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सत्‍य साईं के जाने के बाद

कर्नाटक में चन्नपटना जिले (पहले मांड्‌या नाम से मशहूर) के डोड्डामल्लूर गांव में लगता है, समय जैसे ठहर गया है. उस पर महानता जबरन थोपी जा रही है. सत्य साईं बाबा ने भविष्यवाणी की थी कि वे इसी गांव में प्रेम साईं के रूप में अवतार लेंगे.

अपडेटेड 5 मई , 2011

कर्नाटक में चन्नपटना जिले (पहले मांड्‌या नाम से मशहूर) के डोड्डामल्लूर गांव में लगता है, समय जैसे ठहर गया है. उस पर महानता जबरन थोपी जा रही है. सत्य साईं बाबा ने भविष्यवाणी की थी कि वे इसी गांव में प्रेम साईं के रूप में अवतार लेंगे.

24 अप्रैल को जब साईं बाबा के निधन की खबर फैली तब उनके शोकसंतप्त श्रद्धालुओं ने नवजात बच्चों का पता लगाने के लिए मांड्‌या जिले के अस्पतालों को खंगालना शुरू कर दिया. बाबा के निधन से दो घंटे पहले जन्मे एक दंपती-जयलक्ष्मी और कुमार-की संतान को उनका अगला अवतार घोषित कर दिया गया और लोग उसका दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े. लेकिन साईं बाबा के साम्राज्‍य पुट्टपर्थी के अधिकारियों ने फौरन इस खबर को खारिज कर दिया. इससे पहले कि 'अवतार' और उसके परिवार को प्रसिद्धि मिलती और वे उसका लाभ उठा पाते, उसे खारिज कर दिया गया.

मांड्‌या में बाबा के सम्मान में 2003 में स्थापित किए गए सत्य साईं मंदिर के प्रमुख माधेगौडा का कहना है, ''1963 में ही हमें बता दिया गया था कि बाबा का अगला अवतार मांड्‌या में होगा. अब हम इंतजार नहीं कर सकते, मांड्‌या को वरदान मिला है.'' माधेगौडा ने सत्य साईं स्पीक्स, खंड3 में दर्ज ब्यौरे को उद्‌धृत किया है. इस ग्रंथ में साफ कहा गया है कि 16 जुलाई, 1963 को गुरुपूर्णिमा के दिन बाबा ने अपने भक्तों के बीच घोषणा की थी कि वे बंगलुरू और मैसूर (1972 में मैसूर को कर्नाटक नाम दे दिया गया) के बीच स्थित मैसूर राज्‍य में प्रेम साईं के रूप में पुनर्जन्म लेंगे.

अनुमान लगाया गया था कि अगले साईं बाबा को जन्म देने वाली महिला उस इलाके में 15 साल पहले ही जन्म ले चुकी थी. बाबा के एक भक्त राम पद का कहना है, ''बाबा ने बताया है कि प्रोफेसर एन. कस्तूरी का पुनर्जन्म उस लड़की के रूप में हो चुका है और वह बाबा के अगले अवतार को जन्म देगी.'' राम पद का दावा है कि वे पुट्टपर्थी में सत्य साईं बाबा की जीवनी लेखक कस्तूरी से मिल चुके हैं.

लेकिन इन सबमें कई तरह की असंगतियां भी हैं. बाबा के जिन प्रवचनों का दस्तावेजीकरण हो चुका है उनमें से कुछ में इस बात का जिक्र है कि 96 साल की उम्र में जब वे इहलोक छोड़ेंगे उसके आठ साल बाद उनका अगला अवतार जन्म लेगा. कुछ दूसरे रिकॉर्ड में जिक्र है कि बाबा के निधन के एक साल के भीतर अगला अवतार जन्म लेगा.

बाबा ने घोषणा की थी कि उनकी मृत्यु 96 साल की उम्र में होगी लेकिन वे 85 साल की उम्र में ही इहलोक छोड़ गए. ऐसे में उनके श्रद्धालु उनके पुनर्जन्म को लेकर उलझ्न की स्थिति में पड़ गए हैं. अब यह संभावना बताई जा रही है कि उनका पुनर्जन्म 2012, 2019 और 2030 में हो सकता है.

