बुद्ध और बिरसा की धरती के रत्न

विपरीत परिस्थतियां लोगों को तोड़ देती हैं लेकिन बिहार-झारखंड के लोग उन्हीं परिस्थितियों में अपने निजी प्रयासों और लगन से जीवन के लगभग हर क्षेत्र में रिकार्ड तोड़कर दूसरों के लिए मिसाल कायम कर रहे हैं.

राकेश पासवान, 37 वर्ष
टीवी सीरियल निर्माता और लेखक
दसवीं क्लास की परीक्षाएं अभी खत्म हुई थीं, और उनके पास करने के लिए कुछ खास था नहीं. सो बाकी बच्चों की तरह कोई कोर्स या खाली बैठने की बजाए उन्होंने रंगमंच की दिशा में जाने का मन बनाया. वे वामपंथी नाटक समूह इप्टा से जुड़े तो उन्हें समझ आया कि वे इसी दुनिया के लिए बने हैं. दो साल बाद उन्होंने जमशेदपुर के चाइबासा में ‘माडर्न थिएटर्स नाम से थिएटर ग्रुप शुरू कर लिया.

परवीन अमानुल्ला, 53 वर्ष
सामाजिक कल्याण मंत्री, बिहार
भारतीय विदेश सेवा अधिकारी की बेटी और नौकरशाह की पत्नी परवीन अमानुल्ला बड़े आराम से जिंदगी बिता सकती थीं. उन्होंने ऐसा नहीं किया. और आज वे देश की पहली और इकलौती आरटीआइ कार्यकर्ता हैं जो मंत्री भी हैं. यहां तक पहुंचने का रास्ता हालांकि काफी मुश्किल रहा. उन्होंने आम आदमी की लड़ाई लडऩे का फैसला किया. चुनाव की पूर्व संध्या पर इलाकों में घूमने से लेकर मतदाताओं को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के बारे में जागरूक करने और चीजों को दुरुस्त करने के लिए सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने तक उन्होंने हर संभव काम किया.

असुंता लकड़ा, 25 वर्ष
हॉकी खिलाड़ी, भारत की कप्तान
भारतीय महिला हॉकी टीम की सबसे सशक्त खिलाड़ी असुंता को मिडफील्ड में खेलना पसंद है. मैदान पर जब वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को छकाते हुए बेहतर और उम्दा शॉट लगाती हैं, तब उनकी फुर्ती देखने लायक होती है. 1995 में जब वे पांचवीं क्लास में पढ़ रही थीं, उसी समय उन्होंने हॉकी सीखने की ठानी. इसके लिए उन्हें दूसरे स्कूल में दाखिला चाहिए था.

रतन राजपूत
टीवी कलाकार
दिल्ली में तीन साल थिएटर करने के बाद उन्हें लगने लगा कि इसमें ज्यादा स्कोप नहीं है तो वे अपने घर पटना लौट रही थीं. जैसे ही इसकी जानकारी उनके गुरु को मिली तो उन्होंने रतन को मुंबई होकर घर लौटने का सुझाव दिया. मुंबई में वे इस मिजाज से घूम रही थीं कि जल्द ही घर लौटना है. जब वे मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन कर रही थीं, तभी ऑडिशन के लिए कॉल आया, जिसके बाद उनका ऐक्टिंग करियर चल निकला. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है, बल्कि पटना की रतन राजपूत के साथ ऐसा ही हुआ था.

आनंद कुमार, 39 वर्ष
सुपर-30 के संस्थापक
उनके जीवन में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का अवसर पूरे परिवार के लिए बड़ी उम्मीद लेकर आया था. जैसे-जैसे दाखिले का समय करीब आ रहा था वैसे-वैसे उनके सपने भी आकार लेने लगे थे. जाने में कुछ दिन ही बचे थे कि उनके पिता का असामयिक निधन हो गया. उनके पिता पटना आरएमएस रेलवे मेल सर्विस में लेटर शॉर्टर के पद पर थे. यह 1994 की बात है. पिता के निधन के बाद घर के आर्थिक हालात काफी खराब हो गए. मां जयंती देवी पापड़ बनाती थीं, और आनंद उन्हें दुकानों पर पहुंचाते थे.

प्रकाश झा, 60 वर्ष
फिल्म निर्माता और निर्देशक
बॉलीवुड में उनकी पहचान एक संजीदा निर्देशक के तौर पर है. बॉलीवुड के रंग में रंगने के बावजूद वे अपनी जन्मभूमि बिहार को अभी तक भूले नहीं हैं. उन्होंने बिहार दिवस के मौके पर राज्य सरकार को बिहार के गौरवशाली इतिहास पर बनाया गया 43 मिनट का वृत्तचित्र सुनहरी दास्तान...बिहार की भूमि से उपहार में दिया था. वे अपने सिनेमा में समाज की सचाई को दिखाने से कभी नहीं चूकते. उनकी पहचान बनाने में दामुल (1984), मृत्युदंड (1997), गंगाजल (2003) और अपहरण (2005) जैसी सामाजिक-राजनैतिक पृष्ठभूमि की फिल्मों ने अहम भूमिका निभाई है.

