सचिन आला रे...तस्वीरों में जानिए 'क्रिकेट के भगवान' की कहानी

क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर क्रिकेट की दुनिया में कैसे आए, इसके बारे में कई सारी कहानियां चलती हैं. सच क्या है ये तो खुदा जाने! लेकिन ऐसा कहा जाता है कि सचिन के सौतेले भाई अजित तेंदुलकर उन्हें पहली बार मुंबई के शारदाश्रम विद्यामंदिर स्कूल ले गए. यहीं पर तब 11 साल के सचिन की मुलाकात उनके पहले कोच रमाकांत आचरेकर से हुई. वे यहां बच्चों को क्रिकेट खेलना सिखाते थे और उनके लिए नियमित रूप से समर कैंप की व्यवस्था करते थे. (फोटो- बल्ले के साथ नन्हा तेंदुलकर)

शारदाश्रम. गुरु आचरेकर का कोचिंग सेंटर. यहां सचिन की दिनचर्या में अब बस तीन चीजें ही शामिल थीं - खाना, सोना और क्रिकेट खेलना. हालांकि बाद में सचिन ने स्कूल भी बदले, लेकिन उनकी कड़ी ट्रेनिंग लगातार जारी रही. इस दौरान वे कई सारे मैच खेल रहे थे और शानदार प्रदर्शन कर रहे थे. नतीजा ये हुआ कि धीरे-धीरे तेंदुलकर का नाम पूरे मुंबई में छाने लगा. जब भी वे किसी स्कूली मैच में बल्लेबाजी के लिए जाते तो मैच देखने आए लोगों में फुसफुसाहट शुरू हो जाती. इनमें कई दर्शक ऐसे होते जो सिर्फ और सिर्फ सचिन की बल्लेबाजी देखने के लिए वहां आए होते. (फोटो- एक टूर्नामेंट के दौरान किशोर सचिन और विनोद कांबली)

जल्दी ही एक ऐसा मौका आया जिसने मुंबई के अखबारों में सुर्खियां बटोरी. साल 1988. 23-25 फरवरी के बीच मुंबई के आजाद मैदान पर हैरिस शील्ड टूर्नामेंट का सेमीफाइनल मैच हो रहा था. मुकाबले में आमने-सामने थी शारदाश्रम विद्यामंदिर और सेंट जेवियर हाई स्कूल टीम. उस मैच में सचिन ने अपने पार्टनर विनोद कांबली के साथ 664 रनों की चमत्कारिक साझेदारी की. इसमें सचिन का योगदान नाबाद 326 रनों का था जबकि कांबली ने नाबाद 349 रन बनाए थे. उस समय यह किसी भी कम्पीटिटिव क्रिकेट में किसी भी विकेट के लिए सबसे बड़ी साझेदारी थी. (फोटो- लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर के साथ यंग सचिन और टोपी पहने हुए प्रवीण आमरे)

हैरिस शील्ड टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करने के बाद सचिन के लिए अब घरेलू क्रिकेट में जगह बनाना कोई बड़ी बात नहीं थी. जल्द ही वे मुंबई टीम का हिस्सा भी बन गए और 1988 में महज 15 साल की उम्र में अपना पहला रणजी मैच खेला. लेकिन थोड़ा इसके पीछे जाएं तो यह इतना आसान भी नहीं था. दरअसल, सचिन की छोटी उम्र को देखते हुए कुछ लोगों की इस बात पर भौंहें तनीं कि इतना छोटा लड़का कैसे सीनियर गेंदबाजों को फेस कर पाएगा? अक्सर बड़ों को संदेह के ये दौरे पड़ते रहते हैं. खैर, जब दिलीप वेंगसरकर (उस समय भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान) ने सचिन को नेट्स पर बल्लेबाजी करते देखा, और देखा कि वे कपिल देव की गेंदों को आसानी से खेल ले रहे हैं तो फिर सारे कयास ही मिट गए. तेंदुलकर ने भी इस भरोसे को सही साबित किया और रणजी और दलीप ट्रॉफी की शुरुआत शतक के साथ की. (फोटो- श्रीलंका के साथ एक मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर)

