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अन्‍ना ने बदलाव की शुरुआत घर से ही की

हजारे का संघर्ष अंतिम दौर में प्रवेश कर रहा है, और उनका गांव इस जंग में उनका हौसला बढ़ा रहा है. हजारे अपने छोटे भाई मारुति के घर के सामने से लगभग रोजाना निकलते हैं, लेकिन वे 1975 से उनके घर नहीं गए हैं, क्योंकि वे पारिवारिक मामलों में फंसना नहीं चाहते.

अण्‍णा हजारे
अण्‍णा हजारे
अपडेटेड 30 दिसंबर , 2011

रालेगण सिद्धि के एकमात्र चौराहे पर उत्तेजित ग्रामीणों की भीड़ है. वे यहां रोजाना सुबह अखबार पढ़ने और सुर्खियों पर बातचीत करने के लिए एकजुट होते हैं. 15 दिसंबर को जब यह संवाददाता अण्णा हजारे के इस आदर्श गांव में पहुंची, तब मुख्य मुद्दे थे लोकपाल विधेयक पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री की बुलाई गई सर्वदलीय बैठक, और दूसरा महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में, जिसमें रालेगण सिद्धि भी पड़ता है, नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस की जीत.

28 दिसम्‍बर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

ग्रामीणों को उम्मीद है कि संसद एक 'स्वीकार्य' विधेयक पारित कर देगी और आगे और आंदोलन करने की जरूरत नहीं रहेगी. लेकिन वे लोग कोई भी चीज भाग्य भरोसे नहीं छोड़ रहे. वे सभी रोज सुबह यादवबाबा मंदिर में अण्णा की सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं. यही मंदिर 1975 से अण्णा का निवास भी है. गांव के सरपंच जयसिंह मापारी कहते हैं, ''सरकार लोकपाल विधेयक पर अण्णा के साथ तीन बार धोखाधड़ी कर चुकी है. इस बार उन्हें थोड़ी जिम्मेदारी दिखानी चाहिए.'' वे यह भी कहते हैं, ''अगर अण्णा एक और आंदोलन की घोषणा करते हैं, तो हम लोग सुबह प्रभात फेरियां निकालेंगे और शाम को मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन करेंगे.''

21 दिसम्‍बर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

11 दिसंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर अण्णा के विरोध प्रदर्शन को मिले सकारात्मक समर्थन से ग्रामीणों की यह चिंता दूर हो गई है कि आंदोलन को वैसा ही समर्थन मिलेगा या नहीं, जैसा अगस्त में मिला था, विशेषकर इसलिए कि टीम अण्णा के सदस्यों के बारे में काफी नकारात्मक प्रचार हुआ था. संत नीलोबाड़ी विद्यालय के पिं्रसिपल अण्णासाहेब काले कहते हैं, ''नकारात्मक प्रचार का हमारे मनोबल पर असर नहीं पड़ेगा. हम जानते हैं कि अण्णा के इरादे साफ हैं.'' जिले में नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत को लेकर काले थोड़े परेशान हैं. वे कहते हैं, ''मुझे कभी-कभी महसूस होता है कि अण्णा अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं. चुनाव परिणाम दिखाते हैं कि धनबल और बाहुबल के बिना कोई  चुनाव नहीं जीत सकता.''

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अण्णा के साथियों-अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी-पर जिन वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं, उन पर अधिकांश ग्रामीण विश्वास नहीं करते. वे मानते हैं कि हजारे ने सोच-समझकर अपने साथियों का चुनाव किया है. चाय-पकौड़े की दुकान चलाने वाली संगीता उगाले कहती हैं, ''केजरीवाल और बेदी को अपनी टीम में शामिल करने से पहले अण्णा ने उनको परखा जरूर होगा. अगर वे पाएंगे कि वे लोग गलत काम करते हैं, तो वे उन्हें तुरंत निकाल देंगे.''

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गजब तो यह कि बार-बार होते आंदोलन से ग्रामीण थके नहीं हैं. एक सफाईकर्मी विमला रोकडे कहती हैं कि वे हजारे के नेतृत्व में होने वाले हरेक आंदोलन में हिस्सा लेंगी. वे कहती हैं, ''मैं आंदोलन से थकी नहीं हूं. अण्णा की बात मेरे लिए अंतिम है. वे जब भी आंदोलन का आह्वान करेंगे, मैं उसमें शामिल होऊंगी.'' एक स्कूली शिक्षक, बालासाहेब वाघ खुफिया ब्यूरो की इस रिपोर्ट से चिंतित हो गए हैं कि हजारे की जान लेने की कोशिश चार बार हो चुकी है. वाघ कहते हैं, ''देश भर से हजारों लोग उनका काम देखने के लिए रालेगण सिद्धि आते हैं. वे अपेक्षा करते हैं कि वे उनसे खुद बात करें. थोड़ी पाबंदी बरतने की जरूरत है.''

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हजारे अपने छोटे भाई मारुति के घर के सामने से लगभग रोजाना निकलते हैं, लेकिन 1975 से वे उनके घर नहीं गए हैं, क्योंकि वे पारिवारिक मामलों में फंसना नहीं चाहते. इससे उनके प्रति मारुति का प्रेम कम नहीं हुआ है. मारुति कहते हैं,  ''अगर अण्णा मुंबई से आंदोलन फिर शुरू करने का निर्णय करते हैं, तो न केवल मैं, बल्कि पूरा गांव वहां जाकर अपनी एकजुटता दिखाएगा.'' 20 साल पहले रालेगण सिद्धि लौटने के पहले मारुति मुंबई के पूर्वी उपनगर मुलुंड में फूल बेचा करते थे.

अण्णा के एनजीओ-भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में अण्णा के सहयोगी अनिल शर्मा को विश्वास है कि खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट एक हथकंडा है. वे कहते हैं, ''अण्णा के पिछले आंदोलन के बाद से सरकार अभी तक सदमे में है. वह उन्हें दिल्ली से परे रखना चाहती है.'' लेकिन वे सभी मानते हैं कि हजारे को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है.

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