ऊंचे और असरदार: राजनीति के टॉप 10

1. सोनिया गांधी
66 वर्ष, कांग्रेस अध्यक्ष (1)
यूपीए की प्राणशक्ति
क्योंकि उन्होंने बीमारी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और आज भी कांग्रेस को बांधे रखने वाली कड़ी हैं. वे सबसे लंबे समय तक पार्टी अध्यक्ष होने का गौरव हासिल कर चुकी हैं.
क्योंकि उनमें 1,20,000 करोड़ रु. का खाद्य सुरक्षा विधेयक कैबिनेट में मंजूर करा लेने का दमखम है.
क्योंकि उन्होंने शिक्षा के अधिकार कानून को तराशा और सरकार से गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी आरक्षण सही ढंग से लागू करने का आग्रह किया.

2. नरेंद्र मोदी
62 वर्ष, गुजरात के मुख्यमंत्री (नए)
मंशा राष्ट्रीय बनने की
क्योंकि वे विकास का गुजरात मॉडल दिखाने के बाद प्रधानमंत्री बनने के लिए पूरी एकाग्रता के साथ इसी एकसूत्री अभियान में जुटे हुए हैं.
क्योंकि उन्हें बीजेपी के भीतर काडर का जबरदस्त समर्थन हासिल है, जिसे अनदेखा करना पार्टी के लिए मुश्किल है.
क्योंकि वे एक साल से देश के राजनैतिक क्षितिज पर हावी हैं. हालत यह है कि आप ''उनसे प्यार करें या नफरत, लेकिन उनकी अनदेखी नहीं कर सकते.

3. राहुल गांधी
42 वर्ष, कांग्रेस उपाध्यक्ष (9)
बाहर से ही थामे कमान
क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए यूपीए का उम्मीदवार माना जा रहा है, खासकर जबसे उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष की कुर्सी संभाली है.
क्योंकि उन्होंने राजनीति और सत्ता के जोड़ का नया विजन पेश करना शुरू कर दिया है.
क्योंकि उन्होंने सत्ता संभालने को लेकर अपने संकोच को ही अपनी सोच बना लिया है और खुद को जमीनी नेता के तौर पर स्थापित किया है.

4. मनमोहन सिंह
80 वर्ष, प्रधानमंत्री (3)
हुक्म के बादशाह
क्योंकि सबसे उम्रदराज प्रधानमंत्री होने और देश के सबसे लंबे समय तक गैर गांधी-नेहरू प्रधानमंत्री होने के बावजूद उन्होंने तीसरे कार्यकाल के लिए हाजिर रहने के संकेत दे दिए हैं.
क्योंकि उन्होंने रिटेल सेक्टर में एफडीआइ के नियम उदार बनाने का फैसला किया और राष्ट्रहित के अहम मुद्दे पर सरकार का भविष्य तक दांव पर लगाने की हिम्मत दिखाने से पीछे नहीं हटे.

5. पी. चिदंबरम
67 वर्ष, वित्त मंत्री (10)
पूरी है तैयारी
क्योंकि वे शायद अकेले कैबिनेट मंत्री हैं जिन्हें मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी, दोनों का बराबर का विश्वास और समर्थन हासिल है.
क्योंकि वे 2जी, एयरसेल-मैक्सिस सौदे समेत कई विवादों से बेदाग निकल आए दिखते हैं.
क्योंकि उन्होंने रिटेल में एफडीआइ और डीजल के दामों को नियंत्रण मुक्त करने जैसे अहम आर्थिक सुधार प्रस्ताव संसद में रखे हैं.
प्रेरणास्रोत उन्होंने एक ही बजट में तमिल कवि तिरुवल्लुवर, नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ स्टिग्लिट्ज, स्वामी विवेकानंद और कम्युनिस्ट नेता डेंग जियाओपिंग को उद्धृत किया था.

7. अहमद पटेल
63 वर्ष, सोनिया गांधी के
राजनैतिक सचिव (नए)
परिवार की ताकत
क्योंकि सोनिया उन पर भरोसा करती हैं और वे राहुल युग को लाने वाले गुट के प्रमुख सदस्य हैं.
क्योंकि उन्होंने गठबंधन चलाने में अहम भूमिका निभाई है.
गांधी सूत्र 1971 में सबसे पहले वे संजय गांधी की नजर में आए थे.
संगीत प्रेमी रविवार की सुबह फिल्म संगीत सुनने के शौकीन.

6. मुलायम सिंह यादव
73 वर्ष, समाजवादी पार्टी प्रमुख (5)
साझे की ताकत
क्योंकि वे यूपीए को तलवार की धार पर रखकर अपने खिलाफ मामलों में सीबीआइ के दबाव का चतुराई से सामना करते हैं.
क्योंकि वे सरकार के लिए अपनी पार्टी के 22 सांसदों के समर्थन को अपने बेटे अखिलेश की सरकार को वित्तीय मदद के लिए भुनाते हैं.
क्योंकि वे खुद को तीसरे मोर्चे के नेता के रूप में देखते हैं और सारे सियासी विकल्प खुले रखते हैं.
जमीनी पकड़ उनके पास भरोसेमंद रिटायर्ड अफसरों की पूरी फौज है जो प्रदेश में जमीनी हकीकत पर नजर रखती है.

8. शरद पवार
72 वर्ष, एनसीपी नेता (नए)
टिकाऊ साथी
क्योंकि वे सबसे मुश्किल समय में कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद साथी साबित हुए हैं.
क्योंकि उन्होंने सोनिया गांधी को यूपीए समन्वय समिति बनाने पर मजबूर किया.
क्योंकि तीसरा मोर्चा उभरा तो वे प्रधानमंत्री बन सकते हैं.
कार में दफ्तर वे कार में चलते हुए फाइलें निबटाते हैं और मीटिंग करते हैं.

9. नीतीश कुमार
62 वर्ष, बिहार के मुख्यमंत्री (7)
सेक्युलर सौदेबाज
क्योंकि उनके 20 सांसद हैं और कांग्रेस उन्हें लुभा रही है.
क्योंकि बिहार में आठ साल की हुकूमत में उनके दामन पर भ्रष्टाचार का एक दाग तक नहीं लगा.
क्योंकि वे भावी प्रधानमंत्री के लिए अपने विकास के मॉडल को दिखा रहे हैं.
बढ़ता कद उन्होंने नवंबर, 2012 में पाकिस्तान यात्रा का चतुराई से फायदा उठाया.

10. लालकृष्ण आडवाणी
85 वर्ष, बीजेपी के वरिष्ठ नेता (नए)
हार मानने से इनकार
क्योंकि वे आज भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं.
क्योंकि वे आज भी इतने ताकतवर हैं कि नितिन गडकरी को दोबारा बीजेपी अध्यक्ष नहीं बनने दिया.
क्योंकि वे ईमानदारी से मानते हैं कि बीजेपी यूपीए का विश्वसनीय विकल्प नहीं दे पा रही.