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क्या बहराइच में भेड़िये ‘बदला’ ले रहे हैं!

उत्तर प्रदेश के बहराइच की महसी तहसील में भेड़ियों ने अब तक नौ लोगों को अपना निवाला बनाया तो वहीं 35 से अधिक लोगों को घायल कर दिया. सदियों से यहां पाए जा रहे इस जानवर की प्रवृत्तियों में आ रहे इस बदलाव से आम लोगों के साथ-साथ वन्य जीव विशेषज्ञ भी हैरान हैं

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 31 अगस्त , 2024

राजधानी लखनऊ से करीब 150 किलोमीटर दूर बहराइच जिले में घाघरा और कतर्नियाघाट के जंगलों के बीच महसी तहसील के 50 से अधिक गांव दशकों से बाघ और तेंदुओं के आतंक के बीच जीवन बसर करते आए हैं. दो साल पहले इन्हीं जंगलों से बाहर निकलकर गांव की ओर आए बाघ ने तीन से अधिक लोगों को अपना निवाला बनाया था. 

इस साल जनवरी से अबतक तक तेंदुओं ने इन्हीं गांवों के चार लोगों को मार डाला है और 17 को घायल कर दिया है. लेकिन बाघ और तेंदुओं की चहलकदमी के बीच जीना सीख चुके महसी के गांव वालों के लिए अब भेड़ियों का हत्यारा झुंड आतंक का पर्याय बन चुका है. वैसे तो घाघरा नदी के किनारे बसे इस इलाके में सदियों से भेड़िये रहते आए हैं लेकिन इनका आदमखोर मिजाज यहां के लोगों के लिए नया है. 

इसी साल इन्हीं भेडि़यों ने अबतक नौ लोगों को अपना निवाला बनाया तो वहीं 35 से अधिक लोगों को घायल कर दिया. बारिश शुरू होने के साथ 17 जुलाई से 28 अगस्त के बीच ये भेड़िये और खूंखार हो गए और इस दौरान इन्होंने सात बच्चों को मारा तो 25 को घायल कर दिया. अभी तक के हालात को देखें तो मात्र चार से छह भेड़िये ही पूरे सिस्टम पर भारी पड़ रहे हैं. 

17 जुलाई को हुए हमले के बाद से जिला प्रशासन, पुलिस व वन विभाग लगातार भेड़ियों को पकड़ने व हमले रोकने का दावा कर रहा है. लेकिन पूरी तरह से सफलता नहीं मिल पायी है. 30 अगस्त को राज्य सरकार की ओर से जारी एक प्रेस बयान में कहा गया है कि निवासियों की सुरक्षा के लिए, वन विभाग ने 22 टीमों को तैनात किया है जो लगातार 75 किलोमीटर के क्षेत्र में गश्त और तलाशी कर रही हैं. वन विभाग की टीमों ने छह हत्यारे भेड़ियों को चिह्नित किया है जिनमें से चार पकड़े भी जा चुके हैं. 

वन्य जीव विशेषज्ञों की मानें तो भेड़िया काफी चालाक जानवर होता है और ये आमतौर पर खरगोशों, बंदरों जैसे छोटे जानवरों का शिकार करते हैं. भेड़िये नदी के कछार में मांद बनाकर स्थानीय जंतुओं का शिकार करते हैं. भेड़िया मनुष्यों पर बहुत की कम हमले करता है. ऐसे में बहराइच जिले के इन इलाकों में वन्यजीव अधिकारियों को परेशान करने वाला सवाल यह है कि भेडि़यों के स्वभाव में अब क्या बदलाव हो गया जो वे खूनी आतंक का पर्याय बन गए हैं. 

हाल ही में भेड़ियों के हमलों के पीछे के कारणों का अध्ययन करने वाले वन विभाग और वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि जंगलों में घुसने वाली उफनती नदी ने भेड़ियों के आवास को बाधित कर दिया है, जिससे वे मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं. भेड़िये एक क्षेत्र विशेष में रहने वाले जानवर हैं और उनके क्षेत्र अक्सर नदियों के आसपास केंद्रित होते हैं, जो उनके लिए शिकार और पानी का एक स्रोत होते हैं. सेवानिवृत्त क्षेत्रीय वन अधिकारी उदय प्रताप सिंह जो अब यहां खेती-किसानी करते हैं, उनके मुताबिक, “जब नदियों में बाढ़ आती है तो भेड़ियों को नए भोजन स्रोतों की तलाश में अपने क्षेत्रों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इसी खोज में वे कई बार आसान शिकार के लिए गांवों में घुसते हैं.” 