सचिन घरेलू क्रिकेट में लगातार रन पर रन बनाए जा रहे थे. एक तरह से यह उनका चयनकर्ताओं को संदेश था कि वे अब देश के लिए खेलने को पूरी तरह से तैयार हैं. चयनकर्ता भी आखिर उन्हें कब तक नजरअंदाज करते! नवंबर 1989 में पाकिस्तान दौरे के लिए सचिन को पहली बार राष्ट्रीय टीम में शामिल किया गया. भारतीय टीम वहां टेस्ट और वनडे सिरीज खेलने के लिए पहुंची थी. महज 24 साल की औसत उम्र वाली इस टीम के सामने वसीम अकरम, वकार यूनिस, आकिब जावेद और इमरान खान जैसे दिग्गज थे. सचिन ने कराची टेस्ट में 16 साल और 205 दिन की उम्र में टेस्ट डेब्यू किया. लेकिन उनका बल्ला चला नहीं और महज 15 रन पर वकार यूनिस ने उन्हें आउट कर दिया. दिलचस्प बात यह कि वकार भी इसी टेस्ट से डेब्यू कर रहे थे. (फोटो- कपिल देव, मो. अजहरूद्दीन, संजय मांजरेकर के साथ नीचे बैठे सचिन)

लेकिन क्रिकेट के भगवान का असली जन्म तो अंतिम टेस्ट में होना था. सियालकोट का मैदान. वकार यूनिस की एक बाउंसर तेंदुलकर की नाक पर जा लगी. नाक से खून की धारा निकल पड़ी. इस वाकये के बार में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू बताते हैं, "सियालकोट टेस्ट के पांचवें दिन भारतीय टीम सिर्फ 25 रन पर पांच विकेट गंवा चुकी थी. तेंदुलकर जब बल्लेबाजी के लिए उतरे तो उनके सामने वकार यूनिस थे. वकार अपने समय के सबसे बेरहम तेज गेंदबाज थे. वकार ने दूसरी ही गेंद पर सचिन को बाउंसर मारी. सचिन ने उसे हुक करने का प्रयास किया लेकिन गेंद इनसाइड एज लेकर उनकी नाक पर जा लगी. मैं देखकर सिहर-सा गया. उसकी नाक से खून की धार गिरने लगी. डॉक्टर मैदान पर आए और उसकी नाक को पोंछा. लेकिन सचिन ने जिस दिलेरी से कहा कि मैं खेलेगा, वो सुनकर मुझे यकीन नहीं हुआ. सचिन के नाक में खून सनी रुई लटक रही थी और वो बल्लेबाजी के लिए तैयार था." (फोटो- हीरो कप ट्रॉफी के साथ सचिन तेंदुलकर, साथ में कप्तान मो. अजहरुद्दीन)

इस टेस्ट सीरीज से पहले ज्यादातर क्रिकेट पंडितों का यही कहना था कि यह टीम ज्यादा से ज्यादा एक या दो टेस्ट ड्रा करा लेगी. लेकिन सीरीज जब खत्म हुई तो के. श्रीकांत की अगुवाई वाली इस युवा भारतीय टीम ने चारों टेस्ट ड्रा करा लिए थे. सचिन ने घरेलू मैचों की तरह तो यहां प्रदर्शन नहीं किया. लेकिन देश के लिए क्रिकेट खेलने के प्रति ललक और मजबूत इच्छाशक्ति से वे आने वाले मैचों के लिए टीम में अपनी जगह बना चुके थे. पाक के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की इस सीरीज में सचिन ने 292 रन बनाए. इसके बाद भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड का दौरा किया जहां सचिन ने शानदार 88 रन बनाए. वे टेस्ट शतक जमाने वाले सबसे यंग क्रिकेटर बनने से सिर्फ 12 रनों से चूक गए. लेकिन 1990 में जब भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया तो सचिन ने सिडनी में शानदार 148 रन बनाए. इस शतक के साथ सचिन ऑस्ट्रेलिया में शतक जड़ने वाले सबसे यंग क्रिकेटर बने. (फोटो- पांच साल की डेटिंग के बाद शादी के जोड़े में सचिन और अंजलि,1995)

