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क्या जितिन को मिलेगा पीलीभीत की जनता का प्रसाद?

पीलीभीत लोकसभा सीट पर 35 वर्ष बाद पहली बार मेनका गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं. वर्ष 2019 में वरुण गांधी रिकॉर्ड मतों से जीते थे. इस बार भाजपा ने जितिन प्रसाद को दिया टिकट

एक जनसभा के दौरान पीलीभीत के भाजपा उम्मीदवार और यूपी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद
एक जनसभा के दौरान पीलीभीत के भाजपा उम्मीदवार और यूपी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद
अपडेटेड 4 अप्रैल , 2024

एक तरफ उत्तराखंड तो दूसरी तरफ नेपाल की सीमा से लगा पीलीभीत जिला कई, नई राजनीतिक रवायतों की शुरुआत का गवाह रहा है. जंगल और टाइगर रिजर्व यहां की पहचान हैं, तो बांसुरी की मधुर तान के देश-दुनिया के लोग दीवाने हैं. पहले आम चुनाव से लेकर 1976 तक यहां कांग्रेस का दबदबा रहा. 

1977 में जरूर जनता पार्टी का उम्मीदवार विजयी हुआ, लेकिन 1980 में सीट फिर कांग्रेस की झोली में चली गई. 1989 में इस सीट से भारतीय राजनीति के परिदृश्य में नया नाम उभरा, मेनका संजय गांधी का. पहले चुनाव में ही मेनका ने भारी मतों से कांग्रेस को शिकस्त दी थी. हालांकि 1991 के मध्यावधि चुनाव में उन्हें झटका लगा. 

उसके बाद 1996 से अब तक यह सीट मेनका के परिवार मे ही रही. 2004 तक वह खुद पीलीभीत लोकसभा सीट से लड़ीं. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में मेनका ने अपने बेटे वरुण गांधी को लड़ाया भी और वह जीते भी. 2014 में मेनका पीलीभीत वापस लौटीं और भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर भारी मतों से फिर जीतीं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मेनका सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने गईं और पीलीभीत की सीट पर वरुण गांधी लड़े. 

सुल्तानपुर और पीलीभीत लोकसभा सीट पर मां-बेटे की जीत का क्रम जारी रहा. लेकिन वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पीलीभीत लोकसभा सीट पर वरुण गांधी की दावेदारी पर संशय के बादल छाए हुए थे. वरुण पिछले काफी वर्षों से भाजपा सरकारों की नीतियों के खिलाफ मुखर थे. 

24 मार्च को भाजपा ने यूपी में अपने उम्मीवारों की दूसरी लिस्ट जारी की तो पता चला कि 35 वर्षों से जारी पीलीभीत लोकसभा सीट पर मेनका गांधी परिवार का सफर अब थम गया है. भाजपा ने वरुण गांधी का टिकट काटकर योगी सरकार में लोक निर्माण विभाग के कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद को पीलीभीत लोकसभा सीट से भाजपा का उम्मीदवार घोषित कर दिया.

खीरी या धौरहरा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की दावेदारी कर रहे जितिन प्रसाद को पीलीभीत से टिकट मिलना हैरानी भरा था. जितिन प्रसाद ने कांग्रेस के टिकट पर 2004 के लोकसभा चुनाव में शाहजहांपुर से जीत हासिल की थी. शाहजहांपुर सीट के आरक्ष‍ित सीट होने के चलते 2009 के चुनाव में वह धौरहरा सीट से सांसद बने. 

इस दौरान वह सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री रहे. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जितिन प्रसाद को हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले जितिन भाजपा में शामिल हो गए थे. 

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में वरुण गांधी का टिकट कटने की संभावना को देखते हुए भाजपा बीते एक महीने से जिन संभावित प्रत्याशियों के नाम पर मंथन कर रही थी उनमें जितिन प्रसाद का नाम प्रमुख था. जितिन लंबे समय से पीलीभीत और शाहजहांपुर में सक्रिय थे. 

