झलक 2017: तकलीफें और त्रास

रोहिंग्या संकट या रोहिंग्याओं का कत्लेआम. आप इसे चाहे जो कहें, पर भीषण पैमाने पर बलात्कार, हत्या और जातीय सफाए के सबूत ने दिल को दहला दिया, जब कोई 6,00,000 इनसान म्यांमार से भागकर बांग्लादेश में पनाह लेने को मजबूर हुए.

साल 2016 की सर्दियों में दिल्ली के ऊपर झूलती धुंध और धुआं अंतरराष्ट्रीय खबरों में था. लिहाजा दीवाली के बाद की बेहद चिंताजनकर हालात से निबटने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस ऐक्शन प्लान (जीआरएपी) यानी सिलसिलेवार कदम उठाने की कार्य योजना तैयार की गई.

खुदा बचाए महारानी कोः मध्य युग की ऐतिहासिक राजपूत रानी को लेकर बनाई गई और दीपिका पादुकोण की मुख्य अदाकारी से सजी संजय लीला भंसाली का प्रदर्शन टालना पड़ा. सेट पर तोड़-फोड़ से लेकर भंसाली पर शारीरिक हमला और भाजपा के एक नेता ने तो पादुकोण के सिर पर ही इनाम रख दिया. विरोध प्रदर्शन बेतुके थे क्योंकि ये प्रदर्शनकारी उस महारानी की इज्जत की रक्षा के लिए बेताब थे जिसका हकीकत में होना ही शक के घेरे में था.

गब्बर सिंह टैक्सः जून और जुलाई की ऐन मध्यरात्रि में बुलाए गए संसद के एक नाटकीय सत्र में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने माल और सेवा कर (जीएसटी) को आखिरकार लागू कर ही दिया. इस एक कानून को बनाने में तकरीबन 20 साल लगे. ज्यादातर अर्थशास्त्री राजी हैं कि ढेर सारे पेचीदा करों को देश भर में लागू की जा सकने वाली एक कर व्यवस्था के तहत लाना फायदेमंद होगा, वहीं जीएसटी लागू करने के तरीके और कई बार बदली दरों के खिलाफ प्रदर्शन और आक्रोश पनपा. छोटे कारोबारी ज्यादा परेशान हुए, जो भाजपा का वोटबैंक रहे हैं.

सीप्लेन में प्रधानमंत्री गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान आक्रामक प्रचार का अंत प्रधानमंत्री के स्टंट (करतब) से हुआ. नरेंद्र मोदी को प्रचार के आखिरी दिन रोड-शो की इजाजत नहीं मिली, तो उन्होंने सीप्लेन से उड़ान भरने का फैसला कर लिया. उन्होंने अहमदाबाद में साबरमती नदी से धारोई बांध तक उड़ान भरी. आलोचकों ने बताया कि इस विमान का पंजीयन अमेरिका में था, इसे व्यावसायिक रूप से भारत में नहीं उड़ाया जा सकता, इसका पायलट भी कनाडा का था और जिन लोगों को उच्च सुरक्षा प्राप्त होती है, उन्हें सामान्यतया एक इंजन वाले विमानों से उड़ान भरने की इजाजत नहीं दी जाती. मगर इसने तस्वीर तो बना ही दी.

गाय के नाम पर भाजपा समर्थक कहते हैं कि कथित गोरक्षकों के हमलों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से यह संख्या बढ़ी है. वर्ष के शुरू के छह महीने में ऐसे 18 हमलों की जानकारी मिली, जो 2016 में किए गए ऐसे हमलों का 75 फीसदी है, और 2010 के बाद से यह ऐसे हमलों के लिए सबसे खराब वर्ष रहा. 2010 के बाद से गोरक्षा के नाम पर हिंसा के कुल 60 मामलों में से 97 फीसदी मोदी सरकार के राज में हुए. 2010 के बाद गोरक्षकों के हाथों मारे गए कुल 25 लोगों में से 21 मुसलमान थे.

कोई रहम नहीं भीषण गर्मी के दिनों में गोरखपुर के एक बड़े अस्पताल में तीन दिन के भीतर 60 बच्चों की मौत की खबर आई. ये मौतें अस्पताल के बकाये का भुगतान न करने के चलते बाधित हुई ऑक्सीजन सिलेंडरों की आपूर्ति के कारण हुई. आपूर्तिकर्ता ने इसका खंडन किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने जोर देकर कहा कि अधिकांश बच्चे इंसेफलाइटिस (मस्तिष्क ज्वर) पीड़ित थे और उनकी हालत नाजुक थी. मार्च के मध्य में मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने जांच का वादा किया. यह घटनाक्रम यूपी सरकार के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया. इसने सुशासन के दावे की हवा निकाल दी और उन लोगों की तकलीफें जाहिर कीं जो व्यवस्था से नहीं लड़ सकते.