1989 के पाक दौरे पर ही सचिन को वनडे टीम में भी डेब्यू करने का मौका मिला. पहला वनडे मैच पेशावर में था लेकिन यह मैच बिना एक भी गेंद डाले रद्द हो गया. चार मैचों की वनडे सीरीज का दूसरा मैच गुजरांवाला में खेला जाना था. लेकिन ओडीआई क्रिकेट में 49 शतकों के साथ क्रिकेट मैदान से विदा लेने वाले इस खिलाड़ी का पहला वनडे आगाज भी फीका ही साबित हुआ. यहां भी सचिन वकार यूनिस की परछाई में गायब होकर रह गए. महज दूसरी ही गेंद पर वकार ने सचिन को वसीम अकरम के हाथों कैच आउट करा दिया. पांचवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरे सचिन तब खाता भी नहीं खोल पाए थे. खैर, डेब्यू वनडे में शून्य पर आउट होने के बाद सचिन को अगले दोनों वनडे में मौका नहीं मिला. वे 1993 तक वनडे क्रिकेट में निचले क्रम पर ही बल्लेबाजी करते रहे. (फोटो-सचिन पत्नी अंजलि तेंदुलकर और बेटे अर्जुन और बेटी सारा के साथ केक काटते हुए (सफेद साड़ी में सचिन की मां))

लेकिन यह साल था 1994. भारतीय टीम गई थी न्यूजीलैंड दौरे पर. 27 मार्च को दूसरा वनडे ऑकलैंड में खेला जाना था. टीम के ओपनर नवजोत सिंह सिद्धू गर्दन में अकड़न के कारण मैच नहीं खेल रहे थे. कप्तान मुहम्मद अजहरुद्दीन ने फैसला लिया- सचिन ओपन करेगा. तब शायद अजहरुद्दीन को भी यह पता नहीं होगा कि उनका यह फैसला आगे चलकर न सिर्फ भारतीय टीम के लिए बल्कि सचिन के लिए भी कितना अहम साबित होने वाला है. न्यूजीलैंड के 142 रनों के जवाब में भारतीय टीम ने 160 गेंद शेष रहते वह मैच 7 विकेट से धमाकेदार अंदाज में जीता. इस जीत के पीछे जिस नाम की चहुंओर चर्चा हुई वह कोई और नहीं, डेब्यू ओपनर सचिन तेंदुलकर का था. (फोटो- विश्व कप 2003 में पाकिस्तान के खिलाफ 98 रनों की पारी के दौरान तेंदुलकर, सेंचुरियन, द. अफ्रीका)

इसके बाद सचिन ने क्रिकेट की दुनिया में न जाने कितने ही मील के पत्थर हासिल किए. न जाने कितने ही नए कीर्तिमान गढ़े. सबसे ज्यादा वनडे रन. सबसे ज्यादा टेस्ट रन. और दोनों फॉर्मेट मिलाकर सबसे ज्यादा शतक. क्रिकेट की दुनिया के ये कुछ प्रमुख रिकॉर्ड सचिन के ही नाम हैं. 1992 से लेकर 2011 तक सचिन ने 6 बार वनडे विश्वकप में भारत का झंडा बुलंद किया. पाकिस्तानी दिग्गज जावेद मियांदाद के अलावा और किसी खिलाड़ी के नाम ये रिकॉर्ड नहीं है. इस दौरान सचिन को दो बार फाइनल खेलने का मौका मिला. पहला 2003 में, और दूसरा 2011 में जब एक लंबे इंतजार के बाद सचिन को वो लम्हा नसीब हुआ कि वे वर्ल्ड कप को अपनी हाथों में थामें. इन दोनों ही विश्व कप में सचिन का बल्ला जोरदार ढंग से गरजा. 2003 में वे जहां 673 रनों के साथ टूर्नामेंट के टॉप स्कोरर थे वहीं 2011 में उन्होंने श्रीलंकाई धुरंधर तिलकरत्ने दिलशान के बाद सबसे ज्यादा 482 रन बनाए थे. हालांकि दोनों ही बार फाइनल मैच में वो कुछ खास नहीं कर पाए. (फोटो- पाकिस्तान के खिलाफ एक मैच में विकेट लेने के बाद खुशी मनाते सचिन, धोनी, युवराज और राहुल द्रविड़, 2006)

