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निशांत की राजनीति में एंट्री; JDU को बचाने की कवायद या बिहार में सत्ता हस्तांतरण की तैयारी?

बिहार में नीतीश कुमार के बेटे निशांत के JDU ज्वाइन करने की चर्चा एक बार फिर से तेज है. कहा जा रहा है कि खरमास के बाद वे कभी-भी पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं

एक पारिवारिक आयोजन के दौरान निशांत
अपडेटेड 10 दिसंबर , 2025

इस छह दिसंबर को JDU ने अपने सदस्यता अभियान की शुरुआत की है. पार्टी ने लक्ष्य रखा है कि इस अभियान के तहत राज्य में एक करोड़ लोगों को सदस्य बनाया जाएगा. इस अभियान की शुरुआत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सदस्यता दिलाने से की गई है, मगर पार्टी के लोग जिस व्यक्ति को सदस्य बनाए जाने का लगभग एक साल से इंतजार कर रहे हैं, वह अभी भी पार्टी से दूर है. उस व्यक्ति का नाम निशांत कुमार है, यानी नीतीश कुमार के बेटे.

पिछले एक साल से निशांत के JDU ज्वाइन करने की चर्चा बिहार के राजनीतिक हलकों में हैं. पहले खबर आई थी कि इस साल होली के बाद उन्हें पार्टी ज्वाइन कराकर बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी. फिर पूरे साल कई-कई बार ऐसी खबरें उड़ती रहीं, कयास लगते रहे, मगर निशांत पार्टी से दूर ही रहे. बस पिता की जीत की कामना करते हुए मीडिया के सामने आते-जाते रहे. 

यह साल बीतते-बीतते एक बार फिर से निशांत के JDU ज्वाइन करने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा है और पहली बार JDU के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने उनके सामने मीडिया से कहा है, “पार्टी के लोग, पार्टी के शुभचिंतक और समर्थक सबलोग चाहते हैं कि वे पार्टी में आकर काम करें. हम सब लोग चाहते हैं, अब इन्हीं को फैसला लेना है कि ये पार्टी में आने का फैसला कब लेते हैं और कब काम करते हैं.”

नीतीश को JDU की सदस्यता दिलाते पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा

पांच दिसंबर को पटना एयरपोर्ट पर जब संजय कुमार झा मीडिया के सामने यह सब कह रहे थे तब निशांत भी उनके साथ थे. संजय कुमार झा के इस बयान के बाद जाहिर है पत्रकारों ने अपने माइक निशांत की तरफ मोड़ दिए, मगर निशांत हर बार की तरह इस बार भी मामले पर चुप ही रहे और अपने पिता की जीत पर टिप्पणी करके आगे बढ़ गए.

हालांकि इस बार बिहार के राजनीतिक टिप्पणीकारों को लगता है कि संजय कुमार झा के इस बयान का सीधा मतलब है कि नीतीश अब राजी हैं और अब बस खरमास बीतने का इंतजार है. अगले साल 15 जनवरी तक निशांत JDU की सदस्यता ले सकते हैं और फिर जल्द उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. 

मगर क्या निशांत सचमुच JDU की सदस्यता लेने वाले हैं? अगर हां, तो इसकी वजह क्या है? क्या उनके JDU की सदस्यता लेने से पार्टी दीर्घायु हो जाएगी? और क्या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में JDU की सहयोगी पार्टी BJP निशांत के राजनीति में आने की खबर से सहज है? ये ऐसे बड़े सवाल हैं, जो बिहार की राजनीति में दिलचस्पी लेने वालों को मथ रहे हैं. 

इस साल की शुरुआत में निशांत की राजनीति में आने की खबर ब्रेक करने वाले इंडियन एक्सप्रेस  के सीनियर असिस्टेंट एडिटर संतोष कुमार सिंह कहते हैं, “निशांत को राजनीति में लाने की चर्चा की शुरुआत पार्टी के एक धड़े की तरफ से शुरू की गई, जिसमें श्रवण कुमार जैसे नेता और नीतीश के परिवार के लोग थे, जिसे बाद में JDU के आधारभूत वोटरों के एक बड़े धड़े का समर्थन मिला. मगर नीतीश राजी नहीं थे. वे उस समाजवादी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ना चाहते थे, जिसके तहत अपने जीवन में कोई नेता अपने बच्चों को राजनीति में नहीं आने देता. मगर क्षेत्रीय दलों की यह विडंबना है कि उन्हें परिवार के लोग ही संभाल सकते हैं और इस बात को लेकर JDU में धीरे-धीरे स्वीकार्यता बनी और ऐसा लगता है कि शायद अब नीतीश भी सहमत हो गए हैं. ऐसे में लगता है कि निशांत का राजनीति में आना अब वक्त की बात है. शायद खरमास के बाद उनकी एंट्री हो जाए.”

