दशक के इंतजार के बाद भी राज्य के युवा कलाकार 'कला' और कलाकारों के भविष्य के लिए संघर्षरत हैं. कोई अदालत के माध्यम से तो कोई आंदोलनों के जरिए.
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अनुसार, कला शिक्षकों की योग्यता स्नातक (चित्रकला या संगीत विषय के साथ) या स्नातक के समकक्ष स्तर का डिप्लोमा है. राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर और शिक्षा निदेशालयों से सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार एक से 10वीं कक्षा तक कला शिक्षा विषय को दूसरे विषयों की तरह अनिवार्य रूप से पढ़ाया जा रहा है लेकिन कला शिक्षा पाठ्यक्रम का शिक्षण वर्तमान में सामान्य अध्यापक द्वारा ही कराया जा रहा है. एनसीईआरटी के कला सौंदर्यबोध शिक्षा विभाग के अनुसार, कला शिक्षक की नियुक्ति विशेषकर कक्षा 6 से 10 तक के लिए अनिवार्य है. केंद्रीय विद्यालयों में तो कला शिक्षक का एक पद स्वीकृत है. फिर प्रदेश के स्कूलों में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं है?
यही फरियाद लेकर इसी 16 मई को टोंक जिले का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली जाकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से भी मिला. टोंक में करीब 3,000 बेरोजगार कला गुरु हैं. राहुल गांधी ने इन युवा चित्रकारों की व्यथा सुनकर कार्रवाई का भरोसा दिलाया. इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल चित्रकार महेश गुर्जर (एम.ए. ड्रॉइंग) ने बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और शिक्षा मंत्री सहित कई नेताओं को ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
इस पर राज्य के शिक्षा मंत्री बृजकिशोर शर्मा ने कहा, ''वाकई तरुणाई और कलाकारों से जुड़ा यह गंभीर मामला है. अभी तो तबादलों में उलझे हुए हैं. तबादलों से निबटते ही इस मसले पर गंभीरता से विचार करेंगे.''
गुर्जर कहते हैं कि जब दूसरे अनिवार्य विषयों में निपुण विशेषज्ञों से अध्ययन कराया जा रहा है तो फिर कला शिक्षा में क्यों नहीं? वे कहते हैं कि सृजनशीलता बालक-बालिकाओं का स्वाभाविक गुण है. वे कई प्रकार की सहज क्रियाओं के जरिए स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं. यह अभिव्यक्ति उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है.
कला शिक्षण का उद्देश्य बौद्धिक, मानसिक, शारीरिक विकास, सृजनात्मकता व मौलिकता की अभिव्यक्ति और संस्कृति, लोक परंपराओं और कलात्मक धरोहरों के प्रति लगाव पैदा करना है. लेकिन सन् 1992 से कला शिक्षा को सामान्य अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जाने से कला शिक्षा के गौण और समाप्त होने का खतरा बढ़ गया है. इस वर्ष से तो कक्षा 6 से 8 तक कला शिक्षा की पाठ्य- पुस्तकें भी बंद कर दी गई हैं.
ज्यादातर विद्यालयों में सामान्य अध्यापक इन किताबों का रट्टा ही लगवाते हैं. चित्रकला को तो चित्र बनाकर ही समझ जा सकता है. संगीत और चित्रकला दोनों ही विषयों के पाठ्यक्रम देखें तो यह कहीं से भी सामान्य विषय के अध्यापकों के बूते के बाहर की चीज लगती है.
विद्यार्थियों को नौसिखुआ अध्यापकों द्वारा कला की शिक्षा देने का अर्थ यही है कि प्रदेश के 15 लाख छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है. वहीं कक्षा 6 से 10 तक कला शिक्षकों की नियुक्ति के अनिवार्य होने पर भी उन्हें नियुक्ति न देने से बेरोजगार कलाकारों की फौज खड़ी हो रही है.
दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, जम्मू- कश्मीर सहित तकरीबन पूरे देश के राजकीय विद्यालयों में कक्षा 6 से 10 तक अनिवार्य विषय कला शिक्षा पाठ्यक्रम का शिक्षण और मूल्यांकन निर्धारित योग्यता प्राप्त कला शिक्षकों द्वारा किया जा रहा है. तो फिर राजस्थान में कलाकारों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? जबकि प्रतिवर्ष 5,000 कलाकार संगीत व चित्रकला में स्नातक-स्नातकोत्तर शिक्षा की पढ़ाई कर बेरोजगार कलाकारों की भीड़ में शामिल हो रहे हैं, लेकिन कब तक. यदि इस दौरान किसी ने गंभीरता से इस पर विचार किया होता तो इन कलाकारों को दो दशकों से काली रातें न काटनी पड़तीं.