अपने 24 साल के लंबे करियर में सचिन अधिकांश समय विवादों से दूर रहे. लेकिन साल 2001 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पोर्ट एलिजाबेथ टेस्ट (सीरीज का तीसरा टेस्ट) के दौरान मैच रेफरी माइक डेनिस ने उनपर बॉल टेंपरिंग (छेड़छाड़) का आरोप लगाया. टेलीविजन फुटेज में दिखा कि सचिन गेंद को हाथ से साफ कर रहे थे. इसी फुटेज के आधार पर मैच रेफरी डेनिस ने सचिन पर बॉल टेंपरिंग के आरोप लगा दिए और एक मैच के लिए प्रतिबंधित कर दिया. क्रिकेट के नियमों के मुताबिक, कोई भी खिलाड़ी गेंद की सीम को सिर्फ अंपायर के सामने ही साफ कर सकता है. सचिन अंपायर को इसके बारे में बताना भूल गए और डेनिस ने उन पर बॉल टेंपरिंग का आरोप लगा दिया. बहरहाल, सचिन ने सजा स्वीकार नहीं की और मामला बीसीसीआई के सामने उठाया. बीसीसीआई ने इस मामले को आईसीसी के सामने उठाया. आईसीसी ने डेनिस का समर्थन किया लेकिन दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट बोर्ड ने भारत का पक्ष लिया. डेनिस को मैच रेफरी के पद से हटा दिया गया. आईसीसी ने तीसरे टेस्ट को अनऑफिशियल टेस्ट करार दिया. सचिन पर लगे आरोप साबित नहीं हुए. (फोटो- सचिन और सौरव गांगुली की सलामी जोड़ी ने लंबे समय तक क्रिकेट प्रशंसकों के दिलों पर राज किया)

सचिन ने अपने क्रिकेट करियर के दौरान शानदार बल्लेबाजी से लाखों-करोड़ों लोगों को अपना मुरीद बनाया. इनमें से एक क्रिकेट की दुनिया के सर्वकालिक महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन भी थे. ब्रैडमैन ने कभी अपनी पत्नी से कहा था, "मैं सचिन की बल्लेबाजी तकनीक से काफी प्रभावित हूं. मैंने कभी खुद को खेलते हुए नहीं देखा लेकिन मुझे लगता है कि यह लड़का (सचिन तेंदुलकर) बिलकुल मेरी तरह खेलता है." वाकई, सर ब्रैडमैन के ये शब्द किसी भी खिलाड़ी के लिए अनमोल धरोहर की तरह हैं. इसी क्रम में कभी सचिन के हाथों एक ओवर में चार छक्के खाने वाले अब्दुल कादिर की बात का भी यहां जिक्र किया जा सकता है जब उन्होंने सचिन की प्रतिभा पर कभी कहा था,"ये छोकरे को देखना तुम, ये ऐसा-वैसा बल्लेबाज नहीं बनेगा, गावस्कर या जहीर अब्बास जैसा, गेंदबाज इससे भागेंगे." (फोटो- दिल्ली डेयरडेविल्स के खिलाफ एक मुकाबले में मुंबई इंडियंस के सचिन तेंदुलकर 17 मार्च, 2010)