9 जनवरी 2013: तस्वीरों में इंडिया टुडे | पढ़ें इंडिया टुडे

गुस्से से उबलता आम भारतीय
व्यवस्था के निकम्मेपन और सत्ता की अनैतिकताओं के शिकार मुल्क की चेतना में समा चुका है गलियों और सड़कों से उठा जनाक्रोश.

गुस्से से उबलता आम भारतीय
व्यवस्था के निकम्मेपन और सत्ता की अनैतिकताओं के शिकार मुल्क की चेतना में समा चुका है गलियों और सड़कों से उठा जनाक्रोश.

आक्रोश के इस युग में गांधी का मतलब
गांधी का नैतिक दृष्टिकोण एक ऐसी दुनिया में आज भी क्यों प्रासंगिक है, जहां सरकारों की वैधता को जनता की ओर से जबरदस्त चुनौती मिल रही है.

सपा के राज में बैकवर्ड का फायदा सिर्फ यादवों को: मायावती
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने कई महीनों के लंबे अंतराल के बाद मीडिया से तसल्ली से बातचीत करने का मन बनाया. इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता पीयूष बबेले से बातचीत में बीएसपी सुप्रीमो पूरी तरह से सर्वजन समाज के पहरुए के तौर पर नजर आईं.

न्यूजमेकर 2012: इस अंधेर नगरी में किसका सहारा
जहां युवा प्रदर्शनकारी चीख-चीख कर अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं बुजुर्ग नेता अपना मुंह खोलने के लिए पसोपेश में थे. देश बारूद पर बैठा है और देश के नागरिक इसे आग दिखाने के लिए तैयार हैं.

अरविंद केजरीवाल: आम आदमी का निर्भीक नायक
ताकतवर लोगों से लोहा लेने में केजरीवाल की निर्भीकता ने आम लोगों के बीच चिनगारी सुलगा दी है जिससे सत्ता प्रतिष्ठान के लोगों को खतरा पैदा हो गया है.

विनोद राय: खबरदार! वे देख रहे हैं
तमाम विवादों के बावजूद वे सच को सच कहने से रत्ती भर भी नहीं हिचके हैं. गुडग़ांव में नवंबर माह में आयोजित विश्व आर्थिक मंच कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने सीबीआइ और सीवीसी को ‘‘सरकार के हाथ का खिलौना” बताते हुए उन्हें संवैधानिक दर्जा दिए जाने की मांग की.

पी. चिदंबरम: बड़ी कुर्सी के आसपास
अपनी दुर्लभ मुस्कान के साथ पी. चिदंबरम (67) वर्ष 2012 का अंत कर रहे हैं. यह वह साल है जिसमें उन्हें न सिर्फ नॉर्थ ब्लॉक का अपना पसंदीदा मंत्रालय मिला है, बल्कि वे एक और ऊंचे पद के और करीब पहुंच गए हैं.

नितिन गडकरी: अपनी बारी गंवा चुका अवसरवादी
फरवरी से ही नितिन गडकरी की किस्मत गोता लगाने लगी थी. तब उत्तर प्रदेश में एक चुनावी सभा के दौरान ओवरलोड हो जाने के कारण वह मंच ही ढह गया, जिस पर गडकरी विराजमान थे.

मुलायम सिंह यादव: पीएम की कुर्सी के लिए कसरत
समाजवादी पार्टी (सपा) सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की हसरत को उसी वक्त पंख लग गए थे, जब 6 मार्च, 2012 को विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में पार्टी को रिकॉर्ड 224 सीटें मिलीं. उन्हें लगने लगा कि अप्रैल 1997 में प्रधानमंत्री की जिस कुर्सी के करीब पहुंचकर भी वे उस पर बैठने से वंचित रह गए, उसे पूरा करने का वक्त आ गया है.

