क्या थी संसद पर 22 साल पहले हुए हमले की कहानी, देखें तस्वीरें

दिन बुधवार. तारीख 12 दिसंबर, 2001. श्रीनगर में हुर्रियत एलांयस के अध्यक्ष, अब्दुल गनी भट एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने बड़े रहस्यमय शब्दों में सम्मेलन की शुरुआत करते हुए कहा, "दिसंबर की 13 तारीख न सिर्फ कश्मीर, बल्कि अमेरिका के लिए भी महत्वपूर्ण होगी. किस तरह? बस 12 घंटे इंतजार कीजिए, और आपको पता लग जाएगा...मुझे यकीन है कि इन घटनाओं से न आपको निराशा होगी न मुझे."
अगला दिन यानी 13 दिसंबर, 2001. स्थान- संसद भवन. सुर्खियों में ताबूत घोटाला छाया हुआ था. संसद की कार्रवाई शुरू होते ही ढर्रे के मुताबिक हो-हल्ला होना शुरू हो गया. दोनों सदनों में सदस्य उत्तेजित हो उठे और बीचों-बीच आकर नारे और एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे. विपक्षी सांसद 'कफन चोर..गद्दी छोड़..सेना खून बहाती है, सरकार दलाली खाती है.' जैसे नारे लगाकर राज्यसभा और लोकसभा में हंगामा मचा रहे थे. मजबूरन पीठासीन अधिकारियों को कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी.

सुबह के 11:20 बज रहे थे. जगह- संसद का सेंट्रल हॉल. दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सांसदों में हंसी-मजाक चल रहा था. अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से सेंट्रल हॉल गूंजने लगा. अभी सांसद कुछ समझ पाते कि सुरक्षाकर्मियों ने 12 दरवाजों वाले संसद भवन के सभी द्वारों को फटाफट बंद कर दिया. उस समय हॉल में 250 से ज्यादा सांसद और कुछ मंत्रीगण मौजूद थे. गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत अरुण जेटली, वैंकेया नायडू, जार्ज फर्नांडिस, मनमोहन सिंह भी उस समय हॉल में ही थे.

11 बजकर 41 मिनट पर लाल बत्ती लगी एक सफेद एंबेसेडर कार (डीएल 3सीजे 1527) संसद मार्ग वाले छोर से परिसर में तेजी से घुसी. मुख्य द्वार पर तैनात सुरक्षाकर्मियों की आंखों में धूल झोंकते और पोर्च को तेजी से पार कर विजय चौक-रायसीना रोड के छोर वाले द्वार की ओर बढ़ती गई. कार में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैय्यबा के पांच फिदायीन आतंकी बैठे हुए थे जिनके पास उर्दू लिखाई और हरे स्टीकरों वाली चार एके-47 राइफलें, 15 हथगोले, एक ग्रेनेड लांचर समेत अन्य हथियार थे. गाड़ी में 30 किलो आरडीएक्स (विस्फोटक) भी था. तो योजना क्या थी?

इस शातिर योजना में सांसदों की हत्या से लेकर उन्हें बंधक बनाना और सौदेबाजी करना, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री की हत्या भी शामिल थी. आठ महीनों के दौरान माथापच्ची कर उन्होंने जो प्लान बनाया था, उसके मुताबिक ही वो आगे बढ़ रहे थे. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उस समय अपने आवास पर थे. वे दोपहर में गेट नं. 5 से संसद भवन आने वाले थे. इधर, आतंकियों की मंशा थी कि वे विस्फोटक से भरी गाड़ी पार्क कर उसे उड़ा देते और सुरक्षाकर्मियों का ध्यान बंटाते, इस बीच कुछ आंतकवादी गेट 5 तक पहुंचने की कोशिश करते और कुछ मुख्य द्वार से संसद में प्रवेश कर जाते फिर सांसदों को बंधक बना लेते.

