रामायण, गीता और शाहनामा की 200 साल से भी पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपियां! देखें तस्वीरें

हमने बचपन से ही रामायण, गीता और दूसरे ग्रंथों की छपी हुई किताबें ही पढ़ी हैं. मगर जब प्रिंटिंग मशीन का आविष्कार नहीं हुआ था तो किताबों की हस्तलिखित प्रतियां ही लोग तैयार किया करते थे. वही पढ़ी जाती थीं. ये हस्तलिखित प्रतियां रंगबिरंगी स्याही, सजावटी अक्षरों और सुंदर चित्रों के साथ तैयार होती थी. आज ये प्रतियां कहीं दिखती नहीं हैं. मगर पटना के खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के पास ऐसी कई दुर्लभ पांडुलिपियां हैं.
इनकी संख्या 21 हजार तक बताई जाती हैं. साल 1891 में स्थापित इस लाइब्रेरी का शोधार्थियों के लिए विशेष महत्व है. 1845 में जन्मे अपने संस्थापक खुदाबख्श की जयंती यानी फाउंडर्स डे (2 अगस्त) के मौके पर इस लाइब्रेरी ने इनमें से कुछ चुनिंदा पांडुलिपियों की प्रदर्शनी लगाई है. इस प्रदर्शनी में सिर्फ अरबी-फारसी की किताबें ही नहीं, रामायण, रामचरित मानस और गीता की दुर्लभ पांडुलिपियां भी नजर आ रही हैं. साथ ही मध्य एशियाई, तुर्की, ईरानी, मुगल और राजपूत शैली के चित्र भी प्रदर्शित हो रहे हैं.

तुलसीदास रचित रामचरित मानस की 18वीं सदी की पांडुलिपि, जिसमें कई मिनियेचर पेंटिंग हैं.

18वीं सदी में रामायणों में बनी मिनियेचर पेंटिंग की तसवीरें.

ये भी 18वीं सदी में रामायणों में बनी मिनियेचर पेंटिंग की तसवीरें हैं.

भागवत गीता की पांडुलिपी में बनी एक मिनियेचर पेंटिंग.

बादशाहनामा में बनी ताजमहल की पेंटिंग.

राजपूत शैली में बनी जोधाबाई की पेंटिंग.

कुल्लियत-ए-शादी की 17वीं सदी की दुर्लभ पांडुलिपि, इसमें पर्शियन शैली की तीन अच्छी मिनियेचर पेंटिंग है.

भारतीय संगीत की पुस्तक राग रागिनी की 18वीं सदी की पांडुलिपी, इसमें 13 दुर्लभ मिनियेचर पेंटिंग हैं.

शुजा-ए-हैदरी की 16वीं सदी की दुर्लभ पांडुलिपी, इसमें भी कई चित्र बने हैं.

18वीं सदी की सचित्र श्रीमद् भागवत गीता के पांडुलिपी की तस्वीर.

16वीं सदी के फिरदौसी रचित शाहनामा की दुर्लभ पांडुलिपि, इसमें भी पर्शियन शैली के कई चित्र बने हैं.

18वीं सदी के रामायण की दुर्लभ पांडुलिपि, जिसमें भारतीय शैली की 20 मिनियेचर पेंटिंग हैं.

1834 की पुस्तक गॉड एंड गॉडेस, इस पुस्तक में तंजावुर शैली में भारतीय देवी देवताओं की 132 मिनियेचर पेंटिंग्स हैं.