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साठ के हीरो सोलह की हीरोइन

फिल्मी कॅरिअर का एक दशक और जिंदगी के तीन दशक पूरे होते-होते हीरोइनें हाशिए पर चली गई हैं और हीरो 50 की उम्र में भी 20 साल की हीरोइनों के साथ ठुमके लगा रहे हैं.

अपडेटेड 10 मार्च , 2012

बाईस की उमर में सोनाक्षी सिन्हा ने जब फिल्मी दुनिया में कदम रखा तो उनके हीरो बने 44 साल के सलमान खान. दो साल बाद सोनाक्षी अभी भी 24 की ही हैं और इस साल आ रही उनकी चार फिल्मों में तीन के हीरो जिंदगी के चालीस से ज्यादा वसंत देख चुके हैं. चार साल पहले जब दीपिका पादुकोणे की पहली फिल्म ओम शांति ओम आई थी, तब वे 21 की थीं और उनके हीरो थे उम्र में उनसे ठीक दोगुने 42 वर्ष के शाहरुख खान. तो इसमें अजीब क्या है? चालीस पार होना कोई अपराध है भला?

नहीं. सवाल यह नहीं कि हीरो चालीस पार हैं, सवाल यह है कि चालीस पार वाली वे हीरोइनें कहां हैं, जिनके साथ बीस की उमर में पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचते हुए आज के 40-45 साल के सुपरस्टार्स ने अपने फिल्मी कॅरिअर की शुरुआत की थी? हीरो आज भी वैसे ही अपनी बेटी और पोती की उम्र की हीरोइनों के साथ पेड़ों के इर्द-गिर्द नाच रहे हैं और उनके साथ की हीरोइनें वक्त के बियाबान में जाने कहां गुम हो गईं. मिसेज एक्स-वाइ-जेड बनने में उनके शानदार फिल्मी कॅरियर का अंत हुआ. जैसा कि एक फ्रेंच लेखिका ने कभी कहा था कि इस दुनिया में स्त्री के लिए सबसे स्थायी कॅरिअर है-'शादी'. हमारे समय की सबसे आधुनिक, आत्मनिर्भर और ढेर सारा पैसा कमाने वाली स्त्रियों का सबसे स्थायी कॅरिअर अंततः शादी ही हुआ. ऐसा क्यों?

सवाल परेशान करने वाला है. इसीलिए तो अपने समय की जानी-मानी अभिनेत्री दीप्ति नवल अचानक कुछ देर के लिए चुप हो जाती हैं. फिर कहती हैं, 'सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा होता है. आप युवा और खूबसूरत हैं. ढेर सारी फिल्में आपके कदमों में बिछी हैं. आप काम में व्यस्त हैं. फिर एक दिन आप महसूस करते हैं कि अचानक फिल्मों के ऑफर आने कम हो गए और फिर धीरे-धीरे बंद हो गए. क्या आप बुढ़ा रही थीं? नहीं, बमुश्किल आप 32 की भी नहीं थीं. तभी एक दिन फोन की घंटी बजती है और आपसे भाभी का रोल करने के लिए कहा जाता है. थोड़े दिनों में आप बाल सफेद कर मां की भूमिका निभाने लगती हैं.'

फिल्म द डर्टी पिक्चर का एक दृश्य हैः एक फिल्म की शूटिंग चल रही है. बमुश्किल तीस साल की एक सुंदर-सी लड़की के बालों को सफेद रंग कर, उसे सफेद साड़ी पहनाकर 62 साल के नसीरुद्दीन शाह की मां बना दिया गया है. लड़की के चेहरे पर चमक है और बेहद टाइट पैंट और तमाम मेकअप भी मचल-मचलकर बुढ़ा रहे नसीर के चेहरे की झुर्रियों का राज खोल देना चाहते हैं. तभी एक संवाद है, 'वाह सूर्यकांत जी, कल तक आप उनके साथ नाच रहे थे और आज उन्हें अपनी मां बना डाला.'

फिल्म समीक्षक भावना सोमाया कहती हैं, 'हमारे समाज ने औरत की हर भूमिका को उम्र के खांचों में बांटा हुआ है. 20 साल में वह प्रेमिका है, 25 में बीवी, 30 पार मां और 40 के बाद दादी-नानी. यही हाल हमारी फिल्मों का भी है.'

यहां उम्र के कैलेंडर से जिंदगी चलती है. काबिलियत कोई नहीं पूछता. 1988 में आई सुपरहिट फिल्म कयामत से कयामत तक से आमिर खान और जूही चावला ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत की और फिर 2000 में फिर भी दिल है हिंदुस्तानी बतौर लीड हीरोइन उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई. भूमिकाएं बाद में भी करती रहीं, लेकिन छोटी-मोटी और हाशिए की. जूही मिसेज मेहता बन गईं, लेकिन आमिर आज भी सुपरस्टार हैं. जूही में प्रतिभा नहीं थी या अभिनय के प्रति दीवानगी कम थी? वे कहती हैं, 'हमें पहले दिन से पता होता है कि यह कॅरिअर बहुत लंबा नहीं है और जल्दी ही हमारी पारी खत्म हो जाएगी. पैशन में कमी नहीं है, रोल हैं ही नहीं.'