उनके प्रयासों से जिले में कई बड़ी परियोजनाएं भरातल पर उतरी हैं. शाहजहांपुर और धौरहरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले जितिन प्रसाद कभी पीलीभीत से चुनाव नहीं लड़े. बावजूद इसके भाजपा ने पीलीभीत लोकसभा सीट से जितिन प्रसाद पर दांव क्यों लगाया?

यूपी भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं, "पार्टी बरेली और पीलीभीत लोकसभा सीट पर एक साथ उम्मीवारों के चयन पर मंथन कर रही थी. बरेली में वर्तमान सांसद संतोष गंगवार हैं तो पीलीभीत में वरुण गांधी. दोनों की पहचान रुहेलखंड के प्रभावशाली नेताओं में है. पार्टी ने संतोष गंगवार की जगह बरेली से कुर्मी जाति के नेता को उम्मीदवार बनाया तो पीलीभीत के लिए ऐसे नेता की खोज शुरू हुई जो सामान्य जाति का जाना पहचाना चेहरा हो. इस मापदंड पर जितिन प्रसाद खरे उतरे और उन्हें पीलीभीत से उतारने का निर्णय किया गया."

इसके अलावा वर्ष 2009 परिसीमन के बाद शाहजहांपुर लोकसभा सीट के कई गांव पीलीभीत में चले गए थे. इन गांवों में जितिन प्रसाद परिवार का अच्छा प्रभाव है. जितिन प्रसाद का परिवार 70 के दशक से लोकसभा चुनाव लड़ता रहा है. लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुभव होना भी जितिन प्रसाद के पक्ष में गया. 

भाजपा की ओर से जितिन प्रसाद का नाम घोषित होने के बाद भी वरुण के निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन कराने की चर्चा होती रही. हालांकि, पहले से पर्चा खरीदने के बावजूद वरुण नामांकन के आखिरी दिन तक पीलीभीत नहीं आए और न ही उनका कोई संदेश समर्थकों को मिला. हालांकि भाजपा नेतृत्व ने मेनका गांधी और वरुण गांधी से भी संपर्क कर उन्हें भविष्य के लिए आश्वासन देकर पार्टी विरोध की आशंका समाप्त की है. भाजपा ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर लोकसभा सीट से उम्मीवार बनाया है.

पीलीभीत से टिकट कटने के बाद वरुण गांधी ने राजनीतिक गतिविधियों से खुद को अलग रखा है. जितिन प्रसाद के पीलीभीत लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार के रूप में 27 मार्च को नामांकन करने के दौरान भी वरुण गांधी नहीं दिखे.

हालांकि अगले दिन वरुण ने पीलीभीत की जनता के नाम एक भावनात्मक पत्र जारी कर कहा, "एक सांसद के रूप में नहीं तो कम से कम एक बेटे के रूप में, मैं जीवन भर आपकी सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं और मेरे दरवाजे पहले की तरह आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे. मैं आम आदमी की आवाज उठाने के लिए राजनीति में आया हूं और आज मैं आपका आशीर्वाद चाहता हूं कि यह काम हमेशा करते रहूं भले ही इसके लिए मुझे कोई भी कीमत चुकानी पड़े."

इसके बाद भी 2 अप्रैल को पीलीभीत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रबुद्ध सम्मेलन में वरुण गांधी की गैर मौजूदगी ने कई अटकलों को भी जन्म दिया है. पीलीभीत में वरुण गांधी के करीबी बताते हैं कि पत्नी का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वे राजनीतिक गतिविधियों से दूर हैं.

पीलीभीत लोकसभा सीट में जिले की चार विधानसभा सीट के साथ बरेली की बहेड़ी सीट भी इस लोकसभा में आती है. इस लोकसभा सीट पर कुल 18 लाख से अधिक मतदाता हैं. एक अनुमान के मुताबिक पीलीभीत लोकसभा सीट पर 5 लाख मुस्ल‍िम, सवा चार लाख लोध, सवा लाख कुर्मी, 72 हजार पासी, 70 हजार मौर्य, 65 हजार जाटव, 50 हजार बंगाली, 50 हजार ब्राह्मण, 45 हजार सिख और 40 हजार कश्यप वोटर हैं. 