हालांकि इस सूची में वर्ष 2011 शामिल नहीं है, लेकिन बाबा इस साल जब अस्पताल में भर्ती हुए थे तभी से उनके श्रद्धालुओं ने उनके अगले अवतार की खोज शुरू कर दी थी.

मांड्‌या में साईं आश्रम के श्रद्धालु साईं प्रसाद का कहना है, ''जब सत्य साईं बाबा ने 1926 में पुट्टपर्थी में जन्म लिया था तब किसी को नहीं मालूम था कि वे शिरडी के साईं बाबा के अवतार हैं. उन्होंने 14 साल की उम्र में स्वयं इसकी घोषणा की थी. लिहाजा, अब बाबा की तलाश करने का कोई मतलब नहीं है. जब वक्त आएगा, बाबा खुद घोषणा कर देंगे.'' किंवदंती है कि सत्य साईं बाबा ने घोषणा की थी कि वे शिरडी के साईं बाबा के अवतार हैं.

लेकिन शिरडी के साईं बाबा के भक्तों ने सत्य साईं बाबा को कभी उनका अवतार नहीं माना. और तो और, 2006 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में राहटा में उनके श्रद्धालुओं ने एक मामला दायर करके मांग की थी कि सत्य साईं बाबा के श्रद्धालु उन्हें शिरडीके साईं बाबा का अवतार बताना बंद करें. लेकिन यह मामला कभी अदालत तक नहीं पहुंच सका. एक श्रद्धालु और पुट्टपर्थी में दिवंगत बाबा के निवास स्थल प्रशांति निलयम के साधक साईं राजेश राम का कहना है, ''बाबा ने हमेशा कहा कि वे तीन अवतारों में से दूसरे हैं. पहले शिरडी के बाबा थे, और तीसरे प्रेम साईं बाबा होंगे.''

बताया जाता है कि सत्य साईं बाबा ने 1970 में अपने श्रद्धालु जॉन हिस्लॉप को एक अंगूठी दी थी, जिसमें उनके अगले अवतार की अस्पष्ट छवि थी. वह छवि वक्त के साथ बदलती रही और फिर एक दाढ़ी वाले युवक के रूप में दिखने लगी. हिस्लॉप ने अपनी पुस्तक माई बाबा ऐंड आइ में लिखा है, ''उस छवि में सौम्य चेहरे, कंधे तक बाल, मूंछ दाढ़ी वाला व्यक्ति है और उसका आसन कमल है या वह उससे उभर रहा है.''

हिस्लॉप के अनुसार, बाबा ने उन्हें बताया था, ''अब वह जन्म लेने की प्रक्रिया में है, लिहाजा मैं अभी उसे ज्‍यादा नहीं दिखा सकता. उसे पहली बार दुनिया को दिखाया गया है.'' 1980 तक हिस्लॉप को विश्वास हो चला था कि चेहरा पूरी तरह आकार ले चुका है. 1995 मेंहिस्लॉप की मौत कैंसर से हो गई और उस अंगूठी का अभी तक कोई पता ठिकाना नहीं है, हालांकि पुट्टपर्थी आश्रम के लोग कई रेखाचित्र पेश कर चुके हैं.

बंगलुरू स्थित साईं मंदिर के प्रमुख साईं लोकेश मूर्ति का कहना है, ''1940 में पुट्टपर्थी ऐसा गांव था जहां न बिजली थी, न पानी. कोई अखबार नहीं था और टेलीविजन तो था ही नहीं. फिर भी बाबा को अपने देवत्व के बारे में लोगों को समझने में कोई समस्या नहीं हुई. आज, प्रेम साईं पहले से ही विकिपीडिया में जगह पा चुके हैं. मुझे पक्का यकीन है कि शीघ्र ही एक फेसबुक पेज भी बन जाएगा. और तिथि या साल के बारे में कोई भ्रम नहीं है.

देवतागण अपनी तरह से गणना करते हैं, जो जरूरी नहीं है कि हमारी गणना से मेल खाए.'' 64 वर्षीय मूर्ति ने इस साल के आखिर तक कावेरी के पास श्रीरंगपट्टन में डेरा डालने और वहीं अवतार का इंतजार करने का फैसला किया है. दूसरे लाखों लोगों की तरह इसमें कोई भी शामिल हो सकता है.

