तस्वीरों में देखिए कैसे भारतीय सेना ने फतह किया था कारगिल युद्ध

(ऊंचाई पर हेलीकाप्टर से पहुंचते भारतीय सेना के जवान/इंडिया टुडे)
मई से जुलाई 1999 तक भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया कारगिल युद्ध दोनों देशों के इतिहास में एक जरूरी पन्ना बनकर उभरा. यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने जम्मू और कश्मीर के कारगिल सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास भारतीय प्रशासित क्षेत्र में घुसपैठ की.

(पूरे कारगिल युद्ध में बोफोर्स तोपों ने पाकिस्तानी सेना पर कहर बरपाया/इंडिया टुडे)
इस घुसपैठ ने भारत को चौंका दिया, क्योंकि इसने भारतीय सीमा की अखंडता और 1972 के शिमला समझौते का उल्लंघन किया, जिसमें यह तय किया गया था कि दोनों देश अपने विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएंगे. इस घुसपैठ ने ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों में एक भीषण जंग को हवा दी, जहां भारतीय सेना को ऊंचाई और खराब मौसम की स्थिति की वजह से काफी दिक्कत आई.

(बर्फ की मोटी परत में युद्ध लड़ने जाते इंडियन आर्मी के जवान/इंडिया टुडे)
जवाब में भारत ने घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए 26 मई, 1999 को ऑपरेशन विजय शुरू किया. इस ऑपरेशन में पैदल सैनिकों के साथ तोपखाने, हवाई हमले और हेलीकॉप्टर गनशिप शामिल थे. दुर्गम इलाके और भारी नुकसान के बावजूद, भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की और धीरे-धीरे कब्जे वाले इलाके पर नियंत्रण हासिल कर लिया.

(धरती की सबसे ऊंची चोटियों में शामिल जगहों पर भारतीय सेना ने दोबारा अपना कब्ज़ा जमाया/इंडिया टुडे)
इस युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया और तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज़ हो गए. विशेष रूप से अमेरिका ने पाकिस्तान को भारतीय क्षेत्र से अपनी सेना वापस बुलाने के लिए दबाव बनाया. युद्ध को भड़काने में अपनी भूमिका के लिए पाकिस्तान की दुनियाभर में निंदा की गई.

(कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना ने भी अपनी भूमिका खूब निभाई/इंडिया टुडे)
26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध समाप्त हुआ, जिसमें भारत ने सफलतापूर्वक अपने सभी क्षेत्रों पर दोबारा कब्ज़ा जमा लिया. इस युद्ध ने क्षेत्र में बेहतर सीमा प्रबंधन और खुफिया तंत्र की जरूरत को उजागर किया.

(कारगिल युद्ध में जीत के बाद मेडल लेते भारतीय सेना के जांबाज/इंडिया टुडे)
1999 के कारगिल युद्ध का भारत और पाकिस्तान दोनों पर गहरा राजनीतिक प्रभाव पड़ा. भारत में, इसने अपने सशस्त्र बलों के पीछे राष्ट्र को एकजुट किया, जिससे रक्षा तत्परता और खुफिया कमियों की समीक्षा की गई. पाकिस्तान के लिए, इसने सैन्य रणनीति और अंतर्राष्ट्रीय धारणा का फिर से मूल्यांकन शुरू किया, जबकि आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने पर आंतरिक बहस को बढ़ावा दिया. इस संघर्ष ने नए सिरे से कूटनीतिक प्रयासों को भी बढ़ावा दिया, जिसकी परिणति फरवरी 1999 के लाहौर घोषणापत्र में हुई, जिसका उद्देश्य शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को हल करना था. अपनी छोटी अवधि के बावजूद, इस युद्ध की विरासत भारत-पाक संबंधों और क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देने में जरूरी भूमिका निभा रही है.
