फौलादी महिला शक्ति को इंडिया टुडे का सलाम

इंडिया टुडे वूमन समिट ऐंड अवॉर्ड्स के आयोजन में मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सीतासरम शर्मा, मध्य प्रदेश की महिला और बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस, इंडिया टुडे ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा और इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी ने विशेष संस्करण का विमोचन किया

नेताजी सुभाष चंद बोस की ''देश सेवक सेना'' में रहते हुए राइफल चलाने से लेकर लिज्जत पापड़ का कारोबार करने तक का दिलचस्प सफर तय किया है पुष्पा बेरी ने. पंजाब के मोगा में 26 अगस्त 1934 को जन्मी बेरी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई वहीं पूरी की और फिर शादी के बाद 1952 में जबलपुर आ गईं. लेकिन उनके भीतर कुछ करने की तमन्ना पहले से समाई हुई थी. मृदुभाषी पुष्पा बेरी की 1974 में दुर्ग के समाजसेवी शांतिलाल शाह से मुलाकात हुई और शाह ने उन्हें लिज्जत पापड़ का कारोबार करने का आइडिया दिया. श्री महिला गृह उद्योग मुंबई से अनुमति लेकर उन्होंने जबलपुर में श्री महिला गृह उद्योग की बुनियाद रखी. शुरुआत में मुश्किलें जरूर आईं लेकिन आज उनके साथ 3000 से ज्यादा महिला सदस्य जुड़ी हुई हैं. उनके संगठन का कारोबार पिछले साल 45 करोड़ से ऊपर का था. सबसे बड़ी बात ये है कि घरों में महिलाएं पापड़ बनाती हैं और जो भी मुनाफा होता है उसे सभी सदस्यों में उनके योगदान के अनुरूप बांट दिया जाता है. पुष्पा का कहना है कि 2017 में 14 करोड़ का पारितोष संस्था की बहनों में बांटा जाएगा. उनका कहना है कि जबलपुर में बने पापड़ देश में बिकने के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों को निर्यात भी किए जाते हैं. सामूहिक कारोबार के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनमें आत्मविश्वास जगाने के लिए बेरी को कई सम्मान दिए जा चुके हैं.

मध्य प्रदेश के जनजातीय जिले मंडला
के गांव में रहने वाली संपतिया उइके ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना शायद ही कोई
आदिवासी कभी करता है. छात्र जीवन में ही उइके की सक्रियता उनकी सहपाठियों को चकित
करती थी. उन्होंने स्नातक किया और छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहीं. पढ़ाई पूरी
करने के बाद सरस्वती शिशु मंदिर में आचार्य रहीं लेकिन सामाजिक जीवन की सक्रियता
बरकरार रही. राजनीति में संपतिया उइके ने पहला कदम तब रखा जब 1999 में वह अपने
गांव टिकरवारा की सरपंच बनीं. 1967 में जन्मी उइके 2004 तक टिकरवारा की सरपंच रहीं
और उनके गांव में बेहतर विकास को देखते हुए श्रेष्ठ पंचायत का पुरस्कार मिला. उइके
2004 से 2017 तक लगातार मंडला जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं. वह भाजपा महिला मोर्चा और
अनुसूचित जनजाति मोर्चा में भी पदाधिकारी रहीं. जिला पंचायत अध्यक्ष रहने के दौरान
मंडला जिला पंचायत को प्रतिष्ठित आईएसओ अवार्ड मिला. आदिवासी संस्कृति के संरक्षण
और संवर्धन के लिए तीन हजार से अधिक युवक-युवतियों का करमा नृत्य उन्हीं के
प्रयासों से हो सका. उइके ने क्षेत्र में आदिवासियों के लिए कई उल्लेखनीय कार्य
किए. उनके कार्यों का सम्मान 2017 में तब हुआ जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें
राज्यसभा पहुंचाने का फैसला किया. वह महाकौशल क्षेत्र ही नहीं बल्कि प्रदेश की 21
फीसदी आबादी का उच्च सदन में प्रतिनिधित्व कर रही हैं और जनता की सेवा में लगी हुई
हैं.

उम्र का चौथा दशक पार चुकीं शिवानी
तनेजा ने सेवा को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया. कोई 20 साल पहले मुंबई के निर्मला
निकेतन से सोशलवर्क में एमए करने के बाद हाशिए पर पड़ी महिलाओं और बच्चों के लिए
काम करने की ठानी और भोपाल आ गईं. समाजसेवी संस्था मुस्कान के सदस्य के तौर पर
उनकी ख्याति भोपाल ही नहीं बल्कि प्रदेशभर में है. उन्होंने हाशिए पर पड़े
संसाधनहीन बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया तो आदिवासियों की समस्याओं का भी पूरा
तजुर्बा हासिल किया. अनाथ, मजदूरी में लगे बच्चों को काम आने वाली शिक्षा देने में तनेजा अपनी
टीम के साथ जुटी हुई हैं. उनका मानना है कि शिक्षा को असली जिंदगी से कभी अलग नहीं
करना चाहिए. पारदी, गोंड, दलित और मुस्लिम बच्चों की शिक्षा उन्हें अपराधों और अपराधियों से
बचाने का काम तनेजा बखूबी कर रही हैं. यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों और महिलाओं के
हक की लड़ाई भी वह लड़ रही हैं और इसके लिए सिस्टम से जूझने की उनकी ताकत भी कई
बार भोपाल के लोग देख चुके हैं. उनका मानना है कि आजादी मिले भले ही 70 साल से
ज्यादा हो गए हैं लेकिन अब भी समाज का एक बड़ा तबका मुख्यधारा में शामिल नहीं हो
पाया है. बराबरी का धरातल महिलाओं, आदिवासियों को नहीं मिल सका.

