हममें से ज्यादातर लोगों की अब दो जिंदगियां हैं- पहली जिंदगी हम असल दुनिया में जीते हैं, जबकि दूसरी जिंदगी आभासी या वर्चुअल होती है. मौत होने पर शरीर का अस्तित्व खत्म हो जाता है, लेकिन वर्चुअल लाइफ की मौजूदगी लंबे समय तक बनी रहती है.
किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसके ऑनलाइन कंटेंट इंटरनेट ऑनलाइन एकाउंट्स का और उसके ऑनलाइन ट्रांजेक्शंस का क्या होता है. उन सारी फाइलों का या डिजिटल सामग्री का क्या होता है जिसे लोग जाने अनजाने में दुनियाभर में फैले इंटरनेट के ढेरों सर्वरों पर जमा करते रहते हैं.
ज्यादातर बड़ी कंपनियों की प्राइवेसी पॉलिसियां होती हैं जिनमें यह स्पष्ट किया गया होता है कि कब और कैसे उसे किसी कानूनी उत्तराधिकारी को सौंपा जाएगा. ज्यादातर डिजिटल सामग्री पर कंपनी का ही अधिकार हो जाता है. कंपनियों की तर्ज पर ही बड़ी संख्या में लोग अब अपनी ''डिजिटल वसीयत'' तैयार कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के वकील, सायबरलॉ एशिया के प्रेसिडेंट और कई लोगों की डिजिटल वसीयत तैयार करने में सहयोग देने वाले पवन दुग्गल बताते हैं, ''आम तौर पर जिन लोगों की डिजिटल एसेट्स हैं या जिनके पास गोपनीय डिजिटल इन्फॉर्मेशन है और जो लोग इन्हें सुरक्षित रखना चाहते हैं या अपने जीवनकाल के बाद किसी के नाम करना चाहते हैं तो ऐसे लोग अपनी डिजिटल वसीयत तैयार करते हैं.''
लेकिन जागरूकता की कमी और पर्याप्त कानूनों के अभाव में डिजिटल वसीयत करवाने वालों की संख्या अभी कम ही है. दुग्गल कहते हैं, ''लोगों के डिजिटल उत्तराधिकार को लेकर भारत में अलग से कोई कानून नहीं है. आइटी एक्ट, 2000 है, जो सभी प्रकार की डिजिटल इन्फॉर्मेशन, डेटा और एसेट्स पर लागू होता है. लेकिन वसीयतनामे जैसे दस्तावेज इसके दायरे से बाहर हैं. वसीयत संबंधी कानून भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत आते हैं. हमें डिजिटल उत्तराधिकार से संबंधित विशेष कानूनों की जरूरत है ताकि लोग अपनी विरासत को अपनी अगली पीढ़ी के नाम कर सकें.''
ऑनलाइन बैंकिंग दूसरा अहम क्षेत्र है जिसके डेटा को लोग अपने पीछे छोड़ जाते हैं. जिन बैंकों से हमने बात की उनके पास इस सवाल का कोई विशेष जवाब नहीं था कि खाताधारक की मौत के बाद उसके ऑनलाइन खाते का क्या होता है? इस मामले में इनकम टैक्स विभाग बेहतर है जिसने स्पष्ट रूप से यह निर्देश दिए हैं कि जिस व्यक्ति के टैक्स का निर्धारण होना है, उसकी मौत हो जाती है तो कानूनी वारिस को रिटर्न फाइल करनी होगी.
ब्लॉग, तस्वीरें, क्रिएटिव कंटेंट
ब्लॉग्स या फेसबुक पर पोस्ट की जाने वाली तस्वीरों जैसे ऑनलाइन कंटेंट को हम खुद इंटरनेट पर अलग-अलग जगह जमा करते रहते हैं उसका क्या होता है? बौद्धिक संपदा संबंधी मामलों की फर्म के. ऐंड एस. पार्टनर्स की भागीदार लता आर. नायर का कहना है, ''जैसा कि किसी साहित्यिक सामग्री के मामले में होता है, लेखक की मौत के एक साल के बाद उनकी रचनाओं से संबंधित आर्थिक अधिकार 60 साल के लिए कानूनी वारिस को सौंप दिए जाते हैं.'' सभी प्रकार की ऑनलाइन रचनात्मक सामग्री, साहित्यिक सामग्री, तस्वीरों आदि के सारे अधिकार बौद्धिक संपदा मान कर कानूनी वारिस को सौंप दिए जाते हैं.
फेसबुक
यूजर की मौत होने पर उसके दोस्तों और रिश्तेदारों को फेसबुक एकाउंट यादगार बनाने या मेमोरियलाइज करने की अनुमति मिलती है. इसके जरिए एकाउंट की प्राइवेसी की भी रक्षा की जाती है. एकाउंट को मेमोरियलाइज करने के बाद इसकी प्राइवेसी बनाए रखने के लिए केवल कन्फर्म्ड फ्रेंड्स ही प्रोफाइल (टाइमलाइन) को देख सकते हैं. दोस्त और रिश्तेदार मृत व्यक्ति की याद में अपने मैसेज पोस्ट कर सकते हैं.
गूगल
गूगल का कहना है कि असाधारण केस में ही मृत व्यक्ति के जीमेल एकाउंट को किसी अधिकृत प्रतिनिधि को एक्सेस करने की अनुमति दी जाएगी. गूगल सपोर्ट के मुताबिक पूरी समीक्षा के बाद ही ऐसा संभव हो सकेगा और ईमेल कंटेट हासिल करना एक लंबी प्रक्रिया है. ऐसी ही शर्तें गूगल सर्विसेज पर भी लागू होती हैं.