प्रणब मुखर्जी: जनता के राष्ट्रपति
प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन फिर से अपनी राजनैतिक हैसियत हासिल कर चुका है. सरकार में वे यूपीए के मुख्य संकटमोचन थे. अब वे राष्ट्र के विवेक को बुलंद करने वाले बन गए हैं.

रॉबर्ट वाड्रा: खानदान की जागीर
रॉबर्ट वाड्रा के बारे में कुछ भी अबूझ नहीं है. और यह बात शीशे की तरह साफ हो गई जब देश के प्रथम दामाद पूरी तरह गलत वजहों से पेज 3 से पेज 1 पर पहुंच गए. 43 वर्षीय वाड्रा ने विचित्र असंवेदनशीलता और असामान्य अहंकार दिखाया है, यहां तक कि जिस परिवार में उन्होंने शादी की है, उसके स्तर से भी ज्यादा.

एम.सी. मैरी कॉम: जज्बे को सलाम
उनके असली जीवन की शुरुआत 29वें वर्ष में हुई. एम.सी. मैरी कॉम को अपनी जिंदगी के प्राइम टाइम में भी शोहरत पर निशाना लगाने की इजाजत नहीं दी गई—ओलंपिक में महिला मुक्केबाजों के लिए दरवाजा पहली बार लंदन 2012 में ही खोला गया.

जनरल वी.के. सिंह: फिसल गए तो हर गंगे
अमूमन सेना के पूर्व प्रमुख या तो गोल्फ कोर्स के ढलते सूरज में गुम हो जाते हैं या राजभवनों के आरामगाह जैसे ऊंचे ओहदे को हासिल कर लेते हैं. लेकिन मई, 2012 में 26वें सेना अध्यक्ष के रूप में रिटायर हुए 62 वर्षीय के वी.के. सिंह एक अनजानी जमीन पर कदम रख चुके हैं.

अनुराग कश्यप: हिट मैन
एक दशक पहले अनुराग कश्यप जब बॉलीवुड में संघर्ष कर रहे थे, फिल्म उद्योग के एक पुराने व्यक्ति ने उन्हें जबरदस्त सफलता मिलने की बात कही थी. उन्होंने भविष्यवाणी की, ‘‘उनके पास आइडिया की कमी नहीं होगी क्योंकि वे अपनी आसपास की दुनिया में काफी गहराई तक जमे हुए हैं.”

विजय माल्या: डूबती सल्तनत का बादशाह
गत 18 दिसंबर को 57 वर्षीय विजय माल्या ने एक करोड़ रु. की कीमत की तीन किलों की सोने की ईंटें तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ाईं. लेकिन भगवान भी शायद उनके व्यक्तिगत संपदा के इस नवीनतम भड़कीले प्रदर्शन को मंजूर नहीं करेंगे क्योंकि उनकी कर्ज में डूबी किंगफिशर एयरलाइंस के सैकड़ों कर्मचारियों को मई से ही तनख्वाह नहीं मिली है.

देश को दहलाने वाली दहशत: हौसले और हिम्मत से भरे मासूम चेहरे
नारी देह के शिकार पर निकले दरिंदों की ज्यादती और उनके दिए गहरे जख्मों के बावजूद इन्होंने जिंदगी, इंसाफ और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. साहस और चुनौती की छह जिंदा दास्तान, जिन्हें हम देशभर से लेकर आए हैं. ये कहानियां जीने का हौसला देती हैं.

15 लाख हत्याएं, फांसी 50 को
दिल्ली गैंगरेप के बाद से पूरा हिंदुस्तान एक सुर में एक ही मांग कर रहा है. रेप का कानून बदलो और रेपिस्ट को फांसी दो. पर सवाल यह है कि क्या सिर्फ कानून बदल देने या कानून कड़ा कर देने से रेप रुक जाएगा?

दिल्ली गैंगरेप: देश के गुनहगार
इस देश को शर्मसार करने वाले छह लोग गरीबी की जिंदगी बिता रहे थे. उनकी भयावह बर्बरता इस बात का संकेत है कि भारतीय शहरी जीवन के अंधेरे कोनों में क्या कुछ पल रहा है.