अपने पिता के साथ निशांत

दरअसल निशांत के JDU ज्वाइन करने के पीछे पार्टी के उन नेताओं का असुरक्षा बोध काम करता है, जिन्हें लगता है कि शायद नीतीश के बाद पार्टी खत्म न हो जाए. इसमें नीतीश कुमार की जाति के लोग हैं और उनके गृह जिला नालंदा के पार्टी के समर्थक हैं. इनके साथ-साथ नीतीश के परिवार के लोग और खासकर निशांत के ननिहाल के लोग इस विचार को ज्यादा प्रमुखता से आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसे लोग भले ही JDU में महत्वपूर्ण पदों पर नहीं हैं, मगर उन्हें हमेशा से लगता है कि JDU उनकी पार्टी है. वे उन लोगों से खतरा महसूस करते हैं, जो पार्टी में शीर्ष पदों पर हैं, मगर उन्हें ऐसा लगता है कि वे नीतीश के भरोसेमंद नहीं हैं. 

ऐसे लोग पिछले एक साल से निशांत के JDU संभालने की चर्चा चलाते रहे हैं. निशांत से पहले नीतीश के स्वजातीय पूर्व आइएएस अधिकारी मनीष कुमार वर्मा का नाम नीतीश के उत्तराधिकारी के तौर पर सामने आया. इन्हें नीतीश की जाति के पढ़े-लिखे तबके का बड़ा समर्थन था.वे पार्टी में शामिल भी हुए, उन्हें राष्ट्रीय महासचिव का पद भी दिया गया. मगर जब उन्होंने संगठन को मजबूत करने का अभियान शुरू किया तो उन्हें रोक दिया गया. दिसंबर, 2024 में जब मनीष कुमार वर्मा की गतिविधियां सुस्त पड़ीं तब निशांत का नाम तेजी से उभरने लगा और माना जाने लगा कि JDU में अब उत्तराधिकारी के प्लान बी पर काम चलने लगा है.

कहा यह भी जाता है कि नीतीश के करीबी नेता जिनमें संजय कुमार झा, ललन सिंह, विजय कुमार चौधरी और अशोक कुमार चौधरी जैसे नेताओं का नाम आता है, मनीष कुमार वर्मा को आगे बढ़ाने और उन्हें नीतीश का उत्तराधिकारी बनाए जाने के नाम पर सहमत नहीं थे. दावा किया जाता है कि ये चारो नीतीश के करीबी होने के कारण कहीं न कहीं खुद को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखने लगे थे. एक वक्त में अशोक कुमार चौधरी ने तो खुद को नीतीश का 'मानस पुत्र' भी कहना शुरू कर दिया था. मगर JDU के कोर समर्थकों ने उन्हें कभी नीतीश के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया. ऐसे लोगों का मानना है कि नीतीश का उत्तराधिकारी या JDU की कमान संभालने वाला वही हो सकता है, जो JDU के कोर वोटरों यानी कुर्मी, कुशवाहा, धानुक या अति पिछड़ी जातियों से आता हो. इनमें से तीन सवर्ण हैं और चौथा दलित. 

इन्हीं वजहों से 'सेफ गेम' के तौर पर निशांत का नाम सामने लाया गया और अब यह माना जा रहा है कि नीतीश के कोर वोटरों के साथ-साथ उनके करीबी इन चार नेताओं ने भी यह मान लिया है कि निशांत ही पार्टी की विरासत को संभाल और आगे बढ़ा सकते हैं.