एक ओर जहां सत्य साईं बाबा के अवतार को लेकर बहस जारी है, वहीं पुट्टपर्थी में सत्ता कासंघर्ष छिड़ा हुआ है. उनके साम्राज्‍य के भविष्य और उसके प्रबंधन को लेकर संदेह उभर रहे हैं. बाबा ने शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के जो कार्यक्रम चलाए उनमें उनके परिवार ने न्यूनतम भूमिका निभाई. अब वह विभिन्न संस्थानों के नेटवर्क पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है.

इसमें सबसे आगे उनके भतीजे आर.जे. रत्नाकर हैं, जो प्रभावशाली श्री सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट (एसएसएससीटी) के सदस्य और अनंतपुर जिले में कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं. उन्हें पिछले साल ही ट्रस्ट में शामिल किया गया जबकि उनके पिता और साईं बाबा के भाई जानकीराम की मृत्यु पांच साल पहले हो गई थी. जानकीराम बाबा के परिवार के इकलौते ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें उनके साम्राज्‍य की गतिविधियों में शामिल करने की इजाजत दी गई थी.

परिवार की एक और सदस्य प्रमुख भूमिका निभाना चाहती हैं और वे हैं चेतना राजू. साईं बाबा की बड़ी बहन पर्वतम्मा की पोती चेतना राजू साईं बाबा की मां ईश्वरम्मा के नाम से एक महिला कल्याण ट्रस्ट चलाती हैं. उनके अलावा साईं बाबा की एक दशक तक देखभाल करने वाले निजी सेवक सत्यजीत हैं,जो हाल के वर्षों में उनके सबसे करीबी रहे हैं. सत्यजीत पांच साल की उम्र में पुट्टपर्थी आए थे और उन्होंने श्री सत्य साईं इंस्टीट्‌यूट ऑफ हायर लर्निंग से एमबीए किया. उन्होंने सत्य साईं के संस्थानों की सेवा करने का फैसला किया और फिर खुद सत्य साईं की सेवा में लग गए.

चेतना और सत्यजीत की तभी चल सकती है जब उन्हें सबसे प्रभावशाली एसएसएससीटी का सदस्य बना दिया जाए. फिलहाल, इस ट्रस्ट में रत्नाकर के अलावा चार अन्य सदस्य हैं- देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती, चार्टर्ड एकाउंटेंट इंदुलाल शाह, पूर्व सतर्कता आयुक्त एस.वी. गिरि और उद्योगपति वी. श्रीनिवासन. इससे कुछ कम प्रभावशाली लेकिन इसके बावजूद महत्वपूर्ण मैनेजमेंट काउंसिल ऑफ ट्रस्ट (एमसीटी) है, जिसमें बंगलुरू स्थित वकील एस.एस. नागानंद, केनरा बैंक के पूर्व अध्यक्ष जे.वी. शेट्टी, इंडियन ओवरसीज बैंक के पूर्व अध्यक्ष टी.के.के. भागवत और एसएसएससीटी के सचिव एवं पूर्व नौकरशाह के. चक्रवर्ती हैं.

रत्नाकर, सत्यजीत और चेतना दस्तक दे रहे हैं लेकिन ट्रस्टी फिलहाल उन्हें नियंत्रण सौंपने में आनाकानी करते नजर आरहे हैं. साईं बाबा के निधन के बाद 26 अप्रैल को आयोजित पहली बैठक में ट्रस्टियों ने ऐलान किया कि ''भगवान श्री सत्य साईं बाबा के निजी मार्गदर्शन के अभाव में भविष्य का काम निस्संदेह बहुत बड़ा और पेचीदा है.''

ट्रस्टियों ने अंतिम संस्कार से 24 घंटे पहले तैयार मसौदे से भावी आशंकाओं को दूर कर दिया. उन्होंने कहा कि वे बाबा के मार्गदर्शन और प्रेरणा से एकजुट होकर पूरी विनम्रता से काम करेंगे ''ताकि जिस ट्रस्ट की उन्होंने स्थापना की थी वह दुष्कर और असंभव लगने वाले कार्यों को हकीकत में तब्दील करता रहे.''