भाजपा से जितिन प्रसाद का टिकट घोषित होते ही पीलीभीत सीट का चुनाव रोमांचक हो गया है. यहां बसपा ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए अनीस अहमद उर्फ फूलबाबू को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि, अनीस अहमद अब तक तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और चौथी दफा मैदान में हैं. वह 2014 में तीसरे नंबर पर रहे थे. वहीं सपा ने पिछड़ा कार्ड खेलते हुए बरेली की नवाबगंज सीट से विधायक रहे भगवत सरन गंगवार को मैदान में उतारा है. 

पिछले चुनाव में वरुण गांधी 7,04,549 मत पाकर जीते थे. दूसरे स्थान पर सपा के हेमराज वर्मा थे. भगवत सरन पिछले चुनाव में बरेली सीट पर सांसद संतोष गंगवार के खिलाफ मैदान में उतरे थे, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. पीलीभीत लोकसभा सीट पर इस बार का चुनाव पिछले चुनावों की तुलना में कई मायनों में अलग भी है. 

इस तराई जिले में ऐसा पहली बार है कि यहां प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और गृह मंत्री से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव प्रचार के लिए आ रहे हों. पिछली बार 90 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपने प्रत्याशी भानु प्रताप सिंह के लिए चुनाव प्रचार करने पीलीभीत आए थे. इसके बाद से लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कोई प्रधानमंत्री चुनावी सभा के लिए नहीं आए. 

पीलीभीत के रिटायर्ट बैंक अफसर रमेश वर्मा बताते हैं, "पहले पीलीभीत लोकसभा सीट पर दूसरे और तीसरे चरण में ही चुनाव होता रहा है. वर्ष 2024 में भी पहले ही चरण में पीलीभीत लोकसभा सीट का चुनाव हो रहा है. जिस वजह से नेताओं का इस सीट पर फोकस बढ़ गया है. अगर अभी से माहौल बन जाता है तो इसका फायदा अगले चरण में आसपास की सीटों पर भी मिलेगा." 

इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (नौ अप्रैल) और गृह मंत्री अमित शाह (छह अप्रैल) से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक का कार्यक्रम लग रहा है. वहीं पीलीभीत में सपा जिलाध्यक्ष जगदेव सिंह जग्गा के मुताबिक स्थानीय संगठन ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कार्यक्रम मांगा है. 13 अप्रैल के बाद कार्यक्रम मिलने की उम्मीद है.

इधर कांग्रेस जिलाध्यक्ष हरप्रीत सिंह चब्या के मुताबिक सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यक्रम बनते ही कांग्रेस के बड़े नेता भी पीलीभीत पहुंच सकते हैं. पंद्रह अप्रैल को बसपा प्रमुख मायावती बीसलपुर क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू के समर्थन में सभा करने आ रही हैं.

रमेश वर्मा बताते हैं, "भाजपा नेताओं ने पीलीभीत सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है लेकिन विपक्षी पार्ट‍ियों का चुनावी अभियान अभी तेजी नहीं पकड़ पाया है. अगर यह सुस्ती बरकरार रही तो भाजपा को पीलीभीत लोकसभा सीट पर वॉकओवर मिलने जैसे हालात पैदा हो जाएंगे."

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना वोट बूथ तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. इस काम में पीलीभीत के भाजपा के जिला संगठन ने रूहेलखंड के चारों जिले समेत खीरी, धौरहरा लोकसभा सीट पर सबसे अच्छे प्रबंधन का प्रदर्शन किया था.

यही कारण है कि सातों सीटों पर पीलीभीत जिले में सबसे अधिक मतदान हुआ और सबसे अधिक वोट भी भाजपा प्रत्याशी को मिले. वरुण गांधी की जीत का अंतर 22 प्रतिशत से अधिक था. अब देखना है कि इस बार लोकसभा चुनाव में जितिन प्रसाद वरुण गांधी का रिकार्ड तोड़ पाते हैं या नहीं.

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