ऐसा क्यों हुआ, इस मसले पर टिप्पणी करते हुए टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र कहते हैं, “अगर कोई पार्टी किसी एक व्यक्ति के करिश्मे पर आधारित हो तो उसमें आमतौर पर किसी बाहरी व्यक्ति को उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार्यता नहीं मिलती, वहां अमूमन परिवार से जुड़े व्यक्ति को ही स्वीकारा जाता है, चाहे वह योग्य हो या न हो. यह हमने कई पार्टियों में देखा है, चाहे वह करुणानिधि की पार्टी हो, राजद हो, समाजवादी पार्टी हो, मायावती और ममता बनर्जी की पार्टी में भी ऐसी ही स्थिति बनती नजर आ रही है. दूसरा नेतृत्व आए तो पार्टी के टूटने का खतरा रहता है. इसलिए ऐसा लग रहा है कि JDU भी आखिरकार इस फॉर्मूले को ही स्वीकार कर रही है.”

मगर इसके साथ-साथ ये बड़े सवाल भी सामने हैं कि अब तक राजनीति से दूर से रहे निशांत जिनमें राजनीतिक अनुभव की साफ कमी दिखती है, जो मीडिया के सामने अपने पिता की जीत की अपील और बधाई देने के सिवाय कोई और टिप्पणी नहीं करते, क्या पार्टी को बचा पाएंगे, आगे बढ़ा पाएंगे. इस हवाले से नीतीश कुमार के करीबी लोगों का कहना है कि निशांत को एक राजनेता के रूप में तैयार करने की लगातार तैयारी चल रही हैं. इसमें पार्टी से जुड़े कुछ लोग हैं, तो कुछ दूसरे लोग भी हैं, जिनके नीतीश से पारिवारिक और करीबी रिश्ते हैं. इनमें कुछ चिकित्सकों के भी नाम चर्चा में हैं. संतोष कुमार सिंह बताते हैं कि उन्हें बिहार की राजनीति और समाज से जुड़ी किताबें भी पढ़ने के लिए दी जा रही हैं.

कहा यह भी जा रहा है कि उनके साथ कुछ भरोसेमंद राजनेता और अधिकारियों की टीम लगाई जा सकती है, जो उनके सलाहकार के तौर पर काम करे. इनमें मनीष कुमार वर्मा के नाम की चर्चा सबसे अधिक होती है. अब जबकि यह तय है कि निशांत ही नीतीश के उत्तराधिकारी हो सकते हैं, नीतीश के करीबी राजनेताओं ने भी निशांत से अपनी नजदीकी बढ़ाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. पिछले दिनों जदयू के एक बड़े नेता की तरफ से निशांत को पटना में फ्लैट गिफ्ट करने की खबर भी एक मीडिया संस्थान ने प्रकाशित की थी. खबर यह भी है कि एक दूसरे करीबी नेता ने भी निशांत को दिल्ली में फ्लैट गिफ्ट किया है. इन दोनों नेताओं की JDU में करीब-करीब बराबर की हैसियत है. 

अब सवाल यह है कि निशांत की JDU में एंट्री अगर होती है तो किस रूप में होगी? क्या उन्हें बस सदस्यता दी जाएगी, या पार्टी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी देगी? या फिर उन्हें सीधे सरकार में बड़ा पद दिया जाएगा?

जानकार मानते हैं कि आखिरकार निशांत को सरकार में सीएम या डिप्टी सीएम बनाए जाने की ही योजना है. इसमें डिप्टी सीएम बनाए जाने की बात सबसे अधिक चर्चा में है. कहा यह जा रहा है कि चूंकि नीतीश खुद सत्ता में रहते हुए निशांत को सरकार में कोई पद देने के पक्ष में शायद ही हों. इसलिए फिलहाल निशांत पार्टी में ही रहेंगे. हो सकता है पार्टी में कोई प्रतीकात्मक पद भी मिल जाए. मगर वे सरकार में तभी आएंगे, जब नीतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ेंगे.

इस तरह BJP के शीर्ष नेता अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं, "यह एक तरह से नीतीश की विदाई का प्लान है. स्वास्थ्य या दूसरे कारणों से नीतीश जब कुर्सी छोड़ेंगे तो सरकार में स्थितियां बदल जाएंगी. सीएम BJP का होगा और एक या दो डिप्टी सीएम JDU के. उनमें से एक निशांत होंगे, यह लगभग तय है और यही BJP का बिहार में सत्ता के स्मूद ट्रांसफर का फार्मूला है."

मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश इस फॉर्मूले पर राजी हैं? वे नीतीश जिनके दम पर केंद्र औऱ बिहार दोनों जगह एनडीए की सरकार है. इस पूरी कहानी में असल सवाल यही है.

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