उन्होंने ऐलान किया कि वे निरंतरता के साथसाथ परिवर्तन के लिए कोशिश कर रहे हैं. संक्रमण काल के बारे में श्रद्धा के साथ कहा गयाः ''हमारे सर्वाधिक श्रद्धेय संस्थापक ट्रस्टी भगवान अपना पार्थिव शरीर छोड़ शुद्ध सार्वभौमिक चेतना की अपनी प्राकृतिक स्थिति में लौट गए हैं. ऐसे में हम ट्रस्टी और काउंसिल ऑफ मैनेजमेंट के सदस्य के रूप में अपना पहला और सबसे जरूरी काम यह समझ्ते हैं कि अपने श्रद्धेय भगवान बाबा के प्रति श्रद्धांजलि दर्ज करें.

इसके अलावा, उनके प्रति गहरा आभार व्यक्त करें कि उन्होंने हमें मानवता की सेवा करने के अपने महान मिशन में भूमिका, चाहे वह जितनी छोटी हो, निभाने का अवसर दिया.''

एक ओर जहां एसएसएससीटी ने साईं बाबा की भौतिक अनुपस्थिति में सारी गतिविधियों को चलाने के लिए व्यवस्था तैयार कर ली है, वहीं रत्नाकर, सत्यजीत और चेतना अपने प्रभाव ह्नेत्र बनाने और ट्रस्टियों को पीढ़ीगत बदलाव करने के लिए राजी करने की कोशिश करेंगे. रत्नाकर ने ट्रस्टी और कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में शुरुआत कर दी है, जबकि दूसरे लोगों को सत्य साईं बाबा के श्रद्धालुओं का समर्थन हासिल है.

रत्नाकर की परिपक्वता या उसकी कमी से तय होगा कि पुराने अनुभवी लोग उनका मार्गदर्शन करते रहेंगे या नहीं. वे सत्यजीत या चेतना को गंभीर खतरा नहीं मानते, लेकिन उन्हें आशंका है कि प्रभावशाली के. चक्रवर्ती उन दोनों का समर्थन कर सकते हैं.

श्रद्धालुओं और साईं बाबा के कट्टर अनुयायियों का अनुशासन रत्नाकर और उन लोगों के लिए बाधक होगा, जो निजी दबदबा बनाने की फिराक में पहले से बताए रास्ते से हटनेकी कोशिश करेंगे. लेकिन यह लंबे समय तक नहीं रह सकता. अगर साईं की संस्थाओं में कुप्रबंधन के आरोप उभरने लगे और प्रबंधन के प्रमुख लोगों ने अलगअलग सुर अलापना शुरू किया तो साईं के साम्राज्‍य में समस्याओं का तूफान उठ खड़ा होगा.

सत्य साईं बाबा की विरासत का प्रबंधन करने वाले लोगों के लिए फौरी चुनौती यह व्यवस्था करने की है कि एसएसएससीटी, दूसरे ट्रस्ट और विभिन्न संस्थाएं पारदर्शिता के साथ काम करें. अनुमान के मुताबिक, करीब 40,000 करोड़ रु. का साम्राज्‍य है और एसएसएससीटी हर साल फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन ऐक्ट के तहत केवल विदेशी चंदे का हिसाब दे रहा है.

2003-04 में 95 करोड़ रु. का विदेशी चंदा मिला था. बाद के वर्षों में एसएसएससीटी को कम पैसा मिला. 2008-09 में कुल 56.94 करोड़ रु. मिले. गौरतलब है कि एसएसएससीटी ने 1980 में आंध्र प्रदेश सरकार से आग्रह किया था कि उसे प्रदेश के हिंदू धार्मिक एवं खैराती धर्मादा विभाग में नियमित रूप से रिपोर्ट दर्ज कराने से मुक्ति दे दी जाए. एम. चन्ना रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आग्रह स्वीकार कर लिया था.

एक ओर जहां सत्य साईं बाबा के साम्राज्‍य पर कब्जा जमाने की होड़ बढ़ रही है, वहीं इस आशंका के कारण लगता है कि स्थिति हाथ से नहीं निकलेगी कि आंध्र प्रदेश सरकार हिंदू धार्मिक एवं खैराती धर्मादा कानून, 1959 का हवाला देकर साईं साम्राज्‍य को अपने कब्जे में ले सकती है. यह सत्य साईं बाबा की विरासत को अंतिम रूप से नकारना होगा, जिन्होंने अपने जीवनकाल में राज्‍य के भीतर राज्‍य बना लिया था.

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