पेशे से इलेक्ट्रीशियन महताब सिंह यादव की बेटी चिंकी यादव ने अक्तूबर 2015 में कुवैत में हुई एशियन शूटिंग चैंपियनशिप में एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीतकर साबित कर दिया कि उसका निशाना कितना सटीक है. उसकी कामयाबी की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है पर कुछ का ज़िक्र ज़रूरी है. चिंकी ने जर्मनी में पिछले साल जून में वर्ल्ड जूनियर शूटिंग में कांस्य पदक, 2016 में गबाला में जूनियर वर्ल्ड कप में गोल्ड, 2015 के जूनियर वर्ल्ड कप (पिस्टल) में कांस्य पदक समेत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में ढाई दर्ज़न से ज्यादा पदक अपने नाम किए हैं.
चिंकी ने अकादमी में 2012 से जाना शुरू किया और फिर नेशनल गेम्स से अपनी मौजूदगी का अहसास कराया. चिंकी को इस बात का अहसास है कि पिस्टल शूटिंग काफी महंगा खेल है लेकिन अकादमी और दिग्गज शूटरों की देखरेख में वह भोपाल के तात्या टोपे नगर स्टेडियम प्रैक्टिस कर रही हैं. हर खिलाड़ी की तरह उनका भी सपना ओलिंपिक में पदक लाकर देश का नाम रोशन करना है. दिन का ज्यादातर वक्त शूटिंग के अभ्यास में बिताने वाली चिंकी को अकादमी का स्टार माना जाता है.

मध्य प्रदेश में जंगलों को जुल्मियों चंगुल से बचाने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली अफसर हैं बासु कनोजिया. इस तेज़तर्रार महिला अफ़सर ने फॉरेस्ट माफिया में खौफ़ पैदा कर दिया है. अप्रैल 2017 से प्रदेश के उमरिया ज़िले में बतौर डीएफ़ओ तैनात कनोजिया ने 750 हैक्टेयर ज़मीन को अतिक्रमण मुक्त कराया और 47 अवैध वाहन जंगल में बरामद कर शिकार के सात केस भी दर्ज़ किए हैं. फैज़ाबाद में जन्मी 34 साल की बासु कनौजिया भारतीय वन सेवा की 2010-12 बैच की अफसर हैं. उनकी पहली पोस्टिंग छतरपुर में बतौर एसडीओ हुई थी. इसके अलावा वह डीएफओ अशोकनगर, डीएफओ पन्ना, डीएफओ नौरादेही भी रह चुकी हैं. अशोकनगर में तैनाती के दौरान उन्हें तनावपूर्ण स्थितियों का सामना भी करना पड़ा. इसलिए क्योंकि यहां की मुख्य समस्य़ा अतिक्रमण की थी. यहां विभागीय अमले को ग्रामीणों के विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन बासु ने हार नहीं मानी. वह अपने कैरियर में अब तक छह हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन को कब्जामुक्त करा चुकी हैं. इसके अलावा उन्होंने शिकारियों पर भी सख्त कार्ऱवाई कर अपने मजबूत इरादे जाहिर कर दिए हैं. पन्ना में तैनाती के दौरान उन्होंने अवैध खनन की समस्या का डटकर मुकाबला किया. सख्त रवैये के चलते कई बार उन्हें जनप्रतिनिधियों की आलोचना का शिकार भी होना पड़ा लेकिन कोई भी बाधा इस कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी को अपने दायित्व के वहन से रोक नहीं सकी.

मां संगीत में बीए कर रही थीं और 10 साल की बेटी ने उन्हें देखकर चुपके-चुपके रियाज शुरू किया. बचपन के तमाम संघर्षों के बाद वह बच्ची आज हमारे सामने ममता शर्मा के नाम से है. मुन्नी बदनाम हुई जैसे गानों को अपनी आवाज देने वाली ममता मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले की हैं. 1991 में पिता की मौत के बाद उन्हें जिंदगी की तल्ख हकीकत से रू-बरू होना पड़ा. लेकिन उन्होंने गायन का अपना शौक जारी रखा. उन्होंने जगरातों और माता की चौकियों में गाना शुरू कर दिया. 11 साल की ममता ने जब पहली बार जगराते में गाया तो उन्हें 50 रु. मिले. वे स्टेज शो और जगरातों में गाकर अपने शौक को पूरा कर रही थीं और पैसे भी कमा रही थीं. उन्हें संगीत के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना था, लिहाजा मैथ्स और साइंस की पेचीदगियों में दिमाग नहीं खर्च करतीं. 10वीं क्लास के बाद ही उनका इरादा मुंबई जाकर खुद को प्रूव करने का था, लेकिन मां के कहने पर 12वीं तक पढ़ाई की. वे 2000 में मां और छोटे भाई के साथ मुंबई पहुंच गईं और वहां पर संघर्ष किया. ममता स्टेज शो करने लगीं और पहला मौका उन्हें घाटकोपर डांडिया में मिला. इसके बाद उनकी सिंगिंग पसंद की जाने लगी और शो की संख्या बढऩे लगी. एक स्टेज शो के दौरान संगीतकार ललित पंडित ने उन्हें गाते देखा और फिर उनकी किस्मत बदल गई. ललित ने उनसे दबंग के लिए मुन्नी बदनाम हुई गवाया और फिर देशभर में यह गाना गूंजने लगा. इसके बाद, टिंकू जिया, अनारकली डिस्को चली, पांडेजी सिटी और फेविकोल से जैसे गाने हर पार्टी और शादी-ब्याह में बजने लगे. वे लगभग 12 भाषाओं में गा सकती हैं और उनकी आवाज का देसीपन ही उनकी खासियत है.