आतंकी अपने साथ बहुत सारे सूखे मेवे के पैकेट भी लाए थे. इससे जाहिर हो रहा था कि वे संसद में एक हफ्ते तक टिकने की तैयारी के साथ आए थे. वे सांसदों को बंधक बना कर सेलफोन पर सौदेबाजी करते और दुनिया के मीडिया का ध्यान खींचते. लेकिन उनकी यह नापाक योजना धरी की धरी रह गई और अंतिम में हुई कई गड़बड़ियों के चलते उनके शातिर मंसूबे परवान न चढ़ सके. इसके लिए कई लोगों की बहादुरी को श्रेय जाना चाहिए. साथ में थोड़ी किस्मत को भी. कैसे? आइए जानते हैं.

गेट नंबर 11 पर उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत के आने का इंतजार उनके ड्राइवर कर रहे थे. सो, उपराष्ट्रपति के काफिले की गाड़ियां भी वहीं मौजूद थीं. गेट नंबर 11 और 10 के बीच एक दीवार थी. आतंकियों को शायद यह पता नहीं था. ये सारी चीजें आतंकवादियों के प्लान से बाहर जा रही थीं. बहरहाल, जैसे ही आतंकियों की गाड़ी गेट नं.12 से तेजी से दाहिनी ओर घूमी, सामने उपराष्ट्रपति के काफिले को देखकर अपना रास्ता रुका पाया. आतंकियों ने कार धीमी करनी चाही लेकिन रुकते-रुकते वो काफिले की एक कार से जा टकराई और तेज आवाज के साथ राज्यसभा लॉन के पास आकर रुक गई.

तब तक सफेद एंबेसेडर कार की उल्टी सीधी चाल देखकर उप-राष्ट्रपति के सुरक्षाकर्मी सतर्क हो गए थे. संसद के सुरक्षा अधिकारी जे.पी. यादव ने अपने वॉकी-टॉकी पर खतरे की सूचना दी. अब आतंकियों की प्रतिक्रिया की बारी थी. उन्होंने यादव को करीब से गोली मार दी. इससे पहले सीआरपीएफ कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने हाथ देकर रोकने की कोशिश की थी, उन्हें भी गोलियों से छलनी कर दिया गया. माली देसराज राज्यसभा के लॉन संभाल रहे थे, आतंकियों की कोई गोली आई और वहीं उनकी मौत हो गई.

इस बीच इन पांच फिदायीन आतंकियों में से चार दीवार फांद आगे बढ़े, जबकि एक फिदायीन आतंकी मुख्य द्वार की ओर भागा. वह तड़ातड़ गोलियां बरसा रहा था और हथगोले दाग रहा था. तभी एक गोली उसके कमर में बंधे विस्फोटक में लगी और मुख्य द्वार के सामने ही उसके चिथड़े उड़ गए. इधर जो चार आतंकी दीवार फांद गए थे, उन्हें नहीं पता था कि वे आसान मौत को गले लगाने जा रहे हैं. संसद के खंभों से टिके सुरक्षाकर्मियों की गोलियों ने उनमें से तीन का काम तमाम कर दिया जबकि एक दूरदर्शन केबल के सहारे ऊपर चढ़कर पहली मंजिल पर जाना चाहता था. उसको भी एक गोली लगी और केबल से फिसलते हुए नीचे आ गिरा फिर और सुरक्षाबलों की गोलियों ने उसे भी भून डाला.

इस मुठभेड़ में हमारे 6 सुरक्षाकर्मी और एक माली शहीद हो गए. 12 सुरक्षाकर्मी और एक टीवी कैमरामैन, 18 दूसरे लोग घायल हुए. नुक्सान इससे ज्यादा हो सकता था लेकिन पहले सुरक्षा घेरे के विफल हो जाने के बावजूद दो अन्य सुरक्षा घेरों ने सही समय पर तत्काल प्रतिक्रिया दी और संसद के सारे दरवाजे सही समय पर बंद हो जाने से चीजें नियंत्रण के बाहर नहीं गईं. फिर भी बिखरे मांस के टुकड़े और बहे खून के बीच धुएं से भरे वातावरण से लोग बाहर निकले तो देखा कि लोकतंत्र के इस सबसे बड़े मंदिर पर खतरे का निशान लग चुका था.