चुप्पी की साजिश को तोडऩा होगा
रायसीना हिल पर हुआ संघर्ष नौजवानों को संवेदनशील बनाएगा और लड़कियों को अपना गुस्सा दिखाने का एक मंच मुहैया कराएगा.

बीजेपी के उद्धारक क्यों हैं मोदी?
धर्म के क्षेत्र में रामदेव और राजनीति के क्षेत्र में मोदी जैसे पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों का उभार हुआ है. बीजेपी आज अगर मराठी ब्राह्मणों के निहित स्वार्थों की रक्षा करने वाली पार्टी बनकर नहीं रह गई है तो इसका श्रेय उसके भीतर मोदी सरीखे नेताओं के उभार को जाता है, जिन्हें कुछ लोग अब भी पार्टी का चेहरा मानने को तैयार नहीं हैं.

यात्रा संस्मरण: रिश्ते, तलाश और बहाना
भारत-पाकिस्तान के बीच भावनात्मक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध कितने जरूरी हैं, इस किताब को पढ़कर इसे महसूस किया जा सकता है.

'दो बार अनकंफर्टेबल महसूस किया है: चित्रांगदा
फिल्म इनकार में ऑफिस में यौन उत्पीडऩ की शिकार लड़की का किरदार निभा रहीं चित्रांगदा सिंह से उनके किरदार और महिलाओं के खिलाफ अपराधों के बारे में बातचीत.

मध्य प्रदेश: जुनून से बदलने लगी सूरत
तकनीक और सेवाभाव के अनोखे मेल ने हरदा जिले के आदिवासी छात्रों की किस्मत ही बदल डाली है.

रक्षा: फिजूलखर्ची का महकमा
लचर प्रक्रियाओं और पुराने तरीकों की वजह से रक्षा मंत्रालय सालाना 5,450 करोड़ रु. से ज्यादा के घाटे की मार झेल रहा.

और क्या है मोदी की मुट्ठी में?
उनके शपथ ग्रहण समारोह में कई भावी सहयोगी दलों की उपस्थिति 2014 के लिए एक संकेत हो सकती है. राज्य में उत्तराधिकारी को लेकर अटकलें.

मनोरंजन की दुनिया की तीन देवियां
साल 2012 में बोल्ड कारणों से सुर्खियां बटोरने के मामले में एक ही तिकड़ी ध्यान में आती है-सनी लियोनी, शर्लिन चोपड़ा और पूनम पांडे. उन्होंने मीडिया के हर आधुनिक स्वरूप का जमकर इस्तेमाल किया और अपार चर्चे लूटे.


आदिल हुसैन: शांत जज्बे का अभिनेता
आदिल हुसैन बॉलीवुड की ताजा खोज हैं. फिल्म निर्माताओं ने उनकी क्षमताओं को अभी खंगालना भर शुरू किया है.

राजस्थान: जो पाया, उसे लौटाया
गरीब छात्रों को स्टेनो का नि:शुल्क प्रशिक्षण देते हैं एक बैंककर्मी.

सोनपुर मेला: ग्लैमर के पीछे की दर्दनाक दास्तान
सोनपुर मेले में थिएटर बालाओं को देखने के लिए जमकर भीड़ जुटती है लेकिन परदे के पीछे की हकीकत रौंगटे खड़ी कर देने वाली है.

महाकुंभ: सबसे बड़े मेले के लिए सजता प्रयाग
महाकुंभ सिर पर है, दुनिया भर से श्रद्घालु और सैलानी जमा हो रहे हैं, लेकिन सरकार की तैयारियां अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं.

उत्तराखंड: कौन है मूल निवासी?
मूल निवासी के सवाल पर उत्तराखंड के दो प्रमुख राजनैतिक दलों में फूट.