scorecardresearch

अबकी बार किसके साथ याराना निभाएगा कैराना?

कैराना लोकसभा सीट की सामान्य पहचान लगातार चुनावों में किसी एक नेता के साथ सुर न मिलाने की है. हर लोकसभा चुनाव में कैराना अपना प्रतिनिधि बदल देती है

कैराना सीट से बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप चौधरी (बाएं) और सपा उम्मीदवार इकरा हसन (दाएं)
कैराना सीट से बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप चौधरी (बाएं) और सपा उम्मीदवार इकरा हसन (दाएं)
अपडेटेड 3 अप्रैल , 2024

पहले चरण के लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान के लिए तैयार पश्च‍िमी यूपी की कैराना लोकसभा सीट का महाभारत काल से पौराणिक जुड़ाव भी है. यहां के लोग मानते आ रहे हैं कि महाभारत काल में अंगराज कर्ण ने इसे कर्णनगरी के रूप में बसाया था. आजादी की लड़ाई में कैराना देशभक्तों की शरणस्थली रहा था. 

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले मराठों को छुपने के लिए कैराना ने जगह दी थी. कैराना वह इलाका है जहां उस्ताद अब्दुल करीम खां के जरिए संगीत के किराना घराने की शुरुआत हुई थी. वह घराना जिसने देश में खयाल गायकी को एक नया रंग दिया था. भीमसेन जोशी इसी घराने के शार्गिद थे, जिन्होंने 'मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा..' को आवाज दी थी. 

पर कैराना लोकसभा सीट की सामान्य पहचान लगातार चुनावों में किसी एक नेता के साथ सुर न मिलाने की है. हर लोकसभा चुनाव में कैराना अपना प्रतिनिधि बदल देती है. कैराना लोकसभा सीट वर्ष 1962 में अस्तित्व में आई. अब तक यहां 16 चुनाव हो चुके हैं, लेकिन केवल दो बार ही ऐसा हुआ, जब यहां के मतदाताओं ने किसी पार्टी को लगातार दो चुनावों में जिताया.

वर्ष 1989 और 1991 में जनता दल से हरपाल सिंह जीते तो 1999 और 2004 में रालोद के हिस्से लगातार दो जीत आई. हालांकि दोनों बार उम्मीदवार भी अलग ये. 28 सितंबर वर्ष 2011 में मुजफ्फरनगर से अलग कर शामली जिला बना जहां की एकमात्र संसदीय सीट कैराना है. कैराना निर्वाचन क्षेत्र में दो जिलों में फैले पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. गंगोह और नकुड़ सहारनपुर में हैं जबकि शामली, कैराना और थानाभवन शामली जिले में हैं.

कैराना लोकसभा सीट मुस्लिम वोटों का बड़ा गढ़ है. यहां पर करीब 17 लाख मतदाताओं में सर्वाधिक छह लाख मुस्लिम है. एक अनुमान के मुताबिक, 1.50 लाख जाट, 2.50 लाख दलित, 1.30 लाख गुर्जर, 1.35 लाख सैनी, 1.25 लाख कश्यप, 50 हजार ठाकुर व 60 हजार से ज्यादा वैश्य वोट है. बीते चुनावों पर नजर डालें तो वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव में गयूर अली खान और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर शफाकत अली चुनाव जीते थे. 1980 के चुनाव में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी जनता पार्टी (एस) के टिकट पर सांसद चुनी गईं. 

1984 में कांग्रेस के चौधरी अख्तर हसन जीते. वर्ष 1989 के बाद कांग्रेस हाशिए पर पहुंचती गई. नब्बे के दशक में उठी राम लहर ने भाजपा को संजीवनी दी. 1991 और 1996 में भाजपा प्रत्याशी उदयवीर सिंह दूसरे नंबर पर थे, लेकिन 1998 में पार्टी के वीरेंद्र वर्मा ने सीट जीत ली. 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा को अख्तर हसन के बेटे मुनव्वर हसन ने पहली जीत दिलाई. 98 में भाजपा को जीत मिली लेकिन अगले दो चुनाव रालोद के खाते में गए. 

राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और भाजपा ने तीन-तीन बार कैराना पर जीत दर्ज की है. सपा और बसपा सिर्फ एक बार जीते हैं. 2009 में कैराना जीतने का बसपा सुप्रीमो मायावती का अधूरा सपना पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी तवम्सुम हसन ने पूरा किया. वर्ष 1984 में कैराना लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव में उतरने वाली मायावती को कांग्रेस की लहर में तीसरे पायदान पर ही संतोष करना पड़ा था.

राजनीतिक रूप से कैराना हसन परिवार और बाबू हुकुम सिंह के परिवार का गढ़ रहा है. कैराना के राजनीतिक माहौल को वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे में बदल दिया. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की लहर चली और 2014 में भाजपा के हुकुम सिंह 2.36 लाख वोटों से चुनाव जीते, जो अब तक का यहां का सबसे बड़ा अंतर है. वर्ष 2015 में कैरना के तत्कालीन सांसद बाबू हुकुम सिंह ने अपराधीकरण की वजह से शामली से व्यवसायियों के पलायन का मुझ उठाया था, जिस पर सियासत खूब गरमाई थी. 

तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जांच के लिए एक समिति का गठन किया था. समिति ने अपनी रिपोर्ट में पलायन जैसी घटना को नकारा जबकि भाजपाई लगातार इस मुद्दे को धार देते रहे. पलायन का मुद्दा वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव, 2019 लोकसभा एवं 2022 विधानसभा चुनाव में भी गर्माहट पैदा करता रहा. हुकुम सिंह के निधन के बाद वर्ष 2018 में हुए उपचुनाव में विपक्षी एकता का प्रयोग हुआ. बसपा, रालोद, सपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. हुकुम सिंह परिवार के साथ सहानुभूति होने के बावजूद हुकुम की बेटी मृगांका पर तबस्सुम हसन करीब 45 हजार वोटों से भारी पड़ीं. यह अलग बात है कि 2019 के आम चुनाव में प्रयोग धराशायी हो गया और भाजपा के प्रदीप चौधरी 92 हजार वोट से जीत गए.

2024 का रण अनौपचारिक तौर पर सज चुका है. एक तरफ सपा-कांग्रेस का गठबंधन है तो दूसरी तरफ भाजपा-रालोद एक साथ हैं. पिछला चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली बसपा अबकी बार एकला चलो की राह पर है. सपा ने तबस्सुम हसन की बेटी इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है. उनके भाई नाहिद हसन सपा के टिकट पर कैराना से विधायक हैं. 

लोकसभा क्षेत्र की बाकी चार विधानसभा सीटों में 2 भाजपा और 2 रालोद के पास है. कैराना से सांसद और भाजपा उम्मीदवार प्रदीप चौधरी के प्रदर्शन पर स्थानीय लोगों की राय अलग-अलग है, कुछ लोगों ने क्षेत्र में उनकी कम यात्राओं पर निराशा व्यक्त की है. कथित तौर पर, चौधरी की तलाश में कैराना शहर में 'लापता व्यक्ति' के पोस्टर भी लगाए गए थे. 

कैराना के किवाना गांव के निवासी सुभाष मलिक बताते हैं, "हमारे सांसद ने हमारे गांव को गोद लिया था, लेकिन विकास कार्यों की देखरेख के लिए शायद ही कभी आए." राष्ट्रीय लोक दल और भाजपा के बीच गठबंधन से गुर्जर समाज के प्रदीप चौधरी को बड़ी आस है. खासकर कैराना, थानाभवन और शामली सहित जाट बहुल इलाकों में जहां भाजपा को अतीत में नुकसान का सामना करना पड़ा था. कैराना के एक वरिष्ठ वकील प्रदीप सिंह बताते हैं, "रालोद का समर्थक जाट समुदाय पिछले कई वर्षों से प्रदीप चौधरी के विरोध में खड़ा था. इसी ने कैराना में प्रदीप चौधरी के खिलाफ पोस्टर लगाए थे. ये मतदाता कितने सहज रूप से चौधरी के साथ जुड़ते हैं उसी से उनका भविष्य तय होगा."

वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन की प्रत्याशी इकरा हसन, पूर्व सांसद तबस्सुम बेगम की बेटी है. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक मामले में इकरा के भाई और तत्कालीन सपा उम्मीदवार नाहिद हसन को जेल जाना पड़ गया था. आदर्श आचार सहिंता के दौरान वह पर्चा दाखिल कर गए थे. चुनाव के दौरान जेल में बंद नाहिद हसन का सहारा बनीं उनकी छोटी बहन इकरा हसन. इकरा ने बड़े ही सलीके के साथ घर-घर जाकर लोगों से वोट मांगे और बड़े भाई को चुनाव में विजय हासिल कराई. 

नाहिद हसन ने कैराना विधानसभा से लगातार तीन चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाई. इस बार इकरा हसन लोकसभा चुनाव के दौरान घर-घर जाकर खुद के लिए वोट मांग रही हैं. इकरा को स्थानीय गुर्जर-मुस्ल‍िम के साथ अन्य तबकों में अच्छा समर्थन मिल रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत समीकरण मजबूत करने के लिए सपा ने कैराना लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को साधने के लिए कश्यप बिरदारी पर दांव लगा दिया. 

सपा ने शामली के किरणपाल कश्यप को विधानसभा परिषद प्रत्याशी निर्वाचित कराकर कैराना क्षेत्र के एक लाख से अधिक कश्यप मतदाताओं को सकारात्मक संदेश दिया है. मुलायम सिंह यादव के चहेतों में शामिल किरण पाल कश्यप का नाम पार्टी के वफादार नेताओं में शामिल रहा है. किरणपाल 1980 में बनारसी दास के नेतृत्व में प्रदेश सरकार में मत्स्य पालन विभाग में डायरेक्टर थे. यह वर्ष 2002 में थाना भवन से विधायक भी रहे थे. 

बसपा ने कैराना लोकसभा सीट की लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है. बसपा ने कैराना लोकसभा सीट पर शामली के गांव भावसी निवासी बीएसएफ में कांस्टेबल के पद से स्वैच्छ‍िक सेवानिवृत्त‍ि लेने वाले जवान श्रीपाल राणा को उतारा है. दलित और ठाकुर कार्ड खेलकर बसपा कैराना लोकसभा सीट पर पार्टी का 15 साल का सूखा खत्म करना चाहती है. लेकिन बसपा की रणनीति ने कैराना लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार प्रदीप चौधरी की मुश्क‍िलें बढ़ा दी हैं. 

प्रदीप सिंह बताते हैं, "भाजपा का समर्थक गुर्जर वोट बंट रहा है. रालोद के साथ रहा सरकार विरोधी पूरा जाट वोट भी भाजपा को मिलने में संशय है. बसपा ने अगर ठाकुर मतदाताओं पर सेंधमारी की तो कैराना में भाजपा की राह मुश्क‍िल हो जाएगी." इस तरह भाजपा उम्मीदवार और सांसद प्रदीप चौधरी के सामने लगातार दो बार चुनाव जीतकर कैराना लोकसभा सीट का मिथक तोड़ने की बेहद कठिन चुनौती है. 

Advertisement
Advertisement