सिर्फ जूही ही क्यों, एक लंबी फेहरिस्त है उन एक्टरों की, जिनका कॅरिअर बमुश्किल 35 पार करते-करते खत्म हो गया. उनका अपराध सिर्फ यही था कि वे मर्द नहीं थीं. 46 वर्षीय पद्मिनी कोल्हापुरे के कॅरिअर की पहली हिट फिल्म प्रेम रोग में उनके हीरो थे ऋषि कपूर और फिर वे सात दिन (1983) में अनिल कपूर. दस साल फिल्मों में धूम मचाने के बाद पद्मिनी गायब हो गईं. मगर दोनों कपूर बुढ़ापे के साथ और जवान होते गए. उनके दरवाजे पर बरसों तक फिल्मों के ऑफर लिए निर्माताओं का तांता लगा रहा.

पूजा भट्ट, उर्मिला मातोंडकर, रवीना, मनीषा कोइराला, तब्बू, करिश्मा... जाने कितने तो नाम हैं. यह सभी अपने समय की टॉप हीरोइनें थीं. आमिर, शाहरुख, सलमान, अजय देवगन और अक्षय कुमार के साथ इनकी जोड़ी हिट थी. वक्त ने बाल तो दोनों के सफेद किए. फर्क सिर्फ इतना है कि हीरो सफेद बालों को काला कर आज भी फिल्मों के नायक हैं, जवान लड़कियों के साथ गलबहियां कर रहे हैं और बुढ़ा रही हीरोइनों ने स्थायी कॅरिअर 'शादी' को चुन लिया है.

उन्होंने कॅरिअर इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि शादी करनी थी. शादी इसलिए की क्योंकि कॅरिअर छूट गया था. क्या शादी और कॅरिअर एक-दूसरे के दुश्मन हैं? पश्चिम में तो शादी और दो बच्चों के बाद भी, चेहरे पर बुढ़ापे की अनगिनत झुर्रियों के बाद भी स्त्रियां बेस्ट एक्ट्रेस का ऑस्कर अवॉर्ड पाती हैं. हमारा देश ही इतना गया-गुजरा क्यों है? हमारे पास तो खुश रहने को गालिब ये खयाल भी नहीं है कि कोई एक ही उदाहरण होता, जिसे पोस्टर की तरह चिपकाकर हम खुश होते. कॅरिअर के शिखर पर किसी हीरोइन ने शादी नहीं की और जिसने कर ली, वह तुरंत लुढ़ककर नीचे गिर पड़ी. दूसरी ओर हृतिक रोशन ने पहली ही सुपरहिट फिल्म के बाद शादी कर ली और आज भी सुपरस्टार हैं. इमरान खान ने हाल ही में शादी की है और अभी तो उनके कॅरिअर में आला मकाम आने बाकी हैं. लेकिन सोनाक्षी और दीपिका अगर कल शादी कर लें तो परसों उनके कॅरिअर का किरिया-करम हो जाएगा. बड़े फिल्म हाउस के कॉन्ट्रैक्ट में तो बाकायदा लिखा होता है कि उनकी कंपनी में काम करते हुए हीरोइन न शादी कर सकती है और न ही बच्चे पैदा कर सकती है.

इसके पीछे कौन-सा मनोविज्ञान है? सिनेमा के मनोविश्लेषण पर महत्वपूर्ण किताबें लिखने वाले साइको एनालिस्ट सुधीर कक्कड़ कहते हैं, 'भारतीय हमेशा मनोवैज्ञानिक रूप से फिल्मों से जुड़ते हैं. परदे पर नाच रही स्त्री सिर्फ एक्टर नहीं है. हर हिंदुस्तानी मर्द अपने मन में हीरोइन में अपनी प्रेमिका तलाशता है. हीरोइन शादीशुदा और दो बच्चों की मां हो तो यह उसके लिए एक मानसिक झटका है.'

सुप्रिया पाठक एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं, लेकिन उन्हें चुनौतीपूर्ण केंद्रीय भूमिकाएं कभी नहीं मिलीं, जिसके लिए वे कहती हैं, 'बतौर एक्टर आपको अपनी काबिलियत मालूम है और यह विश्वास भी कि अपने दम पर आप कैरेक्टर के साथ न्याय कर सकती हैं. लेकिन एक खास उम्र के बाद आपको फिल्मों में प्रमुख भूमिका नहीं मिलती. यह दुखद है, लेकिन यही सच है.'

कॅरिअर की शुरुआत से ही फिल्मों में मां की भूमिका निभाने वाली किरण खेर कहती हैं, 'मैंने जिस उम्र में फिल्मों में कदम रखा, मेरे लिए किसी और भूमिका की गुंजाइश नहीं थी. अपनी काबिलियत का टोकरा अपने घर रखकर आइए, इस उम्र में तो आपको इतना ही मिलेगा.'

