सिल्क्यारा सुरंग हादसा कैसे हुआ और कैसे बची 41 मजदूरों की जिंदगी, देखें तस्वीरें

सारा देश जब 12 नवंबर को दीवाली मना रहा था, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में कुछ मजदूर शाम के वक्त अपनी ड्यूटी कर रहे थे. ये मजदूर सिल्कयारा सुरंग के निर्माण कार्य में जुटे थे. करीब 853 करोड़ रुपए की लागत वाली यह सुरंग चारधाम प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसे सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय बना रहा है. काम अन्य दिनों की तरह सामान्य ढंग से चल रहा था कि एक हादसा हुआ. बन रही सुरंग का एक हिस्सा नीचे गिरा और उसने बाहर निकलने का रास्ता बंद कर दिया. सुरंग में काम कर रहे मजदूर भीतर ही फंस गए.

मलबा हटा कर मजदूरों तक पहुंचने के लिए अगले दिन मशीनों को काम पर लगाया गया. लेकिन अब भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. 14 नवंबर को ऑगर मशीन मंगाई गई ताकि मलबे से होते हुए एक रास्ता बनाया जाए जिससे मजदूर बाहर आ सकें. लेकिन यह छोटी मशीन काफी नहीं थी. अगले दिन उससे भी बड़ी मशीन का सहारा लिया गया. लेकिन 17 नवंबर तक करीब 22 मीटर की खुदाई के बाद मशीन एक चट्टान से जा टकराई. मशीन के ठीक होने तक अब दूसरा विकल्प तलाशने की बारी थी.

मजदूरों को बचाने के लिए 19 नवंबर को दूसरे विकल्प के तौर पर 'फाइव प्वाइंट प्लान' सामने आया. इसके तहत सुरंग के अलग-अलग हिस्सों से रास्ता बनाया जाना था. इस दौरान 6 इंच मोटा एक रास्ता बनाया गया जिससे होकर मजदूरों तक खाने-पीने की ज्यादा चीजें पहुंच सकती थीं. इस सप्लाई पाइप के तहत एक कैमरा भी भेजा गया जिससे मजदूरों से विजुअल कॉन्टैक्ट बनाया जा सकता था. इसके अलावा अच्छी बात यह थी कि खुदाई फिर से शुरू हो चुकी थी.

22 नवंबर तक करीब 42 मीटर की खुदाई को अंजाम दिया गया और ऐसा लग रहा था कि अब जल्द ही मजदूर बाहर आ जाएंगे. लेकिन अभी देश को और इंतजार करना था. ऑगर मशीन फिर से खराब हो गई. करीब 24 घंटे की लगातार कोशिश के बाद मशीन जब ठीक हुई तो फिर से काम शुरू हुआ. खुदाई पूरी होने में जब 12 मीटर का फासला रह गया था कि तभी ऑगर मशीन ने फिर से जवाब दे दिया. 12 मीटर के इस फासले को अब हाथ से खुदाई के जरिए पाटा जाना था, लेकिन इससे पहले मशीन के 'ड्रीलिंग ब्लेड' को हटाया जाना जरूरी था जो अब खुद एक रुकावट बन गया था.

प्लाज्मा कटर से उस ड्रीलिंग ब्लेड को काटने के बाद अब 'मैन्युअली' (हाथ से) खुदाई की बारी थी. इस तरह से जो खुदाई होती है उसे 'रैट-होल माइनिंग' कहा जाता है. रैट-होल माइनिंग खदानों में संकरे रास्तों से कोयला निकालने की एक पुरानी तकनीक है. हालांकि यह एक खतरनाक विधि मानी जाती है जिस पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन सिल्क्यारा में विशेष परिस्थिति को देखते हुए इस विधि का इस्तेमाल किया गया. कम से कम 6 रैट-होल माइनर्स ने मिलकर खुदाई के काम को अंजाम तक पहुंचाया और 28 नवंबर की शाम वह शाम बनी जिसके लिए पूरा देश पिछले 17 दिनों से लगातार प्रार्थना कर रहा था. मजदूर अब बाहर निकल चुके थे.

करीब 400 घंटों तक सुरंग में फंसे रहे मजदूरों के लिए पहले 24 घंटे काफी कठिनाइयों भरे रहे और मजदूरों को भूख और तनाव का सामना करना पड़ा. लेकिन जल्द ही मजदूरों को खाने के लिए मुरमुरे और इलायचीदाना राहत के तौर पर पहुंचाने की व्यवस्था की गई. इससे उनमें एक उम्मीद भी जगी कि ऊपर से उनका ख्याल किया जा रहा है. वे अकेले नहीं हैं. केंद्र और राज्य की 12 एजेंसियां इस काम में लगी हुई थीं. कुल 652 सरकारी कर्मचारी तैनात किए गए थे जो लगातार मोर्चे पर डटे हुए थे.

सुरंग में फंसे 41 मजदूरों में सबसे ज्यादा 15 मजदूर झारखंड राज्य से थे. दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश के मजदूर थे जिनकी गिनती 8 थी. इसके बाद बिहार और ओडिशा के 5-5 मजदूर फंसे हुए थे. आठ राज्यों से आने वाले सुरंग में फंसे इन 41 मजदूरों के लिए पूरा देश जैसे एक साथ खड़ा हो गया था. मजदूरों की सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना का दौर चल रहा था. प्रधानमंत्री कार्यालय सक्रियता से बचाव अभियान में लगा हुआ था. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, पुलिस विभाग, बीआरओ जैसे कई संगठन मजदूरों की सुरक्षित वापसी के लिए लगातार कोशिश कर रहे थे.

अब जबकि मजदूर निकल चुके हैं लेकिन सवाल वहीं फंसा हुआ है. क्या सुरंग बनाने के लिए मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. बीते 17 दिनों से सुरंग बनाने का जिम्मा संभालने वाली कंपनी 'नवयुग इंजीनियरिंग' अब तक सामने क्यों नहीं आई है. क्या सुरंग बनाने के लिए जरूरी प्रोटोकॉल फॉलो किए गए थे.