संप्रदा सिंह, 86 वर्ष
दवा उद्योग के शहंशाह
उन्होंने जिंदगी के 47 साल तक पैसे का कभी अच्छे से मुंह नहीं देखा. उनकी सारी कोशिशें नाकाम होती रहीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. आज संपदा सिंह 2,000 करोड़ रु. के कारोबार वाली अल्केम लैबोरेटरीज के मालिक हैं जो दवाओं की बड़ी निर्माता है और जहां 5,000 पेशेवर लोग काम करते हैं. उनकी कामयाबी की दास्तान दिखाती है कि नाकामियों का मतलब दुनिया का खात्मा नहीं है.

दीपिका कुमारी, 18 वर्ष
विश्व की टॉप तीरंदाज
जनवरी 2005 की बात है. दीपिका उस वक्त 12 साल की थीं और अपने नाना के घर झारखंड के लोहरदग्गा में रह रही थीं. गांव स्तर की एक तीरंदाजी प्रतिस्पर्धा हो रही थी. अचानक दीपिका की उसमें दिलचस्पी पैदा हो गई. उन्होंने कोशिश तो की लेकिन सफल नहीं हो पाईं. अगले हफ्ते रांची लौटने के बाद वे बेचौन थीं. उन्होंने अपने ऑटो चालक पिता शिव नारायण और अप्रेंटिस नर्स का काम करने वाली मां गीता को मजबूर किया कि वे उन्हें सरायकेला-खरसावां के तीरंदाजी प्रशिक्षण स्कूल ले जाएं.

हरिवंश, 56 वर्ष
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
जिन्हें इस बात पर अचरज हो कि अपने अखबार प्रभात खबर के लिए हरिवंश ने अखबार नहीं आंदोलन को टैगलाइन क्यों चुना, उन्हें संपादक की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए. हरिवंश बिहार के सिताब दियारा-जयप्रकाश नगर में 30 जून, 1956 को पैदा हुए थे जो जयप्रकाश नारायण की जन्मभूमि है. जब हरिवंश को रांची से अखबार निकालने का मौका मिला, तो उन्होंने इसी पृष्ठभूमि से टैगलाइन को उठा लिया. हरिवंश का जीवन बहुत कठिन रहा. उनका गांव गंगा और घाघरा के संगम पर स्थित था और साल में छह महीने पानी में डूबा रहता था.

इम्तियाज अली, 41 वर्ष
फिल्म निर्देशक और लेखक
झारखंड के जमशेदपुर के इम्तियाज अली की बतौर डायरेक्टर रॉकस्टार एक बड़ी हिट रही है जबकि उनकी लिखी फिल्म कॉकटेल ने भी बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़े हैं. दिल्ली में कॉलेज के दिनों से ही उन्हें थिएटर का शौक था. कॉलेज खत्म होते ही उन्होंने मुंबई का रुख किया और यहां कुछ साल तक टीवी सीरियल डायरेक्ट करने के बाद सोचा न था (2005) के साथ फिल्म निर्देशन में कदम रखा.

महेंद्र सिंह धोनी, 32 वर्ष
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान
जब दो दशक के लंबे अंतराल के बाद भारत ने उनकी कप्तानी में 2011 में क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता तो धोनी सदी के महानतम क्रिकेटरों की कतार में खड़े हो गए. यह सब कुछ कोई अचानक नहीं हुआ था. उन्होंने बहुत पहले ही खुद को बेहतर बल्लेबाज और विकेटकीपर के साथ-साथ एक मंजा हुआ कप्तान भी साबित कर दिया था, जिस पर भरोसा न करने का कोई कारण मौजूद नहीं था. इस बात को उन्होंने वर्ल्ड कप के दौरान उस समय भी साबित किया जब उन्होंने फाइनल मैच में 79 गेंदों में 91 रन बनाए. धोनी के नेतृत्व में भारतीय टीम ने 2007 में आइसीसी का ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप जीता था. वे हिंदुस्तान के न सिर्फ बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी हैं बल्कि वे झारखंड के सबसे बड़े आयकरदाता भी हैं.

राजकुमार गुप्ता, 36 वर्ष
फिल्म निर्माता और निर्देशक
हजारीबाग से दसवीं करने के बाद उन्होंने बोकारो से बारहवीं की पढ़ाई की और ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली आ गए. इसी दौरान राइटिंग का शौक पैदा हो गया. समय लिखने-पढऩे में गुजरने लगा. पिता बैंकर थे तो वे भी बैंकर बनना चाहते थे लेकिन लिखने के शौक ने मन में फिल्म डायरेक्टर बनने की ललक जगा दी. इसलिए ग्रेजुएशन खत्म होते ही मुंबई चले गए, हालांकि उनके मम्मी-पापा उनके इस कदम से कतई खुश नहीं थे. वे तो अपने बच्चे के लिए एक सुरक्षित करियर चाहते थे. वे बताते हैं, ‘‘मुंबई” आकर मैंने फिल्म और टीवी का एक पार्ट टाइम कोर्स किया और 2001-02 में मुझे कगार नाम के सीरियल में बतौर असिस्टेंट काम करने का मौका मिल गया.