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दमोह जिले में हादसे को छिपाने की कवायद

दमोह की सीमेंट फैक्टरी में हुए भयानक हादसे के बाद 40 मजदूर लापता. प्रबंधन इसे मामूली दुर्घटना सिद्घ करने में लगा.

एमपी हादसा
एमपी हादसा
अपडेटेड 4 दिसंबर , 2011

दमोह जिले के नरसिंहगढ़ गांव में बनी सीमेंट फैक्टरी का एक बड़ा हादसा छिपा ही रहता, अगर मानवाधिकार आयोग इसके बारे में संज्ञान नहीं लेता. इस हादसे में 40 मजदूर लापता हुए और दुर्घटना के बाद निर्माण स्थल से 300 से ज्यादा मजदूरों को भगा दिया गया.

मात्र कुछ घायलों का इलाज कराने के बाद प्रशासन के साथ फैक्टरी प्रबंधन इसे महज हादसा बताकर पूरी तरह दबाने में लगा हुआ है.

नरसिंहगढ़ गांव में मायसेम सीमेंट का प्लांट है. यह प्लांट डायमंड सीमेंट से खरीदा गया है और इसे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी हाइडेलबर्ग ने लिया है. नरसिंहगढ़ प्लांट की उत्पादन क्षमता 4,000 टन प्रतिदिन की है और अब इसे बढ़ाकर 9,000 टन करने के लिए प्लांट का विस्तार किया जा रहा है.

निर्माण का यह काम एलऐंडटी व आइओकी कंपनियां मिलकर कर रही हैं. इसी विस्तार स्थल पर 23 नवंबर को रोजमर्रा की तरह काम चल रहा था. शाम करीब साढ़े पांच बजे निर्माण स्थल पर एक 450 टन वजन की क्रेन से प्री हीटर टावर की एक भीमकाय डक्ट को उठाया जा रहा था. यह डक्ट जमीन से करीब चालीस मीटर ऊपर थी.

उस दौरान निर्माण स्थल पर करीब दो सौ मजदूर काम कर रहे थे. अचानक यह डक्ट ऊपर से नीचे गिरी और पास में खड़ी दूसरी 250 टन की क्रेन से टकराई और वहां काम कर रहे 40 से ज्यादा मजदूरों के ऊपर गिर पड़ी.

इस दुर्घटना में दोनों क्रेनें तो टूटी हीं, साथ ही विशाल डक्ट भी टूट गई, जो सीधे मजदूरों के ऊपर गिरी. मौके पर धूल का विशाल गुबार उठा और चीख-पुकार मच गई. हादसा होते ही प्रबंधन तुरंत इसे दबाने में लग गया. सबसे पहले बिजली सप्लाई बंद कर दी गई.

इस बीच खबर कस्बे में भी लग चुकी थी और कई लोग प्लांट के पास पहुंच गए, लेकिन किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया गया.दमोह के कलेक्टर शिवानंद दुबे और एसपी डी.के. आर्य पहुंचे तो उन्हें भी बाहर खड़े रहना पड़ा. बाद में वे अंदर गए. प्रबंधन केवल कुछ लोगों के घायल होने की बात कहता रहा.

घटना के समय प्लांट के सीनियर मैनेजर एस.के. गुप्ता ने यही कहा कि वहां चंद मजदूर ही थे क्योंकि शिफ्ट खत्म होने के कारण ज्यादातर लोग चले गए थे. इसमें से भी सात मजदूरों को चोट आई है. प्लांट के इंजार्ज एस.के. पांडेय कहते हैं कि हादसे में किसी भी श्रमिक की मौत नहीं हुई है.

दुर्घटना के बाद मौके से किसी का शव नहीं मिला है. घायलों का इलाज हो रहा है. यह एक हादसा है, जो क्रेन की तकनीकी खराबी के कारण हुआ है. यहां काम करने वाले मजदूर, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के अलावा केरल से आए थे.

दुर्घटना के बाद श्रमिकों के घरों में ताले लटके हैं क्योंकि कंपनी ने सभी मजदूरों को नरसिंहगढ़ से भगा दिया है. यही वजह है कि लापता मजदूरों के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है. मप्र पुलिस की फॉरेंसिक टीम ने दुर्घटना स्थल से खून के नमूने लिए हैं.

फैक्टरी प्रबंधन ने दुर्घटना को छिपाने के लिए उन स्थानों पर तुरंत रंग-रोगन करवा दिया, जहां पर खून के धब्बे थे. डक्ट के टूटे हिस्से, जिसमें खून लगा हुआ था, वहां पर ताजा रंग देखा जा सकता है.

अगर बात मानवाधिकार आयोग तक नहीं पहुंचती तो यह मामला दब जाता. आयोग ने फौरन 40 मजदूरों के लापता होने की खबर का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को छह हफ्ते में रिपोर्ट देने के लिए कहा है.

इस आदेश के बाद ही कलेक्टर दुबे ने फिलहाल हादसे की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश जारी कर दिए हैं. जांच दमोह के एसडीएम मनोज ठाकुर करेंगे. पुलिस ने भी तुरंत आपराधिक मामला दर्ज किया, लेकिन पूरा ठीकरा क्रेन ऑपरेटर सुरेश के ऊपर फोड़ने की योजना है. पुलिस ने क्रेन ऑपरेटर सुरेश, आइओकी कंपनीतथा ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

इसके बावजूद अभी तक कुछ सवालों के जबाव नहीं मिले हैं. जैसे दुर्घटना के बाद प्लांट में बिजली गायब करके अंधेरा क्यों किया गया? फैक्टरी प्रबंधन ने तर्क दिया है कि क्रेन टूटने से बिजली सप्लाई बाधित हो गई थी लेकिन बिजली दो घंटे गायब रही.

जब किसी की मौत नहीं हुई थी तो कलेक्टर और एसपी को तुरंत अंदर जाने क्यों नहीं दिया गया? यही नहीं, गांव से श्रमिकों को भगा दिया गया, जिससे वे किसी को जानकारी न दे पाएं. यही वजह है कि 40 लापता मजदूरों की जानकारी नहीं मिल पा रही. यहां तक कि मजदूरों की उपस्थिति दर्शाने वाला रजिस्टर भी नहीं मिल रहा.

सबसे बड़ी बात यह कि डक्ट के टूटे हिस्से पर जहां खून लगा हुआ था, तुरंत रंग-रोगन क्यों कर दिया गया? इससे यही लग रहा है कि दुर्घटना को एक हादसा बताकर सचाई को छिपाया जा रहा है.

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