सीआइडी वहीदा रहमान की पहली हिंदी फिल्म थी. उसके बाद उनका फिल्मी सफर डेढ़ दशक भी पूरे नहीं कर पाया और बतौर लीड हीरोइन उनकी मांग खत्म हो गई. वहीदा को यह सवाल परेशान तो जरूर करता होगा, लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव पर उनका सुर बहुत तल्ख नहीं है. वे कहती हैं, 'दुख तो होता है कि जिन फिल्मों के लिए हम अपना पूरा जीवन लगा देते हैं, वह दुनिया एक दिन अचानक आपको ऐसे किनारे कर देती है.' सिर्फ वहीदा ही नहीं, उनके जमाने की किसी भी हीरोइन का कॅरिअर एक या बहुत हुआ तो डेढ़ दशक से ज्यादा नहीं रहा. दूसरी ओर देव आनंद और अशोक कुमार आखिरी दिनों तक हीरोगीरी करते रहे.

बॉलीवुड में स्त्री चरित्रों को केंद्र में रखकर सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाले निर्देशक श्याम बेनेगल कहते हैं, 'हिंदी फिल्मों की दुनिया पुरुष सत्ता प्रधान है, लेकिन इस दुनिया में पुरुषों का उतना ही वर्चस्व है जितना कि आम समाज में है. फिल्में उसी का विस्तार हैं. फिल्में नायक प्रधान होती हैं. हीरोइन तो ग्लैमर के लिए है. पश्चिम में ऐसा नहीं होता.' बेनेगल ठीक कहते हैं. पश्चिम में सचमुच ऐसा नहीं होता. इस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर पाने वाली हीरोइन मेरिल स्ट्रीप 66 साल की हैं. पिछले 15 सालों के आंकड़े देखें तो ऑस्कर पाने वाली हीरोइनों की औसत उम्र 40-50 और 60 के पार है. वहां बढ़ती उम्र उन्हें अपना काम छोड़ घर बैठ जाने को मजबूर नहीं करती. इंग्रिड बर्गमैन बुढ़ापे तक फिल्मों में शीर्ष भूमिकाएं निभाती रहीं. 77 साल की जूडी डेंच अभी भी फिल्मों को लीड कर रही हैं. बेनेगल कहते हैं, 'वहां स्त्रियों का कॅरिअर खत्म नहीं होता क्योंकि वहां स्त्री प्रधान फिल्में बनती हैं. उन्हें केंद्र में रखकर रोल लिखे जाते हैं. वहां स्त्रियां ग्लैमर पीस नहीं, एक्टर हैं.'

किसी व्यक्ति विशेष को केंद्र में रखकर भूमिकाएं तो हमारे यहां भी लिखी जाती हैं, लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि वह व्यक्ति अमिताभ बच्चन या धर्मेंद्र हो सकते हैं, लेकिन रेखा या वहीदा रहमान नहीं. आर. बालाकृष्णन ने चीनी कम, मिलन लूथरिया ने दीवार और महेश मांजरेकर ने विरुद्घ फिल्म की स्क्रिप्ट अमिताभ को ध्यान में रखकर ही लिखी थी.

हालांकि मंजर कुछ बदल भी रहा है. नो वन किल्ड जेसिका या द डर्टी पिक्चर में स्त्रियों ने पूरी फिल्म का दारोमदार अपने कंधों पर ले लिया. लेकिन ऐसी महज एक या दो फिल्म यह विश्वास दिलाने को काफी नहीं कि दुनिया बदल रही है और पुरुषों की सोच भी. दिल को खुश रखने का यह खयाल यकीन में बदल सके, इसके लिए ऐसी 10-50-100 फिल्में चाहिए.  

हॉलीवुड: उम्र के 7वें दशक में

गत 26 फरवरी को 84वें ऑस्कर अवॉर्ड समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवॉर्ड मेरिल स्ट्रीप को दिया गया. मेरिल 66 वर्ष की हैं. 1977 में फिल्म जूलिया से जब उन्होंने अपने फिल्मी कॅरिअर की शुरुआत की, उस वक्त ही उनकी उम्र 28 साल थी. अब तक वह पचास से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी हैं, 17 बार ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुईं और तीन बार यह अवॉर्ड जीता. ऑस्कर के अलावा गोल्डन ग्लोब समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड्‌स की एक लंबी फेहरिस्त मेरिल के खाते में है. इसके पहले 2006, 08 और 09 में भी उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस की कैटगरी में नॉमिनेट किया गया था. आज 66 की उम्र में भी वे हिंदी फिल्मी दुनिया की किसी 22 साल की हीरोइन की तरह फिल्मों में सक्रिय हैं. उम्र मेरिल की राह में कभी दीवार नहीं थी. आश्चर्य नहीं कि कॅरिअर का चौथा ऑस्कर हम उन्हें 75 की उम्र में पाते हुए देखें.

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