बहराइच के क्षेत्रीय वन अधिकारी अजीत कुमार सिंह के मुताबिक बाढ़ के पानी ने पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे हिरण और छोटे स्तनधारी जैसे शिकार की प्रजातियां ऊंची ज़मीन पर चली गई हैं. उनकी अनुपस्थिति में, भूख से जूझ रहे भेड़िये मवेशियों और कुछ दुखद मामलों में मनुष्यों सहित आसान शिकारों की ओर मुड़ गए हैं क्यों‍कि यह उनके अस्त‍ित्व का मामला है. सिंह यह भी कहते हैं, “जब प्राकृतिक शिकार उपलब्ध नहीं होता तो भेड़ियों के पास कम विकल्प बचते हैं. बाढ़ ने कुछ ऐसी परिस्थ‍ितियां पैदा कर दी हैं जिसने उन्हें ऐसे जोखिम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है जो उनकी आम प्रवृत्ति नहीं है.” 

हालांकि सरकारी दलीलों से स्थानीय लोग इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उदय प्रताप बताते हैं, “बाढ़ तो हर साल आती है लेकिन भेड़ियों का इतना खूंखार रूप तो पहली बार देखने को मिल रहा है. मानव के साथ भेड़ियों का संघर्ष सामान्य घटना नहीं है.” हालांकि वन्य जीव विशेषज्ञों के मुताबिक भेड़िया काफी चालाक और ‘बदले’ की भावना वाला जानवर है. जबकि शेर-बाघ और तेंदुओं में बदला लेने की प्रवृत्ति‍ नहीं होती.  सेवानिवृत्त क्षेत्रीय वन अधिकारी उदय प्रताप बताते हैं, “भेडि़ए के बच्चे को मारने पर कुनबे का नर या मादा मुखिया उग्र होकर हमले करते हैं. महसी में भी हो सकता है किसी ने इनके बच्चे को नुकसान पहुंचाया हो, जिसके बाद से ये सभी बदले की भावना से इंसानों पर हमले कर रहे हों.” 

स्थानीय लोगों में यह चर्चा भी है कि आदमखोर भेड़िये महसी इलाके में जहां पर सक्रिय हैं वहां जनवरी में एक खेत में ट्रैक्टर से जुताई के दौरान उनके दो बच्चों की मौत हो गई थी. इस खेत में भेड़ियों की मांद थी. इसके बाद भेड़िये हमलावर हुए और जनवरी में ही दो लोगों को मार डाला था. वन्य जीव विशेषज्ञों के मुताबिक झुंड में शिकारी भेड़िये रणनीतिक तरीके से हमला करते हैं. झुंड का एक सदस्य ध्यान बंटाने के लिए हमला करता है, जबकि दूसरा ध्यान बंटाने का फायदा उठाकर बच्चे को उठा लेता है. 29 अगस्त को पकड़े गए आखिरी यानी चौथे भेड़िये समेत सभी पकड़े गए भेड़ियों की जांच करने वाले पशु चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. दीपक वर्मा के मुताबिक यह दावा करना मुश्किल है कि पकड़े गए भेड़ियों ने ही लगातार हमले किए हैं. 

दूसरी ओर, भेड़ियों को पकड़ने के लिए विशेष टास्क फोर्स टीम का नेतृत्व कर रहे बाराबंकी के डीएफओ आकाशदीप बधावन ने बताया कि उन्होंने वरिष्ठ वैज्ञानिकों से सलाह ली है और भेड़ियों के रेबीज से संक्रमित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. बहराइच के क्षेत्रीय वन अधिकारी अजीत कुमार सिंह बताते हैं, “हमने अन्य विशेषज्ञों से भी सलाह ली है और शेष दो भेड़ियों को पकड़ने के बाद इनके खूनी होने के कारणों का पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया जाएगा.” 

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